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CBI Vs CBI: देर से ही सही सरकार ने मामले में दखल दिया है, ये विवाद का अंत नहीं शुरुआत है

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार ने ये कार्रवाई मुख्य सतर्कता आयुक्त की सलाह पर की है. विवाद की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम भी बना दी गई है.

Yatish Yadav

सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार ने ये कार्रवाई मुख्य सतर्कता आयुक्त की सलाह पर की है. विवाद की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम भी बना दी गई है.

सरकार का कहना है कि सीबीआई की निष्पक्षता और साख बचाने के लिए उसे ये कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा. मोदी सरकार ने 1986 बैच के आईपीएस अफसर एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का कार्यकारी निदेशक बनाया है. नागेश्वर सीबीआई में ही संयुक्त निदेशक थे. अस्थाना और वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के बाद सीबीआई में कई अधिकारियों के ताबड़तोड़ तबादले किए गए हैं. इनमें से कई ऐसे अधिकारी हैं, जो राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच कर रहे थे. कार्यकारी सीबीआई निदेशक के आदेश पर आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के दफ्तरों को सील कर के उनकी जांच की जा रही है.


वहीं छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं. उनकी अर्जी पर शुक्रवार को सुनवाई हो सकती है.

कार्यकारी निदेशक एम. नागेश्वर राव ने बुधवार तड़के कार्यभार संभाला. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी में चल रही ये उठा-पटक और सरकार की कार्रवाई, दोनों ही अभूतपूर्व हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट

इससे पहले अपने खिलाफ घूसखोरी के केस को राकेश अस्थाना ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तार करने पर तो रोक लगा दी. मगर, अस्थाना के खिलाफ जांच जारी रखने का निर्देश दिया.

इस मामले में डीएसपी देवेंदर कुमार को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था. आरोप है कि दोनों अधिकारियों ने मीट कारोबारी मोईन कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की थी.

राकेश अस्थाना ने हाईकोर्ट से अपील की थी कि इस मामले से जुड़े सारे दस्तावेज अदालत अपने पास मंगाए और एफआईआर को रद्द करे. अस्थाना ने अपनी अर्जी में कहा था कि सेक्शन 17 के भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17 के मुताबिक उनके खिलाफ केस दर्ज करने से पहले उचित अधिकारी से अनुमति नहीं ली गई.

अस्थाना का ये भी कहना था कि उनके खिलाफ केस सतीश बाबू सना के बयान के आधार पर दर्ज किया गया. जबकि उन्होंने सना को गिरफ्तार करने की सिफारिश की थी. मगर अब वो उन्हीं के खिलाफ शिकायतकर्ता बन गया है.

वहीं, सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं. इनमें घूसखोरी से लेकर आपराधिक साजिश तक के मामले हैं.

सीबीआई का आरोप है कि अस्थाना की अगुवाई में डीएसपी देविंदर कुमार जांच के नाम पर वसूली का रैकेट चला रहे थे. मोईन कुरैशी के केस में भी उन्होंने फर्जी दस्तावेज तैयार किए. सीबीआई ने आरोप लगाया कि देविंदर कुमार ने सतीश सना का एक फर्जी बयान तैयार किया. सतीश सना मोईन कुरैशी केस में गवाह है. इस बयान को 26 सितंबर को दिल्ली में दर्ज किया हुआ बताया गया. जबकि जांच में पता ये चला कि सतीश सना तो उस दिन दिल्ली में था ही नहीं.

ये समझ से परे है कि जिस सतीश सना को सीबीआई गवाह बता रही है, उसे ही जांच एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर आरोपी बताकर गिरफ्तार करना चाहते हैं.

हाईकोर्ट ने अस्थाना और देविंदर कुमार की अर्जी पर सुनवाई के बाद सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से जवाब मांगा था. अदालत ने जांच एजेंसी को निर्देश दिया था कि इस मामले से जुड़े सारे दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड यानी मोबाइल फोन भी सुरक्षित रखे जाएं.

