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आखिर क्यों मर रहे हैं मासूम बच्चे झारखंड के सरकारी अस्पतालों में...

इस साल 28 अगस्त तक कुल 739 बच्चों की मौत हुई है,आलम यह है कि गरीब अपने बीमार बच्चों को लेकर अब राज्य के सरकारी अस्पतालों में जाने से डरने लगे हैं

Brajesh Roy

गुरुवार को झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के मुख्य दरवाजे के पास एक पति पत्नी को आपस में झगड़ते देखा गया. बगल में ही कांग्रेस पार्टी के लोग अस्पताल प्रबंधन और सरकार के खिलाफ एक दिवसीय धरना देने की तैयारी में जुटे थे. पत्नी सोमरी देवी गोद में लिए अपने बीमार दुधमुंहे का इलाज इस सरकारी अस्पताल में नहीं करवाना चाहती थी.

पति फिलिप तिर्की रोते हुए अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश कर रहा था कि फिलहाल उसके पास इतने रुपये नहीं हैं कि वो किसी बड़े प्राइवेट अस्पताल में जा सके. आखिरकार दोनों में सुलह हुई और भारी मन से सोमरी ने कलेजे से लगाये अपने दुधमुंहे को रिम्स अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल करवा दिया.


रिम्स में इस साल 28 अगस्त तक 739 बच्चों की मौत हुई है 

मां की गोद में अस्पताल आए 8 महीने के बाबू को पिछले तीन दिन से सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. खैर, यहां अस्पताल में बाबू का इलाज शुरू हो गया लेकिन वो कौन सा कारण था, क्यों बच्चे का इलाज पति पत्नी इस अस्पताल में नहीं करवाना चाहते थे? आप इसका कारण जरूर जानना चाहेंगे. हम आपको हर वो पहलू बताना चाहेंगे कि इस डर के पीछे की आखिर वजह क्या है?

दरअसल झारखंड में सत्ता की कुर्सी पर काबिज रघुवर सरकार की सेहत बिगड़ने लगी है. हर जिले के सरकारी अस्पतालों से मासूम दुधमुंहे बच्चों की मौत की खबरें लगातार आ रही है. मासूम बच्चों की मौत के जो सरकारी आंकड़े सामने आ रहे हैं उससे कलेजा मुंह को आना स्वाभाविक है.

राजधानी रांची स्थित झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में इस साल 28 अगस्त तक कुल 739 बच्चों की मौत हुई है. आलम यह है कि गरीब अपने बीमार बच्चों को लेकर अब राज्य के सरकारी अस्पतालों में जाने से डरने लगे हैं.

पति पत्नी आपस में इस मुद्दे को लेकर झगड़ने लगे हैं. इधर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष मासूमों की मौत को बड़ा मुद्दा मानते हुए गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश में जुट गया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और रांची के पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय ने तो कहा कि सरकारी अस्पताल को रघुवर दास की सरकार ने बूचड़खाना बना दिया है. मसलन विश्वास के साथ राज्य के सरकारी अस्पतालों में उम्मीदें भी शायद मरने लगीं हैं.

सिर्फ अगस्त महीने में इस रिम्स अस्पताल में 134 मासूम बच्चों की मौत हुई. वहीं रांची से सटे टाटानगर यानि जमशेदपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में अगस्त माह में 166 मासूम बच्चों की मौत की खबर ने लोगों को सोंचने पर विवश कर दिया है कि आखिर क्या है स्वास्थ्य व्यवस्था राज्य में.

कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाते हुए जमशेदपुर पुलिस थाने में राज्य के मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, अस्पताल प्रबंधन के साथ कई अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का आवेदन दिया. दूसरी तरफ रांची के रिम्स अस्पताल के दरवाजे पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के नेतृत्व में मासूमों की हो रही मौत पर कांग्रेसियों ने धरना आयोजित किया.

विपक्ष के दवाब को सरकार ने गंभीरता से लिया 

सरकार ने रिम्स के अधीक्षक डॉ एसके चौधरी को तत्काल प्रभाव से हटा दिया. निदेशक बीएल शेरवाल ने भी पद छोड़ने की इच्छा जता दी है. यानि आम तौर पर जो होता है वो सरकारी कदम उठाकर आम लोगों के गुस्सा को शांत करने की एक छोटी सी कोशिश सरकार ने की.

