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राम के गढ़ में है 667 चीनी सैनिकों का कब्रिस्तान....  

झारखंड के रामगढ़ में है चाइना कब्रिस्तान, जहां 667 चीनी सैनिकों की है कब्र

Brajesh Roy

इन दिनों देश में सदन से लेकर सड़क तक भारत चीन संबंध ही चर्चा का विषय है. चर्चा के बीच हालात ऐसे बन गए हैं कि लगता है अब युद्ध होकर ही रहेगा.

विशेषज्ञ दिन रात विश्लेषण में जुटे हैं कि युद्ध हुआ तो कौन किसपर और कितना भारी पड़ेगा? दरअसल पचपन साल बाद भारत-चीन के बीच डोकलाम पठार को लेकर जो गतिरोध सामने आया है, उसके कारण दोनों देश में तनाव बढ़ता जा रहा है. भारत चीन के कूटनीतिक चाल का अगला मुकाम निकट भविष्य में क्या होगा इस पर हम एक रोचक जानकारी आपसे साझा कर रहे हैं.


आपको यह जानकार हैरानी होगी कि झारखंड की राजधानी रांची से महज 50 किमी की दूरी पर रामगढ़ जिला में 667 चीनी सैनिकों की कब्र है. इतना ही नहीं इस कब्रिस्तान के रख रखाव का ख्याल भारतीय परंपरा और संस्कार के तहत ही आज भी होता है.

रामगढ़ जिला में 667 चीनी सैनिकों की कब्र

आइए आप भी जान लीजिए, भारत-चीन के बीच उत्पन्न हुए वर्तमान हालात के मध्य हमारी समृद्ध परंपरा और संस्कार कैसे बेमिसाल हैं. सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान जान गंवा बैठे चीनी सैनिकों की कब्र को आज भी हमारे देश में कितना महत्व दिया जाता है? भारतीय उदार परंपरा का उदाहरण है रामगढ़ में स्थित यह चीनी कब्रिस्तान.

प्रकृति की गोद में बसे झारखंड प्रदेश के घने जंगल, ऊंचे नीचे पहाड़ और कलकल बहती नदियां हमेशा से लोगों को आकर्षित करती आ रही हैं. सामरिक दृष्टिकोण से  झारखंड के कई इलाके अतीत काल में भी अहमियत वाले माने जाते रहे हैं. रांची से लगभग 50 किमी उत्तर की दिशा में एक छोटा सा जिला है रामगढ़. पहाड़, जंगल,नदी के साथ खान खनिज संपदा से भरा पूरा इस रामगढ़ जिला ने प्राचीन काल से अंग्रेजी हुकूमत तक महत्वपूर्ण रहा है.

यही वजह है कि सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान 1939 से 1945 तक रामगढ़ ब्रिटिश सेना के साथ मित्र राष्ट्र के सैनिकों के लिए एक महफूज पनाहगार रहा था. यहां उन दिनों सिर्फ चीन के लगभग एक लाख से ज्यादा सैनिक यहां के कैंप में रहा करते थे. मित्र राष्ट्र के लिए तब लड़ते हुए चीनी सैनिकों ने तत्कालीन भारत के शासक ब्रिटिश हुकूमत को खूब सहयोग और मदद की थी.

यहां चार साल के प्रवास में युद्ध के दौरान कई चीनी सैनिकों की आसामयिक मौतें भी हुईं थी. वर्तमान रामगढ़ जिला की उपायुक्त आइएस अधिकारी बी राजेश्वरी की माने तो उस जमाने में यहां चीनी सैनिकों का कैंप बटालियन रहा था.

यहां रह रहे कई चीनी सैनिक युद्द में और दो सौ के लगभग सांप बिच्छू के काटने के साथ मलेरिया जैसी बीमारी की वजह से काल के गाल में समा गए थे. सैनिकों की मृत्यु के बाद उनके शवों को यहीं दफनाया गया था. तब से लेकर आज तक यहां के चाइना कब्रिस्तान की चर्चा देश विदेश में है.

क्या खास है रामगढ़ के चाइना कब्रिस्तान में...

घने जंगलों के बीच शांत वातावरण में रामगढ़ से 5 किलोमीटर और बरकाकाना से 4 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है चाइना कब्रिस्तान. झारखंड की बीजेपी एनडीए सरकार की पहल के कारण बनी पक्की और बेहतर सड़कों से आप यहां बड़ी सुगमता पूर्वक पहुंच सकते हैं.

