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CBI Vs CBI: SC ने सुरक्षित रखा आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने संबंधी याचिका पर फैसला

फैसला सुरक्षित रखने से पूर्व कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार की खिंचाई की और पूछा कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने से पहले सरकार ने सेलेक्शन कमिटी से सलाह क्यों नहीं ली

FP Staff

सीबीआई बनाम सीबीआई मामले में केंद्र सरकार द्वारा आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. फैसला सुरक्षित रखने से पहले कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार की खिंचाई की और पूछा कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने से पहले सरकार ने सेलेक्शन कमिटी से सलाह क्यों नहीं ली.

वहीं अपनी दलील में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग  (CVC) ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि असाधारण स्थिति के लिए असाधारण उपाय जरूरी है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ के समक्ष CVC की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी. उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसलों और सीबीआई को संचालित करने वाले कानूनों का जिक्र किया और कहा कि (सीबीआई पर) आयोग की निगरानी के दायरे में इससे जुड़ी 'आश्चर्यजनक और असाधारण परिस्थितियां' भी आती हैं.

इस पर पीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उसे बताया था कि जिन परिस्थितियों में ये हालात पैदा हुए उनकी शुरुआत जुलाई में ही हो गई थी. पीठ ने कहा,'सरकार की कार्रवाई के पीछे की भावना संस्थान के हित में होनी चाहिए.' शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सीबीआई निदेशक और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच झगड़ा रातोरात सामने आया जिसकी वजह से सरकार को चयन समिति से परामर्श के बगैर ही निदेशक के अधिकार वापस लेने को विवश होना पड़ा हो.

CVC ने जांच शुरू की लेकिन वर्मा ने महीनों तक दस्तावेज ही नहीं दिए

उसने कहा कि सरकार को 'निष्पक्षता' रखनी होगी और उसे सीबीआई निदेशक से अधिकार वापस लेने से पहले चयन समिति की सलाह लेने में क्या मुश्किल था. प्रधान न्यायाधीश ने सीवीसी से यह भी पूछा कि किस वजह से उन्हें यह कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि यह सब रातोंरात नहीं हुआ.

मेहता ने कहा कि सीबीआई के शीर्ष अधिकारी मामलों की जांच करने के बजाए एक दूसरे के खिलाफ मामलों की तफ्तीश कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सीवीसी के अधिकार क्षेत्र में जांच करना शामिल है, अन्यथा वह कर्तव्य में लापरवाही की दोषी होगी. अगर उसने कार्रवाई नहीं की होती तो राष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय के प्रति वह जवाबदेह होता.

उन्होंने कहा कि सरकार ने सीबीआई निदेशक के खिलाफ जांच के लिए मामला उसके पास भेजा था. मेहता ने कहा, 'सीवीसी ने जांच शुरू की लेकिन वर्मा ने महीनों तक दस्तावेज ही नहीं दिए.'

अधिकारी के पास निदेशक के अधिकार होने चाहिए

राकेश अस्थाना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत से कहा कि इस मामले में वह तो व्हिसल-ब्लोअर थे लेकिन सरकार ने उनके साथ भी एक समान व्यवहार किया. उन्होंने कहा कि सरकार को वर्मा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग को जांच को अंतिम नतीजे तक ले जाना चाहिए.

आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन ने कहा कि केंद्र के आदेश ने उनके सारे अधिकार ले लिए. उन्होंने कहा कि सामान्य उपबंध कानून की धारा 16 भी इस बिन्दु के बारे में है कि सीबीआई निदेशक जैसे अधिकारी को कौन हटा सकता है लेकिन यह अधिकारी को उसके अधिकारों से वंचित करने के बारे में नहीं है.

आलोक वर्मा के अभी भी जांच एजेंसी का निदेशक होने संबंधी अटॉर्नी जनरल की दलील के संदर्भ में नरिमन ने कहा,‘अधिकारी के पास निदेशक के अधिकार होने चाहिए. दो साल के कार्यकाल का यह मतलब नहीं कि निदेशक बगैर किसी अधिकार के सिर्फ पद के साथ विजिटिंग कार्ड रख सकता है.’

इस पर न्यायालय ने नरिमन से पूछा कि क्या वह किसी और की नियुक्ति कर सकती है तो नरिमन ने कहा, 'हां'. न्यायालय केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली, आलोक वर्मा की याचिका के साथ ही राकेश अस्थाना सहित जांच ब्यूरो के विभिन्न अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की शीर्ष अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल से जांच के लिए गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' की याचिका और आवेदनों पर सुनवाई कर रहा था.

(भाषा से इनपुट)