डिप्टी एसपी देविंदर कुमार जिन्हें सोमवार को गिरफ्तार किया गया था, उन्हें सात दिन की सीबीआई हिरासत में भेज दिया गया. सीबीआई का तर्क था कि देविंदर कुमार का सतीश सना को लेकर दिया गया बयान झूठा था और आपराधिक साजिश का हिस्सा था, ताकि वसूली के रैकेट को छुपाया जा सके और जांच को भटकाया जा सके.

सूत्र बताते हैं कि आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना को निलंबित करने की सिफारिश सरकार से की थी. लेकिन, सरकार ने उनकी सिफारिश पर अमल करने के बजाय दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया और सीबीआई में नया कार्यकारी निदेशक नियुक्त कर दिया.

हाई कोर्ट ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को भी नोटिस जारी किया है. सीबीआई इसी के तहत आती है. विभाग को 29 अक्टूबर तक इसका जवाब देना है. सरकार के सूत्रों का कहना है कि राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत ये कार्रवाई पूरी तरह से सही नहीं है. अस्थाना के ख़िलाफ़ कार्रवाई से पहले कार्मिक विभाग से मंज़ूरी नहीं ली गई. इस विभाग के प्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.

हालांकि अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद पीएम मोदी ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से मुलाकात की थी. लेकिन, सरकार के सूत्रों का कहना है कि अब ये लड़ाई केवल राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा की निजी रंजिश नहीं रह गई थी. इसका असर सीबीआई की विश्वसनीयता पर भी पड़ रहा था. इसीलिए उसे दोनों को छुट्टी पर भेजने को मजबूर होना पड़ा.

सरकार के सूत्रों का कहना है, 'अगर ये मान लिया जाए कि राकेश अस्थाना के खिलाफ दर्ज एफआईआर में दम नहीं है, तो आरोप ये लगेगा कि सीबीआई ऐसी एजेंसी है, जो अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ फर्जी केस दर्ज कर लेती है. ऐसे में आरोप ये भी लगेगा कि सीबीआई का ये हाल है तो भ्रष्टाचार के उन मामलों की जांच पर भी सवाल उठेंगे, जो सीबीआई के पास हैं. सवाल ये उठेगा कि सीबीआई भरोसेमंद जांच एजेंसी है भी या नहीं. क्योंकि इसके नंबर 1 और 2 अधिकारी ही एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.'

सूत्रों ने ये भी कहा कि अब जबकि एफआईआर दर्ज हो गई है, तो कानूनी प्रक्रिया पर रोक लगाना मुमकिन नहीं रहा. अब जांच तभी बंद होगी जब ये तार्किक रूप से मंजिल तक पहुंच जाएगी. कानून किसी आरोपी और जांच एजेंसी के खिलाफ मध्यस्थता की इजाजत नहीं देता. हालांकि अदालत, सबूतों को देखने और जांच एजेंसी का पक्ष सुनने के बाद अस्थाना के खिलाफ जांच रद्द करने का आदेश दे सकती है.

सूत्रों ने बताया है कि सीबीआई विवाद को लेकर देश की वाह्य गुप्तचर एजेंसी रॉ के चीफ अनिल धस्माना से भी इस बारे में मशविरा किया है. इसकी वजह ये है कि एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी सामंत गोयल भी इस मामले में संदिग्ध हैं.

फ़र्स्टपोस्ट ने पहले ही बताया था कि अगस्त महीने में ही पीएमओ दो बड़े सरकारी विभागों के प्रमुखों की लड़ाई झेल रहा है. इनमें एक खुफिया एजेंसी के प्रमुख हैं. इसी दौरान सीबीआई के दो सबसे बड़े अधिकारियों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच जंग छिड़ी हुई है.

फ़र्स्टपोस्ट को सूत्रों ने बताया है, 'पीएमओ को पता था कि रॉ को इस विवाद में घसीटा जा रहा था. फिर भी सख्त फैसला नहीं लिया गया. हालांकि रॉ के अधिकारी को आरोपी नहीं बनाया गया है, लेकिन मामले में उसका नाम शायद जान-बूझकर उछाला जा रहा है. अभी इस अधिकारी को निगरानी में रखा गया है. ये संदिग्ध खुफिया अधिकारी एक शानदार अफसर है. उसका बढ़िया रिकॉर्ड रहा है. लेकिन उस पर आरोप लगने से केंद्र सरकार पर काला धब्बा लगेगा. उसकी छवि को बहुत नुकसान होगा.'

