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साइबर क्राइम पर सख्त सरकार: 9,800 वेबसाइट और 46,000 ट्विटर एकाउंट पर कार्रवाई

साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए सरकार का अभियान तेज हो गया है.

Yatish Yadav

साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए सरकार का अभियान तेज हो गया है. इस अभियान तहत सरकारी एजेंसियों ने आतंकवाद से संबंधित और भड़काऊ सामग्री वाली तकरीबन 9,800 वेबाइट्स और 46,000 ट्विटर एकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया है. सरकारी एजेंसियों की अगली लिस्ट में बड़े पैमाने पर वैसे आपराधिक गिरोहों पर नजर है, जिन पर ड्रग, हथियार, चरमपंथी विचारों के प्रचार-प्रसार, आतंकवादियों की भर्ती, दूसरे आतंकवादी समूहों से संपर्क रखने आदि गतिविधियों में संलिप्त होने का शक है.

वर्चुअल वर्ल्ड में कई मोर्चों पर उभर रही चुनौतियों से निपटने के मकसद से ऐसी गतिविधियों के खिलाफ इस समग्र अभियान की शुरुआत की गई है. डेटा चोरी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुरक्षा उल्लंघन, फेक न्यूज के प्रसार, भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारे जाने में मेसेंजर सेवाओं की भूमिका और कश्मीर घाटी में आतंकवादी संगठनों द्वारा सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल आदि वजहों से सरकार ने इस तरह का कदम उठाने का फैसला किया.


अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की सख्त जरूरत

इस सिलसिले में फ़र्स्टपोस्ट द्वारा सरकारी दस्तावेजों की पड़ताल करने से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर इस तरह की आपत्तिजनक सामग्रियों के खिलाफ यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. सुरक्षा एजेंसियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि साइबर प्लेटफॉर्म की निगरानी और नियमन पर अंतराष्ट्रीय करार, द्विपक्षीय समझौतों और विश्व स्तर पर जानी-मानी इंडस्ट्रीज के साथ एमओयू के जरिये इस सिलसिले में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाया जाए.

सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की अगुवाई वाले राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनसीएसएस) के सामने भी यह मुद्दा उठाया गया है. इसके अलावा, गृह मंत्रालय पहले ही प्रमुख सर्विस प्रोवाइडर्स के सर्वरों के स्थानीयकरण और अलग क्लाउड की तैनाती के मुद्दा पर सक्रिय हो चुका है. दरअसल, चीन और जर्मनी में माइक्रोसॉफ्ट ने कुछ इसी तरह की व्यवस्था की है.

सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आईटी कानून में भी संशोधन मुमकिन

सूत्रों ने यह भी बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो साइबर संसार में हो रही विध्वंसकारी गतिविधियों से निपटने के लिए आईटी कानून में संशोधन भी किए जाएंगे। इसके अलावा, इससे संबंधित कानूनी और नियामकीय ढांचे को भी बेहतर बनाने के लिए प्रयास जारी है.

सूत्रों ने बताया, 'इस तरह के सुझाव हैं कि विदेशी कम्युनिकेशन एप्लिकेशन कंपनियों को भारतीय कानून और यहां के कानून का पालन सुनिश्चित करने वाली एजेंसियों की जरूरतों के मुताबिक काम करने के लिए सहमत करने की खातिर भारत को अपनी आर्थिक और बाजार संबंधी ताकत का उपयोग करना चाहिए. उल्लंघन संबंधी सूचना मुहैया कराने को जरूरी बनाने का भी एक और प्रस्ताव है, जिस पर चर्चा चल रही है. चूंकि, इस सिलसिले में हमारे पास उचित कानून नहीं है, लिहाजा इस खतरे को ठीक-ठीक समझने के मकसद से सभी इकाइयों के लिए डिस्क्लोजर पॉलिसी बनाने पर विचार किया जा रहा है.'

