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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की अर्जी से उलझनें बढ़ेगीं

अयोध्या विवाद पर मोदी सरकार ने केन्द्रीय गृह सचिव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है.

Virag Gupta

अयोध्या विवाद पर मोदी सरकार ने केन्द्रीय गृह सचिव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. केंद्र सरकार ने इस अर्जी में कहा है कि जमीन का विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ का है और बकाया गैर-विवादित जमीन को रामजन्मभूमि न्यास और अन्य लोगों को वापस करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी दी जाए.

नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में लगभग 67.073 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, जिसके बाद 42 एकड़ जमीन वापस लेने के लिए 6 जून 1996 को न्यास द्वारा दिए गए प्रतिवेदन को केंद्र सरकार ने 14 अगस्त 1996 को निरस्त कर दिया था. इसके विरुद्ध न्यास द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई, जिस पर 21 जुलाई 1997 के आदेश से अदालत ने कोई राहत देने से इंकार कर दिया.


रॉयटर्स पिक्चर

उसके बाद असलम भूरे और अन्य मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने सन् 2003 में संपूर्ण 67 एकड़ भूमि पर यथास्थिति या स्थगन आदेश जारी कर दिया.

सरकार की अर्जी में कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वामित्व विवाद या टाइटिल सूट के मामले में 30 सितंबर 2010 को फैसला कर दिया है. सरकार के अनुसार संविधान पीठ के पूर्ववर्ती फैसले को भी तीन जजों की बेंच द्वारा सितंबर 2018 के आदेश से फिर से पुष्ट कर दिया गया है. केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा कि इस्माल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर केंद्र चाहे तो अयोध्या एक्ट के तहत मूल विवाद के 0.313 एकड़ इलाके के अलावा अतिरिक्त अधिग्रहित जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटा सकती है.

केंद्र सरकार की अर्जी के अनुसार भूमि अधिग्रहण को 25 साल से ज्यादा हो गए हैं, इसलिए गैर-विवादित भूमि को रामजन्मभूमि न्यास और अन्य मूल मालिकों को वापस कर देना चाहिए. पिछले कई महीने पहले अयोध्या विवाद पर सीएएससी थिंक टैंक संस्था के माध्यम से दो बातें कही गईं थीं, जिन पर अब अमल हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बजाए अब पांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया है. दूसरा इस नई अर्जी के माध्यम से अब केंद्र सरकार भी अयोध्या विवाद के मामलों में पक्षकार बन गई है. लेकिन इस नई अर्जी में की गई मांगों से पूरे मामले के उलझने का खतरा भी बढ़ गया है.

सभी मामलों की सुनवाई एक साथ होगी

केंद्र सरकार द्वारा दाखिल इस अर्जी में 15 साल पुराने आदेश में बदलाव की मांग की गई है. पुराना आदेश 5 जजों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया था इसलिए उसमें संविधान पीठ द्वारा ही अब बदलाव किया जा सकता है. इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा टाइटिल सूट मामले में 2010 में दिए गए फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में आठ वर्षों से अपील लंबित हैं, जिनकी सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने पांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया है.

सुप्रीम कोर्ट के जज बोवड़े की अस्वस्थता की वजह से मामले की 29 जनवरी की सुनवाई स्थगित करनी पड़ी और अब आगामी तारीख पर फिर से सुनवाई शुरू होने की संभावना है. केंद्र सरकार टाइटिल सूट मामलों में पक्षकार नहीं है, लेकिन इस अर्जी की सुनवाई भी उन्हीं मामलों के साथ होने की संभावना है. इस अर्जी पर उत्तर प्रदेश सरकार, विश्व हिंदू परिषद, मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड समेत अनेक पक्षों के जवाब के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और फैसला होगा, जिसमें लंबा समय भी लग सकता है.

अधिग्रहण रद्द होने से मंदिर निर्माण हेतु जमीन

कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने लगभग 67 एकड़ की जमीन का अधिग्रहण करके पूरे मामले को उलझा दिया था. पिछले 25 सालों में बीजेपी समेत सभी सरकारों और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के अनेक दौर के बावजूद जमीन की उलझन खत्म नहीं हुई. केंद्र सरकार की अर्जी पर फैसले के बाद 42 एकड़ जमीन तो रामजन्मभूमि न्यास के पास वापस लौट जाएगी, लेकिन बकाया 25 एकड़ जमीन अन्य पक्षों को वापस करना होगा. जमीन वापस होने के बाद मंदिर निर्माण के लिए फिर से सभी पक्षों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे.

सुप्रीम कोर्ट के 1997 के फैसले की बाधा

रामजन्मभूमि न्यास द्वारा जमीन वापस लेने के लिए दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई 1997 को निरस्त कर दिया था. उस मामले को केंद्र सरकार अब 21 साल बाद कैसे फिर से पुर्नजीवित कर सकती है? रामजन्मभूमि न्यास, टाइटिल सूट वाले मुख्य मामले में भी पक्षकार है. तो इस बात पर भी सवाल खड़े होंगे कि न्यास ने जमीन वापस लेने के लिए सरकार या सुप्रीम कोर्ट के सामने नई अर्जी क्यों नहीं दी? केंद्र सरकार द्वारा 2003 के आदेश में बदलाव के लिए यह अर्जी लगाई गई है, पर इसकी सुनवाई में अनेक पुरानों मामलों के पिटारे खुलेंगे.

विवादित जमीन पर भ्रम

केंद्र सरकार द्वारा दाखिल अर्जी में विवादित भूमि को 0.313 एकड़ बताया गया है. केंद्र सरकार द्वारा अन्य गैर-विवादित भूमि के अधिग्रहण को इस अर्जी के माध्यम से अप्रत्क्षयतः खत्म करने की बात कही गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को 2.77 एकड़ मानते हुए उसको तीन पक्षों में बांटने का आदेश दिया था.

गर्भगृह वाले स्थान को रामलला के लिए, राम चबूतरा और सीता रसोई के स्थान को निर्मोही अखाड़ा के लिए और बाहरी परिधि के स्थान को सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने के लिए हाईकोर्ट ने फैसला दिया था. केंद्र सरकार की अर्जी के अनुसार बकाया जमीन से विवादित स्थान पर जाने के लिए मार्ग सुनिश्चित करने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने पूरी जमीन पर ही स्थगन आदेश दिया था. केंद्र सरकार की अर्जी से अब इस मामले के सभी पहलू संविधान पीठ के सम्मुख फिर से उभरेंगे, जिन पर आम चुनावों के पहले सहमति या फैसला मुश्किल ही लगता है.

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संवैधानिक मामलों के जानकार हैं, जिन्होंने 'Ayodhya's Ram Temple in Courts' का संपादन किया है. इनका Twitter हैंडल @viraggupta है)