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टाटा में चंद्रशेखरन की पहली चुनौती विश्वास जीतने की होगी

साइरस बनाम रतन के विवाद से धूमिल विश्वसनीयता की बहाली के लिए चंद्रा सबसे अच्छे हो सकते हैं.

Madhavan Narayanan

जब टाटा संस, जो टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है, को ‘साल्ट टु सॉफ्टवेयर’ बनाने वाला साम्राज्य कहा जाता है तो यह अपनेआप में थोड़ा विरोधाभासी है.

120 बिलियन डॉलर की संपत्ति और 103 बिलियन डॉलर के राजस्व वाली इस कंपनी की जड़ें पारसी समुदाय में हैं और इसका नियंत्रण आम तौर पर चकाचौंध से दूर रहने वाली हस्तियों के हाथ में रहा है, फिर भी यह एक अरब लोगों के देश में सबसे सम्मानित बिजनेस लीडर्स में एक है.


टाटा संस की जड़ें एंटी-कोलोनियल राष्ट्रवाद में हैं. जमशेदजी नसीरवानजी टाटा ने झारखंड के दूर-दराज के जंगलों में एक स्टील प्लांट की स्थापना की थी और आज यह टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस से लेकर लक्जरी कार तक बेचने वाली एक अग्रणी वैश्विक कंपनी है.

इस कंपनी का नियंत्रण कुछ ही हाथों में हैं लेकिन यह न केवल इसके अपने करीबन 7 लाख कर्मचारियों बल्कि उन हजारों कर्मचारियों व लाखों स्टेकहोल्डरों व म्यूचुअल फंड निवेशकों का भविष्य निर्धारित करती हैं, जिनके सीधे या परोक्ष रूप से टाटा संस के स्वामित्व वाली 30 कंपनियों में हिस्सेदारी है.

उम्मीद है कि नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा संस का चेयरमैन बनाए जाने कुछ विरोधाभास खत्म होंगे और इससे हर स्टेकहोल्डर के सामने तस्वीर साफ होगी क्योंकि भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था अब पहले जैसी नहीं रही.

समूह के पारसी जड़ों के बाहर से आए चंद्रशेखरन का सर्वोच्च पद पर पहुंचना टाटा ग्रुप में प्रतिभा के सम्मान की संस्कृति का सूचक है. यह एक ऐसे समूह के लिए बड़ी बात हैं जिसके संचालन में पारसी ट्रस्ट हमेशा से सबसे अहम रहे हैं. टाटा संस लिमिटेड में 66 फीसदी हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट्स की है.

रतन टाटा.

यह तो कहा ही जाएगा कि 53 साल के ‘चंद्रा’ रतन टाटा की बताई राह पर ही चलेंगे. रतन टाटा ने टाटा ट्रस्ट्स के मुखिया के तौर पर अपनी ताकत के जरिए साइरस मिस्त्री को बाहर का रास्ता दिखाया है. लेकिन चंद्रा के पास टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के मैनेजमेंट के दौरान कॉर्पोरेट गवर्नेंस के बेहतरीन मानक तय करने का ट्रैक रिकॉर्ड है.

मिस्त्री की विवादास्पद विदाई के बाद उनके और रतन टाटा  के बीच अदालतों और कंपनी लॉ बोर्ड में लड़ाई होनी तय ही थी. असली खेल तो जनता का विश्वास जीतने की है. यह लड़ाई दो मोर्चों- विस्तृत कॉर्पोरेट छवि और लिस्टेड कंपनियों में शेयरधारकों के समर्थन- पर जीतनी है. यहीं पर चंद्रा कि नियुक्ति अच्छा फैसला साबित हो सकती है.

हम एक ऐसे दौर में हैं जहां सरकारी वित्तीय संस्थाओं जैसे एलआईसी – जिसके पास अहम हिस्सेदारियां हैं- के साथ-साथ टाटा कंपनियों के बोर्ड में बैठे स्वतंत्र निदेशकों पर सबकी नजर होगी. शेयरधारकों को सलाह देनी वाली इनगवर्न जैसी फर्म भी कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर जनता की राय तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी. टाटा समूह के लिए इसका मतलब एक ऐसा दौर है जहां फैसलों पर आंख मूंद विश्वास करने के बजाय उसकी जमकर समीक्षा की जाएगी.

साइरस मिस्त्री.

साइरस बनाम रतन के विवाद से धूमिल विश्वसनीयता की बहाली के लिए चंद्रा सबसे भरोसेमंद चेहरा साबित हो सकते हैं.

चंद्रा 2009 से टीसीएस के प्रमुख रहे हैं. टीसीएस एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है, जिसके कार्यों में सटीक सॉफ्टवेयर सर्विस और सॉल्यूशन देने के लिए ‘डोमेन नॉलेज’ हासिल करने के लिए विभिन्न कंपनियों के बारे में जानना भी शामिल है. चंद्रा टीसीएस के पूर्व ग्लोबल सेल्स प्रमुख रहे हैं. इसका मतलब है कि वह एक कोई कोड लिखने वाले नहीं है जिन्हें सर्वोच्च ऑफिस मिल गया है. वह एक रणनीतिकार हैं जिसकी पूरे बोर्ड के बीच विश्वसनीयता है.

डिजिटल तकनीकी अब हर इंडस्ट्री को चलाए जाने के तरीके को प्रभावित कर रही है. ऐसे में किसी लिस्टेड कंपनी को समझने में टाटा के बोर्ड के लिए चंद्रा की क्षमताएं किसी भला चाहने वाले लेकिन पुराने पड़ चुके परिवार के विचारों से अधिकत बेहतर काम आएंगी.

यही कारण हैं कि चंद्रा बॉम्बे हाउस (टाटा मुख्यालय) के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं. उनका अगला सबसे अहम काम समूह को चलाए जाने के तरीकों पर मिस्त्री व शेयरहोल्डर वैल्यू एक्सपर्ट्स की ओर से उठाए गए मुद्दों से निपटना होगा. यह कोई आसान काम नहीं है.