सत्ता के गलियारों में बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या सरकार को दो बड़े अधिकारियों के बीच की जंग के एफआईआर दर्ज होने के रूप में सामने आने का अंदेशा था? फ़र्स्टपोस्ट ने पहले ही बताया था कि पीएम के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के बीच विवाद को दखल से सुलझाने की कोशिश की थी. लेकिन साफ है कि ये कोशिश नाकाम रही थी.

सूत्रों का कहना है, 'सरकारी अधिकारियों के बीच ऐसा सत्ता संघर्ष कोई नई बात नहीं है. लेकिन इन्हें शुरुआती दौर में ही दबा दिया जाता है. मगर, सीबीआई के मामले में लंबे समय से आरोप-प्रत्यारोप चल रहे थे. इस विवाद से सीबीआई की छवि को अपूरणीय क्षति पहुंची है. या तो ये सरकार इस विवाद को सुलझाने में दिलचस्पी नहीं रखती थी या फिर इसका सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण पूरी तरह ख़त्म हो गया है. सीबीआई के नंबर 2 अधिकारी पर घूसखोरी का आरोप इतना हल्का नहीं है, जितना सरकार की तरफ से बताया जा रहा है.'

मुक्केबाजी में हुक शॉट बहुत छोटा मगर करारा होता है. ये मारने वाले को विरोधी के करीब ले आता है. इससे बचाव करना मुश्किल होता है. यानी ये दुधारी तलवार होता है. मगर, इसका इस्तेमाल खूब होता है. आखिर क्यों ?

वजह ये कि सामने वाला इसे देख नहीं पाता. सीबीआई के मामले में यही हुआ. राकेश अस्थाना ने सतीश सना की गिरफ्तारी की सिफारिश की थी. लेकिन अब उन्हें ही इस मामले में आरोपी बना दिया गया है. सना ने जो चिट्ठी सीबीआई निदेशक को लिखी थी, उसके आधार पर 15 अक्टूबर को सीबीआई ने एफआईआर (13-A/2018) दर्ज कर ली.

आरोप लगाया गया कि एक दलाल ने राकेश अस्थाना के लिए मोईन कुरैशी से रिश्वत लेकर, कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की. ये मामला पहली बार 2014 में यूपीए सरकार के दौरान सामने आया था. सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक उसके पास सतीश सना का बयान है, जिसे सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दो बार यानी 4 और 20 अक्टूबर को दर्ज किया गया. इन बयानों में सतीश बाबू सना ने बताया कि मोईन कुरैशी केस की जांच कर रहे डीएसपी देविंदर कुमार और राकेश अस्थाना को इस मामले को रफा-दफा करने के लिए घूस में मोटी रकम दी गई.

फ़र्स्टपोस्ट के पास मौजूद एफआईआर के मुताबिक आरोप ये है कि इस दलाल को 2.95 करोड़ रुपए दिसंबर 2017 में दिए गए थे. सतीश सना ने सीबीआई निदेशक को भेजी अपनी शिकायत में बताया है कि मोईन कुरैशी केस में सीबीआई के जांच अधिकारी ने उसे 9 अक्टूबर 2017 को नोटिस भेजा. उसका बयान 12 अक्टूबर 2017 को दर्ज किया गया. उसे 17 अक्टूबर 2017 को फिर से नोटिस भेजकर 23 अक्टूबर 2017 को सीबीआई दफ्तर बुलाया गया.

सना ने अपनी शिकायत में लिखा है, 'मुझसे बार-बार एक ही तरह के सवाल किए जा रहे थे. वो पूछ रहे थे कि 2011 में मैंने मोईन कुरैशी को 50 लाख रुपए दिए थे क्या? मैने सीबीआई के जांच अधिकारी को बताया कि मैंने मोईन कुरैशी की कंपनी ग्रेट हाइट इन्फ्रा में 50 लाख रुपए का निवेश किया था. ये एक साफ-सुथरा निवेश था. मैंने इसका जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में भी किया था. मुझे 1 नवंबर 2017 को फिर से सीबीआई ऑफिस बुलाया गया. जांच अधिकारी देविंदर कुमार ने मुझसे फिर वही सवाल पूछे.'

