दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की व्याख्यान माला पर कास्टिस्ट इस्लामिक कम्युनल (सीआईसी) पार्टियों ने काफी विवाद खड़ा किया. लेकिन उनकी निंदा से परे दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने सिद्धांतों पर कायम है और देश के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की ओर उसकी यात्रा अनवरत जारी है. आज भारत भर में हर रोज संघ की 60,000 से ज्यादा शाखाएं लगती हैं. उसके तीन दर्जन से अधिक संगठन दिन-रात काम कर रहे हैं. इनमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय किसान संघ, आरोग्य भारती, भारत विकास परिषद, संस्कार भारती आदि जैसे अनेकानेक संगठन शामिल हैं.
संघ के योगदान को यदि हम पूरी तरह समझाने लगें तो कई पोथियां लिखनी पड़ेंगी. एक छोटी से झलक देखिएः संघ की एकल फांउडेशन देश के दूर-दराज के ऐसे इलाकों में 65,000 से ज्यादा एक शिक्षक वाले विद्यालय चलाती है जहां आम शहरी जाने की सोचता भी नहीं. इसकी विद्या भारती और समर्थ शिक्षा समिति संस्थाओं में तीस लाख से अधिक विद्यार्थी पंजीकृत हैं. इनमें सिर्फ हिंदू ही नहीं, मुस्लिम और ईसाई बच्चे भी हैं. संघ से प्रेरित संस्थाएं देश भर में 1,70,000 से ज्यादा समाज कल्याण की परियोजनाएं चला रही हैं जिनका सबसे अधिक लाभ दलित-आदिवासी वर्ग को होता है. कुल मिलाकर संघ से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से चार करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हैं.
अपनी समावेशी और विकासपरक परंपरा के अनुसार संघ ने मोहन भागवत व्याख्यान माला में हर वर्ग और समुदाय के लोगों को आमंत्रित किया. बुलावे पर अनेक कास्टिस्ट इस्लामिक कम्युनल (सीआईसी) पार्टियों का रवैया खेदजनक रहा. चर्चा में आना या न आना उनका विशेषाधिकार था, लेकिन उन्होंने संघ के प्रति जो अपमानजनक टिप्पणियां कीं वो लोकतंत्र और सहिष्णुता की भारतीय परंपराओं के सर्वथा विरुद्ध थीं.
इन टिप्पणियों से कुछ बातें तो स्पष्ट हुईं. एक तो ये कि अपमानजनक टिप्पणी करने वाले लोगोें को संघ की वास्तविकता और दर्शन का कोई ज्ञान नहीं है. दूसरी ये कि इन्होंने संघ को हिंदुओं का एक प्रतीक बना दिया है. जो भी हिंदुओं से नफरत करता हो या उनसे नफरत करने वालों का समर्थन चाहता हो, वो संघ का अपमान करे और अपनी भड़ास निकाल दे. संघ को गाली देना, उसके खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना ‘हिंदू सांप्रदायिकता’ का सर्वथा उचित विरोध है.
संघ के न्यौते पर किसने क्या कहा, ये दोहराना उचित नहीं होगा, लेकिन संघ की विचारधारा के कुछ मूल तत्वों पर चर्चा की जाए, उससे पहले ये स्पष्ट करना जरूरी है कि भारतीय लोकतंत्र में संघ को अपने विचार रखने और उन्हें प्रचारित, प्रसारित करने का उतना ही हक है जितना सीआईसी पार्टियों को है. अगर सीआईसी पार्टियां राष्ट्रविरोधी, सुरक्षा बलों के हत्यारे नक्सलियों, कश्मीरी और पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया के इस्लामिक आतंकवादियों का समर्थन ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ मान सकती हैं तो संघ को भी अपनी अखंड भारत की परिकल्पना मानने और उसे साकार करने के लिए प्रयास करने का पूरा हक है. ध्यान रहे, इसके लिए संघ न तो किसी हिंसक गतिविधि को बढ़ावा दे रहा है और न ही समाज के विघटन की बात कर रहा है.
