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दिवाली पर हम नहीं देंगे चीन को अपनी 'चिल्लर'

चीनी सामान का बहिष्कार तात्कालिक मूड स्विंग जैसा है.

Vivek Anand

‘ बाबूजी, आप ये वाली लाइट ले लो, पूरा घर जगमगा जाएगा और कीमत भी कम है, एक लड़ी के सिर्फ डेढ़ सौ रुपए.’

‘वो सब तो ठीक है. लेकिन पहले ये बताओ की कहीं ये चीन का माल तो नहीं है.’


‘है तो चीन का ही बाबूजी, इतने कम दाम में और कहां का मिलेगा’

‘देखो भइया, तुम हमसे पचास रुपए अधिक ले लो, लेकिन माल मुझे इंडिया का ही बना चाहिए. सस्ते सामान रखें वो अपने घर’

दिल्ली के बाहरी इलाके में एक छोटे से दिवाली बाजार में ग्राहक और दुकानदार की बातचीत है ये. चीनी सामान के बहिष्कार वाले माहौल में दिवाली की खरीदारी पर असर तो देखा जा सकता है. लेकिन ये तात्कालिक मूड स्विंग जैसा है.

खरीदारी पर लोग वैसे ही सेलेक्टिव हैं, जैसे राष्ट्रवाद के मसले पर. किसी के लिए ये बेवजह का दिखावा है, तो कोई इस बात को तवज्जो देने में लगा है, कि कम से कम इसी बहाने घरेलू बाजार को मजबूती तो मिलेगी.

चीनी सामान के बहिष्कार का मामला वैसा ही जान पड़ता है. जैसे जींस छोड़कर आपको खादी पहनने की सलाह दे दी जाए. आप उसमें फिट हों न हों. भावनात्मक स्तर पर इसके करीब हैं तो एकाध खादी वाली बंडी तो खरीद ही लेंगे. लोग इसी तरह के सुविधाजनक बहिष्कार पर भरोसा कर रहे हैं.

बहिष्कार की हवा को चीन भी भांप रहा है. चीनी दूतावास ने एक स्टेटमेंट जारी करके कहा है कि इससे भारत में चीन के निवेश के साथ दोनों देशों के पारस्परिक रिश्ते प्रभावित होंगे. चीन से ज्यादा असर भारत के कारोबारियों पर होगा.

TOI की खबर के मुताबिक स्टेटमेंट में कहा गया है कि बहिष्कार का चीन पर ज्यादा असर नहीं होगा. 2015 में चीन के कुल निर्यात का सिर्फ दो फीसदी निर्यात भारत को हुआ था. फिक्र की बात भारत में चीन के लिए बने निगेटिव माहौल की है. चीन को लगता है कि इस माहौल का नुकसान भारत को ही होगा.

लेकिन आम लोग ऐसे गंभीर आर्थिक आंकड़ों में नहीं उलझते. वो समझते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स देशों के सम्मेलन जैसे मंच पर ऐसे आंकड़े संभाल लेंगे. उन्हें तो बस अपने खुल्ले पैसों का सदुपयोग करना है. कुल मिलाकर बात इतनी है कि हम चीन को अपनी चिल्लर देने को तैयार नहीं हैं.