छत्तीसगढ़ के पंडोनगर इलाका अपने आप में अजूबा है. विशेष रूप से संरक्षित 'पंडो आदिवासी' बहुल इलाके के हर घर में दो दरवाजे होते हैं. एक महिलाओं के लिए, दूसरा पुरुषों के लिए.
जंगलो के बीच बसा पंडो नगर गांव में करीब 120 घर हैं. सभी घरों में दो दरवाजा है. एक दरवाजे से पुरुष प्रवेश करते हैं तो दूसरे दरवाजे से महिलाएं. महिलाएं दूसरे दरवाजे का उपयोग हमेशा नहीं करती हैं.
इनका मानना है की महिलाएं जब बच्चों को जन्म देती हैं या मासिक धर्म के समय वो अपवित्र होती हैं. जिसकी वजह से वे घर में प्रवेश नहीं कर सकती. क्योंकि घर में उनके देवता और पूर्वज निवास करते हैं.
साथ ही महिलाओं के दरवाजों से पुरुष अंदर नहीं जा सकते. उनके अनुसार यदि पुरुष उस दरवाजे से जाते हैं तो उनके देवता नाराज हो जाते हैं. पंडो जनजाति में यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है.
रिवाज से नहीं है परेशानी, प्रशासन चलाएगी जागरूकता अभियान
बच्चों को जन्म देने के बाद महिलाएं एक महीने तक दूसरे दरवाजे से आना - जाना करती हैं. उस दरवाजे के अंदर सिर्फ एक कमरा ही रहता है और उस कमरे में सिर्फ एक बिस्तर रहता है. इस दौरान उन महिलाओं को बाहरी किसी से मिलने की भी इजाजत नहीं होती है. न ही वे घर के किसी भी सामान को हाथ लगा सकती हैं. एक महीने तक उन्हें ऐसा करना पड़ता है.
महिलाओं को इस रिवाज से कोई परेशानी नहीं हैं. वे मानती हैं कि यह उनकी परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है और वे चाहती हैं यह परंपरा आगे भी चलती रहे. परंपरा के नाम पर महिलाओं पर यह यातना प्रशासन के अंधविश्वास उन्मूलन के लिए चलाए जाने वाले अभियान और समाजसेवकों के जागरूकता अभियान के दावों की पोल खोल रहा है.
वहीं जिले के डीएम को जब इस बात की जानकारी मिली तो वह महिलाओं के सम्मान के लिए गांव मे जागरुकता फैलाने का काम शुरु करने की बात करते नजर आए. सूरजपुर जिले के डीएम के.सी.देवसेनापथी ने कहा महिलाएं आज अंतरिक्ष तक पहुच चुकी हैं लेकिन आज भी समाज की कुछ कुरीतियों की वजह से वह लगातार शोषित हो रही हैं. जो महिलाओं के आगे बढ़ते कदमो में जंजीर साबित हो रही हैं.
(ईटीवी के लिए वरुण राय की रिपोर्ट)