चाइना कब्रिस्तान 8 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. इस कब्रिस्तान के अंदर भी पक्की सड़क बनाई गई है. पूरा कब्रिस्तान क्षेत्र एक सुंदर बाग की तरह आपको आकर्षित करता है. रंग बिरंगे खुशबू वाले करीने से सजी फूलों की क्यारियां आपको मोहने के लिए प्रयाप्त हैं.

इस चाइना कब्रिस्तान में उपासना स्थल और सैनिकों की समाधियां बड़े ही आकर्षक तरीके से बनी हुई हैं. बड़ी बात यह भी है कि सहज ही आपको चीनी कला और संस्कृति की झलक यहां दिख जाएगी. चाइना कब्रिस्तान के भीतर एक स्तंभ है जिसकी ऊंचाई लगभग 30 फुट है.

चीनी सैनिकों की वीरता के गवाह के तौर पर एक शिलालेख भी है जिसपर लिखा गया है कि किस तरह युद्ध के दौरान सैनिको ने अपनी वीरता का परिचय दिया था. यहां हर कदम पर आपको चीनी सैनिकों के साहस से परिचय होगा तो आप यह भी मानेंगे कि इस धरोहर को कितनी शिद्धत से हमारी सरकार ने सहेज कर रखा है. आज भी भारत चीन के योद्धाओं को अपने संस्कार के तहत वही सम्मान देता है जिसकी शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत के समय हुई थी.

और क्या है खास इस चाइना कब्रिस्तान में...

1939 से 1944 के बीच चायनीज सैनिकों ने भारत की काफी मदद की थी और जापानी सैनिकों को भारत पर कब्जा जमाने से रोकने में भी इन सैनिकों की अहम भूमिका रही थी. उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था.

ब्रिटेन, अमेरिका तथा चीन समेत कई देश मिलकर जर्मनी से युद्ध कर रहे थे. इंगलैंड, अमेरिका तथा अन्य मित्र देशों के सैनिकों के साथ मिलकर चीनी फौज भी जापान और जर्मनी से लोहा ले रही थी. तब अदम्य साहस के बलबूते पर चीनी सैनिकों ने जापानी सेना का न केवल डटकर मुकाबला किया था बल्कि उनके मंसूबों को पानी पानी कर दिया था. इस चाइना कब्रिस्तान में 667 कब्र इस बात की गवाही आज भी देती दिखाई पड़ती हैं.

यहां ताईवान के राजा च्यांग काई शेक का भी एक कब्र है जिसे खूबसूरत तरीके से निर्मित किया गया है. च्यांग काई शेक के साथ कुल 667 चीनी सैनिकों की कब्र यहां आपको सीधे सेकेंड वर्ल्ड वार की यादें ताजा कर देती हैं.

इस काब्रिस्तान की खास बात एक और भी है. यहां वर्ग और पद अनुसार चीनी सैनिकों को को दफनाया गया है. यहां वीर सैनिकों की समाधि के साथ-साथ भगवान बुद्ध का एक मंदिर भी स्थापित है. बड़ी बात यह भी है कि मृत चीनी  सैनिकों के परिजन कोलकाता, चाइना और ताइवान से साल में दो तीन बार यहां जरूर आते हैं. एक तरह से देश विदेश के पर्यटकों के लिए भी रामगढ़ का चीनी कब्रिस्तान आज एक दर्शनीय स्थल के तौर पर विकसित हो चुका है.

इधर फिलहाल इन सबसे परे चीन भारत को उकसाने के लिए नए-नए अवसर तलाश रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बन जाए. चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल करना चाहता है. भारत और चीन एशिया के दो बड़े राष्ट्र हैं, जिनकी आबादी लगभग 2.7 अरब है और दोनों ही राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार हैं. यदि इनके बीच युद्ध होता है, तो निश्चित रूप से विनाश बहुत बड़े पैमाने पर होगा, और दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

बहरहाल चीन को आज भी भारत से सीख लेने की जरूरत है. भारत न केवल अपने संस्कार और उदारता के लिए जाना जाता है बल्कि हम ज्ञान भी बांटते आये हैं. इसलिए चीन के लिए यही कहना सही होगा... बुद्धं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि.