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गोरखपुर: इंसेफेलाइटिस से 40 साल में 18 हजार बच्‍चों की मौत

गोरखपुर क्षेत्र में इंसेफेलाइटिस का पहला मामला 1977 में सामने आया था

FP Staff

पूर्वांचल की त्रासदी बन चुका जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) खत्‍म कैसे होगा. जनता के काफी संघर्ष के बाद वर्ष 2012 और 2014 में इंसेफेलाइटिस खत्‍म करने के लिए राष्ट्रीय प्रोग्राम बना, लेकिन अब तक उसे लागू नहीं किया गया है. लगभग सभी सरकारें इस मामले में संवेदनहीन रही हैं.

इस घातक बीमारी को खत्‍म करने के लिए 15 साल से संघर्ष कर रहे इंसेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कैम्पेनर डॉ. आरएन सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार को यहां के लोगों को कम से कम 40 राउंड खून से खत लिखा है लेकिन यह प्रोग्राम लागू नहीं हुआ. प्रोग्राम दिल्‍ली की अलमारी में बंद है और बच्‍चे मर रहे हैं.


उनका कहना है कि योगी आदित्‍यनाथ ने इंसेफेलाइटिस को खत्‍म करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक लड़ाई लड़ी है. प्रोग्राम बनाने के लिए आवाज उठाई है. लेकिन प्रोग्राम बनवाने का काम राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद ने करवाया है. अब इसे लागू करवाने की जिम्‍मेदारी वर्तमान सरकार की है. उसे लागू करना चाहिए.

प्रोग्राम क्‍यों नहीं लागू हुआ, यह पूछने के लिए हमने केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍य मंत्री फग्‍गन सिंह कुलस्‍ते से सवाल किया. उन्‍होंने बात सुनी और फोन काट दिया.

गोरखपुर में हुई मासूमों की मौत के बाद भी लापरवाही सामने आ रही है.

गोरखपुर क्षेत्र में इंसेफेलाइटिस का पहला मामला 1977 में सामने आया था. यह बीमारी अब तक लगभग 18 हजार मासूमों की जान ले चुकी है. इसके बावजूद अब तक प्रोग्राम ठंडे बस्‍ते में है. पिछले कुछ समय से हर साल औसतन 600 लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. हालांकि डॉ. सिंह बताते हैं कि यह आंकड़ा सिर्फ मेडिकल कॉलेज का है. असल में करीब एक लाख बच्‍चों की मौत हो चुकी है.

हर साल जुलाई से लेकर दिसंबर तक यह बीमारी मौत का तांडव लेकर आती है. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज इसकी वजह से मौत का अस्‍पताल बना रहता है. अपने बच्‍चों के जीवन की उम्‍मीद लेकर मेडिकल कॉलेज आने वाले लोग अक्‍सर यहां निराश होते हैं.