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डोकलाम से भारत की पकड़ ढीली करने के लिए चीन ने चली अरुणाचल की चाल

चीन का आसाफिला में भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर सवाल उठाना बेहद गंभीर मामला है क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है

Kinshuk Praval

डोकलाम का विवाद ‘यथास्थिति कायम’ रहने तक फिलहाल थमा हुआ है. लेकिन अब चीन अरुणाचल प्रदेश में दूसरा डोकलाम बनाने के लिए मोर्चा खोल रहा है. अरुणाचल प्रदेश के आसाफिला इलाके में भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर चीन ने कड़ा एतराज जताया है. भारतीय जमीन पर भारतीय सेना की ही गश्त को चीन ने अतिक्रमण बताया है. चीन ने ये भी कहा है कि वो अरुणाचल प्रदेश का वजूद कभी मानता ही नहीं है.


चीन ने बॉर्डर पर्सनल मीटिंग में ये मुद्दा उठाया था जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया. भारत ने साफ कर दिया कि अरुणाचल प्रदेश का ऊपरी इलाका सुबानसिरी भारत का हिस्सा है. इस इलाके में भारतीय सेना नियमित रूप से गश्त करती आई है.

जबकि चीन आसाफिला क्षेत्र पर खुद का दावा कर रहा है क्योंकि आसाफिला इलाके को सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. ऐसे में चीन का आसाफिला में भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर सवाल उठाना बेहद गंभीर मामला है क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है. ऐसे में वो आसाफिला में भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर सवाल उठाकर दूसरा डोकलाम बनाने की चाल चल रहा है.

डोकलाम विवाद के बाद से ही चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर रणनीति में बदलाव तेजी से आया है. चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ तेज की है. इसी साल चीनी सैनिकों ने लद्दाख में तीन बार घुसपैठ की है. वहीं पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में चीनी सैनिक भारतीय सीमा के 200 मीटर भीतर तक घुस आए थे. वो सड़क बनाने के उपकरण साथ लेकर आए थे. उन्होंने तूतिंग इलाके में तिब्बत से बहने वाली नदी के किनारे करीब 1250 मीटर सड़क भी बना ली. लेकिन जांबाज भारतीय सैनिकों के आगे उन्हें सड़क बनाने के उपकरण छोड़कर भागना पड़ा. जिसके बाद अरुणाचल प्रदेश में चीन से सटे सीमाई इलाकों पर भारतीय सेना की तैनाती में भी इजाफा किया गया है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि डोकलाम विवाद के बाद अचानक ही अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ में तेजी की वजह क्या है? दरअसल चीन की विदेश नीति का तरीका ही आक्रमण के जरिए विस्तार करना है. इसके लिए वो पहले  मनोवैज्ञानिक युद्ध की शुरूआत करता है. एक तरफ वो सीमा विवाद पर बातचीत भी करता है तो दूसरी तरफ अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ भी कर रहा होता है.

सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच अबतक 20 बार बातचीत हो चुकी है. लेकिन बातचीत के साथ ही वो न सिर्फ अपने सैनिकों से घुसपैठ कराता है बल्कि उस इलाके के नजदीक निर्माण कार्य भी तेजी से कराता जाता है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे सीमाई इलाकों में चीन अबतक मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार कर चुका है. ये निश्चित तौर पर ही भारत के लिए चिंताजनक है. तूतिंग में जब चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की थी तो आईटीबीपी के जवानों को तकरीबन 19 किमी पैदल चलकर चीनी सैनिकों को खदेड़ने के लिए मोर्चे पर पहुंचना पड़ा था.

जबकि चीन ने तिब्बत को रेल मार्ग से जोड़ कर भारत, नेपाल और भूटान पर सामरिक बढ़त बना ली है. 1985 किमी लंबा छिंगहाई रेलमार्ग तिब्बत को चीन से जोड़ता है जो भारत,नेपाल और भूटान की सीमाओं के करीब है. सीमा से सटा तांगुला रेलवे स्टेशन चीनी फौज के लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए बेहद सामरिक महत्व रखता है. जबकि चीन से सटी सीमा के पास भारत का बुनियादी ढांचा चीन के मुकाबले अभी कमजोर है. यही वजह भी है कि आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा था कि अब चीन से सटी सीमाओं पर ध्यान देने की जरुरत है.

सेना प्रमुख बिपिन रावत

डोकलाम के विवाद से भारत चीन की चालाकियों का सबक सीख चुका है. भले ही डोकलाम में यथास्थिति कायम रहने का दावा किया जा रहा है लेकिन चीन ने वहां मजबूत सैन्य ढांचा तैयार कर लिया है. चीन की फितरत को देखते हुए ही भारत भी तेजी से सीमाई इलाकों में बुनियादी ढांचों को दुरुस्त करने में जुटा हुआ है. चीन की सीमाओं से सटे इलाकों में कुल साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये की लागत का सड़क निर्माण तेजी से चल रहा है. कुल 73 प्रोजेक्ट ऐसे हैं जिन पर काम तेजी से जारी है लेकिन उनके साल 2020 तक पूरा होने की संभावना है.

लेकिन जिस तरह से अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन ने रुख दिखाया है उससे साफ है कि वो डोकलाम के मुद्दे पर भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है. उसने हमेशा ही अरुणाचल प्रदेश में भारत के शीर्ष नेताओं के दौरे का विरोध किया है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के भी अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जताई थी. यहां तकि उसने दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे से नाराज होकर छह जगहों के नाम भी नक्शे में बदल दिए थे.

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब 3488 किलोमीटर हिस्से पर विवाद है. चीन ये जताना चाह रहा है कि 3488 किमी लंबे सीमाई विवाद में भारत के लिए वो कहां-कहां सिरदर्द पैदा कर सकता है. यह विवाद जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक कई जगहों पर है. तभी एक खास रणनीति के तहत अरुणाचल प्रदेश पर फोकस कर रहा है ताकि डोकलाम से भारत की पकड़ ढीली हो सके.

लेकिन भले ही चीन से सटे कुछ सीमाई इलाकों पर भारत का बुनियादी ढांचा उतना मजबूत नहीं हो लेकिन भारतीय सैना के हौसलों के आगे चीन को दम दिखाने के लिए दस बार सोचना भी पड़ेगा क्योंकि डोकलाम से चीन ने भी जरूर सबक सीखा है.