सूत्र के मुताबिक, 'इस चुनौती से निपटने में कम से कम सहयोग मिलने के बावजूद संबधित इकाइयां खतरों को ढूंढने और उन्हें बेअसर करने के साथ वेबसाइटों पर आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी सामग्री और सोशल मीडिया पर मौजूद भड़काऊ सामग्री के खिलाभ अभियान चला रही हैं. इस तरह की वेबसाइटों का सर्वर भारत से बाहर है. कंप्यूटर एमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम-भारत को इस तरह के उपायों पर आगे बढ़ने को कहा जा रहा है.'

सूत्रों का यह भी कहना था कि अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन की प्रक्रिया का सभी देशों में एक जैसा नहीं होना, अलग-अलग देशों में अलग-अलग साइबर कानून, पारस्परिक कानूनी सहायता से जुड़े समझौतों की जटिल प्रक्रिया और अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय करार की कमी सुरक्षा एजेंसियों के काम करने की दिशा में बड़ी बाधा हैं.

यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि भारत में 120 करोड़ टेलीफोन उपभोक्ता हैं, जबकि इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 42 करोड़ है. साथ ही, देश में 28 करोड़ लोग मोबाइल के जरिये इंटरनेट का उपयोग करते हैं. संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल साइटरसिक्योरिटी इंडेक्स 2017 में मौजूद कुल 165 देशों की सूची में भारत 23वें स्थान पर था. देश में यूजर्स की बड़ी संख्या होने के बावजूद सर्विस प्रदान करने वाली विदेशी कंपनियां 'एनक्रिप्शन की' मुहैया कराने से मना करती रही हैं. इसके अलावा, कानूनी आवश्यकताओं के मामले में प्रतिक्रिया को लेकर भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से काफी देरी हुई है.

सेंटर ऑफ एक्सिलेंस बनाने की तैयारी

प्रतीकात्मक तस्वीर

सरकार सोशल मीडिया की निगरानी, केंद्रीय एजेंसियों द्वारा विकसित किए गए टूल को राज्य पुलिस के साथ साझा करने, आईटी काडर के गठन, नॉलेज पार्टनर्स, साइबरवॉर रूम के लिए डोमेन एक्सपर्ट्स की नियुक्त आदि मकसद को ध्यान में रखते हुए साइबर कम्युनिकेशन, मॉनिटरिंग और एनालिसिस के लिए सेंटर (सेंटर ऑफ एक्सिलेंस) बनाने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है.

सूत्रों ने बताया कि दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर को चीफ टेक्निकल ऑफिसर के पद पर नियुक्त किए जाने की खबर है. इससे बाकी राज्य भी इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे.

इस सिलसिले में प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक, सरकार क्रिप्टोकरेंसी के मामले में कानूनी स्थिति को लेकर स्पष्टता मुहैया कराने के लिए भी एक प्रस्ताव पर काम कर रही है. इसका मकसद वैसे आपराधिक तत्वों से निपटना है, जो साइबर स्पेस का इस्तेमाल अपने गलत इरादों के लिए करते हैं और अपराध को अंजाम देते हैं. पंजाब में अपहरण के एक मामले के बाद तत्काल इस प्रस्ताव की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया गया. अपहरण के इस मामले में फिरौती की रकम बिटकॉइन में मांगी गई थी. दरअसल, सरकार न्यायाधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दों को सुलझा कर नियमन तैयार करना चाहती है.

सूत्रों का यह भी कहना था, 'चूंकि कई क्षेत्रों में फिलहाल क्रिप्टोकरेंसी न तो कानूनी है और न ही गैर-कानूनी, इसलिए सुरक्षा एजेंसियों ने भारत में इसकी गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए इंटरपोल द्वारा विकसित टूल का इस्तेमाल करने का फैसला किया गया है. सरकारी एजेंसियों को मुफ्त में इस उपकरण की पेशकश की गई है. यह (क्रिप्टोकरेंसी) एक गंभीर राष्ट्रीय खतरा है.'