सतीश सना ने आगे आरोप लगाया है कि उसे 30 नवंबर 2017 को फिर से तलब किया गया. उसका ये भी कहना है कि वो 2 दिसंबर 2017 को दुबई चला गया था. वहां उसकी मुलाकात पुराने परिचित मनोज प्रसाद से हुई. सना का कहना है कि मनोज प्रसाद और उसके भाई सोमेश प्रसाद ने मामले को सुलटा देने का भरोसा दिया और इसके एवज में 5 करोड़ रुपए मांगे. सना के मुताबिक उन दोनों ने दिल्ली में सीबीआई अधिकारियों से उसकी मौजूदगी में फोन पर बात की. सना का ये भी दावा है कि सीबीआई जांच के मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए उसने मनोज प्रसाद को दुबई में एक करोड़ रुपए दिए. इसके बाद उसने दिल्ली में 13 दिसंबर 2017 को 1.95 करोड़ रुपए और दिए.

सतीश सना ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है, 'मनोज प्रसाद को 2.95 करोड़ रुपए देने के बाद मेरे पास सीबीआई के नोटिस नहीं आए. लेकिन 13 फरवरी 2018 को मेरे पास फिर एक नोटिस ई-मेल से आया. ये नोटिस देविंदर कुमार ने मुझे भेजा था और मुझे कहा था कि मैं 19 फरवरी 2018 को सीबीआई दफ्तर आऊं. इतने पैसे देने के बाद भी मेरे पास नोटिस आया तो मैं और भी परेशान हो गया. मैंने तुरंत मनोज प्रसाद से बात की. मैंने फोन पर उसे बताया कि मेरे पास फिर से सीबीआई का नोटिस आया है. जबकि मुझे वादा किया गया था कि पैसे देने के बाद ऐसा नहीं होगा. तब मनोज प्रसाद ने मुझे कहा कि मुझे बाकी के 2 करोड़ रुपए देने होंगे, तभी सीबीआई से ये नोटिस आने बंद होंगे.'

आलोक वर्मा

सना का दावा है कि वो जून 2018 में सीबीआई के जांच अधिकारी के सामने पेश हुआ. 25 सितंबर को जब सतीश सना पेरिस जा रहा था, तो उसने दावा किया कि उसे हैदराबाद हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन ऑफिसर ने रोक लिया. उसके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी हुआ था कि उसे भारत छोड़ने से रोका जाए. सना के मुताबिक उसे पूछताछ के लिए फिर सीबीआई मुख्यालय बुलाया गया. उसने 3 अक्टूबर 2018 को फिर से अपना बयान दर्ज कराया. सना का कहना था कि उसने 10 अक्टूबर को 25 लाख रुपए दुबई में मनोज प्रसाद को दिए. इसके बाद 55 हजार दिरहम की रकम मनोज प्रसाद को और दी.

सतीश सना ने 15 अक्टूबर को निदेशक आलोक वर्मा को लिखा, 'मुझे मोटी रकम देने पर मजबूर किया गया. सीबीआई के अधिकारी उस केस में मेरी मदद का वादा कर रहे थे, जिसमें मैं शामिल ही नहीं था. मेरी आप से गुजारिश है कि मुझे इंसाफ दिलाएं और आरोपी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करें.'

सीबीआई की एफआईआर कहती है, 'जनसेवकों और आम नागरिकों यानी सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना, सीबीआई एसआईटी के डीएसपी देविंदर कुमार, मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद पर प्राथमिक रूप से आईपीसी की धारा 120बी और भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 7 और 13 (2) और 2018 में संशोधित धारा 7ए के तहत मामला बनता है.' हालांकि देर से ही सही सरकार ने मामले में दखल दिया है, पर, इससे विवाद का अंत नहीं हुआ है.