रिम्स के शिशु विभाग ने इस दौरान बच्चों की मौत के कारणों को भी सार्वजनिक करने का प्रयास किया. कहा गया कि 51 फीसदी मौत का कारण एस्फेक्सिया है. इसके साथ ही यह भी बताया गया कि 739 बच्चों की जो मौत हुई है उसमे इनसेफ़लाइटिस से 24 प्रतिशत, निमोनिया से 17 प्रतिशत, सीसीएफ से 11 प्रतिशत, मलेरिया से 0.8 प्रतिशत, सांप काटने से 1.4 प्रतिशत और बाकी अन्य कारणों से 37 फीसदी बच्चों की मौत हुई है.

इस दौरान यह भी दावा किया गया कि अगस्त महीने में कुल 4855 बच्चे भरती हुए जिसमे 4195 यानि 86.4 प्रतिशत बच्चे स्वस्थ होकर घर गये. रिम्स प्रबंधन ने यह भी तर्क दिया कि कई बच्चों को बेहद गंभीर स्थिति में यहाँ रेफर किया जाता है जिसे बचा पाना मुश्किल हो जाता है.

राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल और रांची के रिम्स अस्पताल में मासूमों कि मौत पर जांच कमिटी बैठा दी है. कहा भी है कि दोषियों को चिन्हित कर कड़ी कार्रवाई की जाय.

क्यों हो रही है मासूमों की मौत 

यह सब तो सरकारी अफसाना है, विपक्ष के साथ आम जनता को बहलाना है. बानगी के तौर पर झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स को ही देखा जाय तो साफ पता चल जाता है कि व्यवस्था के नाम पर सालों से खिलवाड़ चला आ रहा है.

रिम्स के शिशु विभाग के पीआइसीयू में आधे से ज्यादा वेंटिलेटर खराब हैं और वार्मर काम नहीं करता. साफ सफाई और संक्रमण रोकने के लिये कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ तक कि ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टर्स या नर्सिंग टीम के सदस्य गंदे जूते पहने बगैर दस्ताने के भी जाते दिखे. इतना ही नहीं बातें यह भी है कि अस्पताल में ज़्यादातर दवाइयाँ उपलब्द्ध नहीं होतीं.

मरीज के लिये दवाइयों को बाहर से लाने की पर्ची डॉक्टर्स देते हैं. इतना ही नहीं अस्पताल परिसर से सटे अपने चहेते दवाई दुकान का पता भी बताते हैं डॉक्टर्स. मरीजों की संख्या इतनी कि बेड से परे अस्पताल में जमीन पर भी इलाज यहां चलता है.

दूसरी तरफ सरकारी अमला भी प्रयाप्त मात्रा में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ उपलब्द्ध नहीं करवा पायी है. यही वजह है कि इस अस्पताल में मासूमों की मौत का ऐसा ही आंकड़ा इससे पीछे भी रहा है. पिछले वर्ष सितंबर में 111,  अक्टूबर में 107, नवंबर में 83 और दिसंबर में 89 बच्चों की मौत हुई थी. कुल संख्या की बात करें तो वर्ष 2016 में 1126 बच्चों की मौत रिम्स अस्पताल में हुई थी.

सरकार की सेहत पर बड़ा सवाल 

राज्य की रघुवर सरकार मोदी के सपनों को धरातल पर उतारने के लिये दिन रात कड़ी मेहनत कर रही है. इस दिशा में ग्राम पंचायतों को मजबूत आधार देना हो या फिर डिजिटल भारत के निर्माण के लिये तैयारी. स्वच्छता की नयी परिभाषा गढ़ने की दिशा में मुख्यमंत्री रघुवर दास दिखाई भी दे रहे हैं. विधि व्यवस्था को दुरुस्त करते हुए उद्द्योग धंधों के लिये अनुकूल माहौल बनाने में रघुवर की टीम तत्परता से लगी दिख भी रही है.

विपक्ष की हर चाल को जवाब देने का काम भी सरकार खूब कर रही है. बावजूद इसके 70 साल के स्वास्थ्य मंत्री रामचन्द्र चंद्रवंशी के विभाग ने रघुवर दास की सरकार को कटघरे में जरूर खड़ा कर दिया है. सरकारी अस्पतालों में मासूम बच्चों की मौत की आ रही लगातार खबर ने सरकार से सवाल पूछना शुरू कर दिया है. विकास के पथ पर तेजी से दौड़ लगाने वाले राज्य के मुखिया रघुवर दास को सेहत का ख्याल रखना ही होगा.