सीआईसी पार्टियां आंख मूंद कर संघ पर आरोप लगाती रही हैं कि संघ हिंदू राष्ट्र की बात करता है और अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता. लेकिन सीआईसी पार्टियां ये नहीं बतातीं कि ‘हिंदू’ से संघ का क्या अभिप्राय है? जो बात इन विघटनकारी इस्लामिक सांप्रदायिक दलों को नहीं पता, उसे हम स्पष्ट कर देते हैं.संघ के लिए ‘हिंदू’ एक व्यापक और समावेशी शब्द है. संघ के लिए हर वो व्यक्ति ‘हिंदू’ है जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है.
सीआईसी पार्टियां मुसलमानों को डराती हैं कि संघ हिंदुओं को संगठित कर रहा है और जब ये मजबूत हो जाएगा तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. ये सही है कि संघ हिंदुओं को संगठित करना चाहता है, लेकिन इसका उद्देश्य किसी धर्म, जाति, समुदाय के लोगों को आक्रांत करना या उनके अधिकार छीनना नहीं है. संगठन क्या है इसे स्पष्ट करते हुए संघ संस्थापक केशवराव बलिराम हेडगेवार कहते हैं - 'किसी भी राष्ट्र का सामर्थ्य उसके संगठन के आधार पर निर्मित होता है. बिखरा हुआ समाज तो एक जमघट मात्र है. ‘जमघट’ और ‘संगठन’ दोनों शब्द समूहवाचक हैं, फिर भी दोनों का अर्थ भिन्न है. जमावड़े में अलग-अलग वृत्ति के और परस्पर कुछ भी संबंध न रखने वाले लोग होते हैं, किंतु संगठन में अनुशासन, अपनत्व और समाज-हित के संबंध सूत्र होते हैं जिनमें अत्यधिक स्नेहाकर्षण होता है. यह सीधा-सरल तत्व ध्यान में रखकर समाज को संगठित और शक्तिशाली बनाने के लिए संघ ने जन्म लिया है. संघ का ध्येय अपने धर्म, अपने समाज और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए हिंदुओं का सक्षम संगठन करना है. इससे हमारा खोया आत्मविश्वास पुनः जागृत होगा और उसके सामर्थ्य के सामने आक्रामणकर्ताओं की उद्दंड प्रकृति ढीली पड़ेगी तथा वे हमारे ऊपर आक्रमण करने की फिर सोच भी नहीं पाएंगे.'
विघटित समाज का क्या हश्र होता है वो हम 1947 में देख चुके हैं, जब माउंटबेटन ने कांग्रेस (जवाहरलाल नेहरू) और मुस्लिम लीग (मोहम्मद अली जिन्ना) के साथ मिलकर भारत का बंटवारा करवा दिया जिसके बाद भारत ने अपने इतिहास का सबसे खूनी दौर देखा जिसमें बीस लाख से ज्यादा लोग मारे गए और करोड़ों बेघर हुए. वैसे भी जब भारत का विघटन चाहने वाली शक्तियां खुद को संगठित कर और भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग कर अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए षड्यंत्र कर सकती हैं तो भारत की अखंडता और एकता के पक्षधर हिंदुओं को एक करने में क्या बुराई है?
सीआईसी पार्टियां बार-बार संघ के खिलाफ ये दुष्प्रचार करती हैं कि उसने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया. आजादी के बाद बेशर्मी से भारतीयों की लाशों को रौंद कर सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को कम्युनिस्टों के साथ मिलकर इस तरह लिखवाया जैसे उसके अलावा किसी और ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा ही नहीं लिया.
आपको बता दें कि संघ के संस्थापक केशवराव बलिराम हेडगेवार ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. वो कांग्रेस में भी रहे और उन्होंने क्रांतिकारियों का साथ भी दिया. वो कांग्रेस से अलग हो गए क्योंकि कांग्रेस का लक्ष्य भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता था वहीं उनका उद्देश्य ‘अखंड भारत की सर्वांगीण स्वतंत्रता’ था. 1925 में संघ की स्थापना के बाद भी हेडगेवार कांग्रेस नेतृत्व द्वारा संचालित आंदोलनों और सत्याग्रहों में भाग लेते रहे.
