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आलोक वर्मा को CBI डायरेक्टर के पद से 'हटाया' नहीं गया, उनका ट्रांसफर हुआ

आलोक वर्मा को हटाए जाने और डिमोशन को लेकर एक बात और निकलकर आ रही है कि उन्हें पद से हटाया नहीं गया है, बल्कि उनका ट्रांसफर किया गया है

FP Staff

सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को गुरुवार को उनके पद से हटा दिया गया. ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई हाई पावर तीन सदस्यीय चयन समिति में लिया गया. चयन समिति में पीएम मोदी के साथ-साथ विपक्षी दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जस्टिस एके सिकरी शामिल थे. जस्टिस सीकरी को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजा था. ये फैसला 2:1 से बहुमत से लिया गया, जिसमें खड़गे ने वर्मा को हटाए जाने का विरोध किया था.

आलोक वर्मा को हटाए जाने और डिमोशन को लेकर एक बात और निकलकर आ रही है कि उन्हें पद से हटाया नहीं गया है, बल्कि उनका ट्रांसफर किया गया है. आदेश में कहा गया है कि चयन समिति ने आलोक वर्मा की डायरेक्टर, सीबीआई की पोस्ट से डायरेक्टर जनरल, फायर सर्विस- सिविल डिफेंस एंड होम गार्ड के पद पर ट्रांसफर को मंजूरी दे दी है. वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को समाप्त हो रहा है.


सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ अशोक धमीजा ने कहा है कि आलोक वर्मा का सीबीआई डायरेक्टर के पद से ट्रांसफर हुआ है. DSPE एक्ट के S. 4-B के हिसाब से भी इसे ट्रांसफर ही कहा जाएगा न कि पद से हटाए जाना. अधिकारियों को उनके ट्रांसफर से पहले अपने बचाव का मौका तक नहीं दिया जा रहा है और S. 4-B के तहत भी उन्हें बचाव का अधिकार नहीं मिलता है. वर्मा का ट्रांसफर सीवीसी रिपोर्ट को देखते हुए हुआ है.

ट्रांसफर पर क्या बोले आलोक वर्मा

इससे पहले इस मामले में चुप्पी तोड़ते हुए वर्मा ने गुरुवार देर रात एक बयान में कहा कि भ्रष्टाचार के हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच करने वाली महत्वपूर्ण एजेंसी होने के नाते सीबीआई की स्वतंत्रता को सुरक्षित और संरक्षित रखना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इसे बाहरी दबावों के बगैर काम करना चाहिए. मैंने एजेंसी की ईमानदारी को बनाए रखने की कोशिश की है जबकि उसे बर्बाद करने की कोशिश की जा रही थी. इसे केंद्र सरकार और सीवीसी के 23 अक्टूबर, 2018 के आदेशों में देखा जा सकता है जो बिना किसी अधिकार क्षेत्र के दिए गए थे और जिन्हें रद्द कर दिया गया.’

कोर्ट ने अगला निर्णय समिति लेने का अधिकार समिति पर छोड़ दिया था

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश को दरकिनार कर दिया था लेकिन उन्हें उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की सीवीसी जांच पूरी होने तक कोई बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से रोक दिया था.

‘बड़े नीतिगत’ फैसले की स्पष्ट परिभाषा के अभाव में एक प्रकार की अनिश्चितता बनी ही रही कि किस हद तक वर्मा के अधिकार सीमित किए जाएंगे. शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्मा के खिलाफ कोई भी अगला निर्णय उच्चाधिकार प्राप्त समिति ही लेगी जो सीबीआई निदेशक का चयन और नियुक्ति करती है.