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हिंदी 'थोपे' जाने के मुद्दे पर केंद्र-डीएमके आमने-सामने

डीएमके नेता स्टालिन ने आरोप लगाया कि केंद्र जानबूझकर जबरन गैर-हिंदी राज्यों पर हिंदी और संस्कृत को थोप रही है

Bhasha

केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने हिंदी थोपने का आरोप केंद्र पर लगाने वाली डीएमके की आलोचना करते हुए रविवार को आश्वासन दिया है कि हिंदी को बिल्कुल भी थोपा नहीं जाएगा.

उन्होंने कहा कि डीएमके के कार्यवाहक अध्यक्ष एम के स्टालिन का आरोप सही नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हिंदी को बिल्कुल थोपा नहीं जा रहा है.’


क्या हैं स्टालिन के आरोप?

इससे पहले रविवार को डीएमके नेता स्टालिन ने आरोप लगाया कि केंद्र जानबूझकर जबरन गैर-हिंदी राज्यों पर हिंदी और संस्कृत को थोप रही है.

उन्होंने केंद्र से उस प्रस्ताव पर सफाई मांगी जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों को हिंदी में डब किए जाने या हिंदी सबटाइटल के साथ रिलीज करने की बात कही गई है.

स्टालिन ने कहा कि क्षेत्रीय सिनेमा पर जबरन हिंदी को थोपा जा रहा है और डीएमके इसका पुरजोर तरीके से विरोध करेगी.

उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ एक जैसा सम्मान किया जाना चाहिए. हिंदी को इन भाषाओं पर तरजीह दिए जाने से भारत की एकता और अखंडता पर प्रभाव पड़ेगा.

क्या है मुद्दा?

इस संदर्भ में संसदीय पैनल की सिफारिश राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजी गई है. इस पैनल ने सिफारिश की है कि राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को या तो हिंदी में डब करे या हिंदी सबटाइटल के साथ रिलीज करे, ताकि हिंदी बोलने वाले दर्शक इन फिल्मों का मजा ले सकें.

आधिकारिक भाषाओं की संसदीय समिति ने यह भी सिफारिश की है कि फिल्म निर्माता एनएफडीसी को फिल्म की स्क्रिप्ट हिंदी में जमा करें.

केंद्र सरकार ने क्या दिया जबाब?

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री सीतारमण ने स्टालिन के आरोपों को बेबुनियाद बताया. उन्होंने सवाल उठाया कि जब उनका दल कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा था, तब वह क्या कर रहा था? यहां उनका इशारा तब हिंदी थोपे जाने की ओर था.

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ योजना का हवाला दिया, जिसमें विभिन्न राज्यों के बीच आदान-प्रदान शामिल है.

उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि इस योजना में गैर तमिल भाषी लोगों के लिए तमिल भाषा और तमिलनाडु के बारे में जानने की बात शामिल है.

उन्होंने कहा, ‘जब हमारे प्रधानमंत्री ऐसे प्रयास करते हैं तो फिर हिंदी थोपने का सवाल कहां से आता है? स्टालिन द्वारा हिंदी थोपने का आरोप लगाया जाना सही नहीं है क्योंकि यूपीए का हिस्सा रही डीएमके यूपीए के समय में हिंदी को थोपे जाने से नहीं रोक पाई थी.’

सीबीएसई स्कूलों में ‘त्रि-भाषा फार्मूला’ के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह प्रणाली लंबे समय से प्रचलन में थी और एनडीए सरकार ने ‘कोई नई योजना नहीं लाई है.’