संघ की शाखाओं में तैयार होने वाले देशभक्त युवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी. उनके सहयोगी नेताओं के लेखों एवं सरकारी दस्तावेजों से ये साबित होता है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में लाखों स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर अग्रणी भूमिका निभाई थी. यह भी ऐतिहासिक सत्य है कि इन स्वयंसेवकों ने अपने आदर्श ध्येय वाक्य ‘नहीं चाहिए पद, यश, गरिमा, सभी चढ़े मां के चरणों में’ के अनुसार अपनी संस्थागत पहचान से ऊपर उठकर सत्याग्रहों में भाग लिया और जेलों में अनेक प्रकार की यातनाएं एवं कष्ट सहन करते हुए अपनी राष्ट्रभक्ति का अतुलनीय परिचय दिया.
पूर्व राष्ट्रपति और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी को हेडगेवार के योगदान की पूरी जानकारी थी, इसीलिए उन्होंने संघ के मुख्यालय में उन्हें ‘भारत मां का महान सपूत’ बताया था. सीआईसी पार्टियों के जो लोग आज संघ को अपशब्द कह रहे हैं उन्हें याद दिला दें कि महात्मा गांधी, डाॅक्टर भीमराव अंबेडकर, जमनालाल बजाज, डाॅक्टर जाकिर हुसैन, जयप्रकाश नारायण, जनरल करियप्पा आदि संघ के कार्यक्रमों में आ चुके हैं. 1963 में स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी के अवसर पर कन्याकुमारी में ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ निर्माण के समय भी संघ को सभी राजनीतिक दलों और समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिला. इसके निर्माण के समर्थन में विभिन्न राजनीतिक दलों के 300 सांसदों के हस्ताक्षर एकनाथ रानाडे ने प्राप्त किए थे.
पूर्व संघ प्रचारक एवं ‘युगप्रवर्तक स्वतंत्रता सेनानी डाॅक्टर हेडगेवार का अंतिम लक्ष्य - भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ पुस्तक के लेखक नरेंद्र सहगल अपनी पुस्तक में लिखते हैं, 'आज भी संघ के विरोधी संघ पर कई प्रकार के आरोप लगाते हैं. संघ एक सांप्रदायिक सैनिक संगठन है. संघी संकीर्ण विचार के लोग हैं. मुस्लिम विरोधी हैं. दंगे करवाते हैं.'
संघ के विरोधी यदि संघ की वैचारिक चट्टान के साथ टकराकर अपना सिर फोड़ने की जगह संघ में आकर इसे समझने का थोड़ा भी प्रयास करें, तो वे भी इस चट्टान का हिस्सा बन सकते हैं. अन्यथा संघ तो एक निश्चित गति से अपना काम कर ही रहा है. लोग ये भी कहते हैं कि संघ ने अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं. सच्चाई यह है कि संघ के दरवाजे हैं ही नहीं, बंद क्या करें. उन्होंने ही अपने दरवाजे हमारे लिए बंद कर दिए हैं.'
नरेंद्र सहगल का विश्लेषण कितना सही है, ये मोहन भागवत के विज्ञान भवन के कार्यक्रम को लेकर खड़े किए गए मिथ्या विवाद से स्पष्ट हो जाता है. शास्त्रार्थ और विचार-विमर्श की महान भारतीय लोकतांत्रिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए संघ ने विरोधी मतावलंबियों को भी निमंत्रण दिया, लेकिन उन्होंने न केवल अपने दरवाजे बंद किए, बल्कि असभ्य और असंसदीय व्यवहार भी किया. आखिर में हम सिर्फ यही कहेंगे कि सीआईसी पार्टियां अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण भले ही संघ को कितना ही भला-बुरा क्यों ने कहें, संघ धर्म, जाति, समुदाय, रंग से ऊपर उठकर मां भारती की सभी संतानों की सेवा और उद्धार के लिए प्रयास करता रहेगा.
( लेखिका आरएसएस विचारक हैं. समाजसेवी और शिक्षाविद् के तौर पर जानी जाती हैं.)