निर्वाचन आयोग (ईसी) और विधि आयोग की कोशिशों के बावजूद केंद्र सरकार पार्टियों के रजिस्ट्रेशन और इसे रद्द करने के लिए कोई सख्त कानून बनाने में नाकाम रही है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के जवाबी हलफनामे में यह बात कही गई है. याचिका में मांग की गई है कि अगर कोई नेता अभियुक्त है और वह अपनी अयोग्यता के दौरान पार्टी बनाता है और पद संभालता है तो उसपर रोक लगाई जानी चाहिए.
केंद्र की ओर से 21 मार्च को दायर हलफनामे के जवाब में वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने जवाबी हलफनामे में यह बात कही है.
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि पार्टियों के पदाधिकारी की नियुक्ति उनका अपना मामला है और चुनाव आयोग इस वजह से किसी पार्टी को रजिस्ट्रेशन से नहीं रोक सकता कि उसके किसी पदाधिकारी को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया गया है. उपाध्याय ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि सरकार चुनाव आयोग की ओर से रखे गए प्रस्ताव पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है.
उन्होंने कहा है, हलफनामे में कहा गया है कि पार्टियों के रजिस्ट्रेशन और उसे रद्द करने के संबंध में मौजूदा प्रावधानों को मजबूत करने के लिए विधि मंत्री के नाम मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ने 15 जुलाई 1998 को एक चिट्ठी लिखी. इसमें चुनाव सुधार के प्रस्ताव दिए गए थे लेकिन इन प्रस्तावों पर केंद्र सरकार कार्रवाई करने में नाकाम रही.
हलफनामे में यह भी कहा गया, ‘पिछले चार दशकों से हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा रहा है. राजनीति में अपराधीकरण को लेकर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने जो वार्षिक अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग जारी की उसमें भारत का स्थान गिरता चला गया. चुनाव और पार्टियों में सुधार के लिए कई समितियों और आयोगों ने सरकार से सिफारिशों की.’
याचिका में निर्वाचन व्यवस्था को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और पार्टी के भीतर लोकतंत्र के दिशा-निर्देश तय करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है.