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मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को चलाने के लिए केंद्र ने गठित की समिति

जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार सुबह अध्यादेश को मंजूरी दी और राष्ट्रपति ने भी इसे मंजूरी दे दी है

FP Staff

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) के संचालन के लिए एक समिति का गठन करने संबंधी अध्यादेश पर बुधवार को हस्ताक्षर किए. यह व्यवस्था तब तक के लिए है, जब तक नए आयोग के गठन को मंजूरी देने वाला विधेयक संसद से पारित नहीं हो जाता. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बात की जानकारी दी.

एमसीआई के स्थान पर नेशनल मेडिकल कमीशन (राष्ट्रीय मेडिकल आयोग) के गठन संबंधी विधेयक संसद में लंबित है. जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार सुबह अध्यादेश को मंजूरी दी और राष्ट्रपति ने भी इसे मंजूरी दे दी है.


उन्होंने कहा कि चूंकि एमसीआई की निर्वाचित इकाई का कार्यकाल जल्द ही समाप्त होने वाला है, ऐसे में इसके कामकाज को जारी रखने के लिए प्रतिष्ठित व्यक्तियों की एक समिति की जरूरत महसूस की जा रही थी. उन्होंने कहा कि प्रतिष्ठा वाले पेशेवर इस समिति में शामिल किए जाएंगे.

एमसीआई को चलाने वाले बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल, एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया और निखिल टंडन शामिल होंगे. इसके अलावा डॉ जगत राम, डॉ बीएम गंगाधर, डॉ एस वेंकटेश और डॉ बलराम भार्गव भी इसमें शामिल हैं.

बिल की प्रमुख बातें

अगर आगामी सत्र में बिल पास हो गया तो भारतीय चिकित्सा परिषद् (MCI), जो कि चिकित्सा शिक्षा को रेगुलेट करता है उसको समाप्त कर दिया जाएगा और उसकी जगह पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) का गठन किया जाएगा.

दरअसल इस बिल को लाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ साल पहले से ही कवायद शुरू कर दिया था. 15 दिसंबर 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) बिल को स्वीकृति दे दी थी. इस बिल का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तर के समान बनाने का है.

प्रस्तावित आयोग इस बात को सुनिश्चित करेगा की अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों लेवल पर बेहतरीन चिकित्सक मुहैया कराए जा सकें... इस बिल के प्रावधान के मुताबिक प्रस्तावित आयोग में कुल 25 सदस्य होंगे, जिनका चुनाव कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में होगा. इसमें 12 पदेन और 12 अपदेन सदस्य के साथ साथ 1 सचिव भी होंगे.

इतना ही नहीं देश में प्राइमरी हेल्थ केयर में सुधार लाने के लिए एक ब्रिज-कोर्स भी लाने की बात कही गई है, जिसके तहत होमियोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सक भी ब्रिज-कोर्स करने के बाद लिमिटेड एलोपैथी प्रैक्टिस करने का प्रावधान है. वैसे इस मसौदे को राज्य सरकार के हवाले छोड़ दिया गया है कि वो अपनी जरुरत के हिसाब से तय करें की नॉन एलोपैथिक डॉक्टर्स को इस बात की आज़ादी देंगे या नहीं.

प्रस्तावित बिल के मुताबिक एमबीबीएस की फाइनल परीक्षा पूरे देश में एक साथ कराई जाएगी और इसको पास करने वाले ही एलोपैथी प्रैक्टिस करने के योग्य होंगे. दरअसल पहले एग्जिट टेस्ट का प्रावधान था, लेकिन बिल में संशोधन के बाद फाइनल एग्जाम एक साथ कंडक्ट कराने की बात कही गई है.

बिल में प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में दाखिला ले रहे 50 फीसदी सीट्स पर सरकार फीस तय करेगी वही बाकी के 50 फीसदी सीट्स पर प्राइवेट कॉलेज को अधिकार दिया गया है की वो खुद अपना फीस तय कर सकेंगे.