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रेलवे का पीयूष पावर, पिक्चर अभी बाकी है

आखिर क्या कारण थे, जिसे समझने में प्रभु ने चूक कर दी और जिसे गोयल बहुत जल्दी ही समझ लेंगे

Ravishankar Singh

पिछले रविवार को मोदी सरकार ने तीसरा मंत्रिमंडल विस्तार किया है. इस विस्तार में मोदी सरकार ने अपने चार राज्य मंत्रियों को कैबिनेट मिनिस्टर के तौर पर प्रमोट किया है. कैबिनेट मिनिस्टर बनने वालों में धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण, मुख्तार अब्बास नकवी और पीयूष गोयल शामिल हैं.

अगर बात करें पीयूष गोयल की तो गोयल को कैबिनेट मिनिस्टर ही नहीं बनाया गया बल्कि रेलवे जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी भी सौंपी गई.


शायद, रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा जब रेलवे से हटाए गए और बनाए गए दोनो मंत्री पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. हटाए गए मंत्री सुरेश प्रभु भी पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और रेल मंत्री बनाए गए पीयूष गोयल भी पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं.

सुरेश प्रभु और पियूष गोयल के बीच असमानताएं

अगर बात करें सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल के काम करने के तौर तरीकों और उनके कार्यक्षमताओं पर तो दोनो में काफी असमानताएं हैं.

सुरेश प्रभु जहां बिल्कुल लो-प्रोफाइल रह कर काम करने वालों में जाने जाते हैं. वहीं, पीयूष गोयल के बारे में कहा जाता है कि उनकी लाइफ स्टाइल काफी हाई प्रोफाइल है.

इसके बावजूद पीयूष गोयल पिछले कुछ सालों से बीजेपी के चर्चित चेहरों में गिने जाने लगे हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पीयूष गोयल को प्रचार, विज्ञापन और सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को साधने की जिम्मेदारी दी थी. इस जिम्मेदारी को गोयल ने बखूबी निभाया. जिसके बाद ही अमित शाह की नजर में पीयूष गोयल का कद और बढ़ गया. जब सरकार बनी तो ऊर्जा मंत्रालय गोयल के जिम्मे आया. गोयल ने ऊर्जा मंत्रालय में किए अपने कामों से काफी वाहवाही हासिल की.

साल 2016 में कैबिनेट फेरबदल के दौरान भी पीयूष गोयल को प्रमोट करने के नाम पर चर्चा हुई थी, तब माना जा रहा था कि अरुण जेटली को वित्त मंत्री के तौर पर पीयूष गोयल रिप्लेस कर सकते हैं. लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया.

दोनों की काबिलियत एक जैसी है

हम आपको बता दें कि सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल में जहां कुछ असमानताएं हैं तो वहीं कुछ समानताएं भी हैं. दोनों की काबिलियत एक जैसी है. दोनों प्रोफेशनली चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. दोनो ने ऊर्जा मंत्री के तौर पर काम करते हुए अपने आपको साबित किया है और दोनों एक राज्य महाराष्ट्र से भी आते हैं.

अटल जी की सरकार में सुरेश प्रभु ने ऊर्जा मंत्रालय में काफी अच्छा काम किया था. वहीं मोदी सरकार में पीयूष गोयल ने भी ऊर्जा मंत्री के तौर पर अपने कामों से लोहा मनवाया.

अब जबकि रेल मंत्रालय से सुरेश प्रभु की विदाई हो गई है और पीयूष गोयल को रलवे मंत्रालय दिया गया है, ऐसे में जानकारों का मानना है कि पीयूष गोयल के लिए रेल मंत्रालय कांटो भरा ताज साबित हो सकता है.

इंफ्रॉस्टक्चर और सिक्योरिटी पर काम करने की जरूरत

रेलवे की हालत लगातार बिगड़ती ही जा रही है. रेल दुर्घटनाओं की वजह से सरकार को काफी किरकिरी झेलनी पड़ रही है. हालांकि कई स्तर पर काम किए जा रहे हैं. लेकिन, अभी भी रेलवे को इंफ्रॉस्टक्चर से लेकर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में काफी काम करना बाकी है.

प्रभु का विभाग क्यों बदला गया? आखिर क्या कारण थे, जिसे समझने में प्रभु ने चूक कर दी और ऐसे कौन से कारण हैं जिसको गोयल बहुत जल्दी ही समझ लेंगे.

जानकार कहते हैं कि पीयूष गोयल भी जानते हैं कि रेलवे मंत्रालय उनके लिए आने वाले दिनों में मुश्किलें खड़ी करने वाला है. ऊर्जा मंत्रालय और रेलवे मंत्रालय में काम करने का तौर-तरीका बिल्कुल अलग होता है.

ऊर्जा मंत्रालय में कैजुअलटी का खतरा रेलवे की तुलना में काफी कम रहता है. रेलवे को लेकर हर दिन पीयूष गोयल को सजग रहना पड़ेगा. एक दुर्घटना होने पर पीयूष गोयल भी मीडिया के रडार पर आ जाएंगे. लगातार हो रही ट्रेन दुर्घटनाओं से पीयूष गोयल का मीडिया से सामना होगा.

यहां पर हम आपको बता दें कि सुरेश प्रभु ने रेलवे में तीन सालों तक काम किया. वहीं गोयल को लगभग 18 महीनें का ही वक्त मिलेगा. इन 18 महीनों में ही गोयल को अच्छा काम करना होगा. रेलवे को इस समय दो नए सारथी मिले हैं. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी के साथ मिलकर गोयल रेलवे को आगे बढ़ाएंगे.

इस में कहीं दो राय नहीं है कि पीयूष गोयल ने ऊर्जा मंत्रालय में शानदार काम किया है. गोयल के कार्यकाल में ही ऐसे गांव जहां तक बिजली नहीं पहुंची है, उनकी संख्या 4 हजार रह गई है. जबकि, पीयूष गोयल ने जब मंत्रालय का प्रभार लिया था उस समय ऐसे गांवों की संख्या 18 हजार थी. उनके नेतृत्व में बिजली मंत्रालय ने 2022 तक देश के हर घर में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा था.

जानकार मानते हैं कि पीयूष गोयल को इतना अहम मंत्रालय यूं ही नहीं मिला है. बतौर ऊर्जा मंत्री उन्होंने शानदार काम किया है. बीजेपी आलाकमान ने महसूस किया कि उन्होंने ऊर्जा और कोल क्षेत्र में सुधार लागू करने में बेहतरीन काम किया है.

बिना किसी भ्रष्टाचार के कोयला ब्लॉक का आवंटन भी उन्हीं की देखरेख में किया गया था. यह भी देखा गया है कि उत्पादकता में भी सुधार आया है, साथ ही शॉर्ट सप्लाई घटी है, जिससे आयात में बढ़ोतरी हुई है. 53 वर्षीय गोयल राज्यसभा सदस्य हैं और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं.

हम आपको बता दें कि पिछले महीने 11 दिनों में तीन हादसों के बाद सुरेश प्रभु ने इस्तीफे की पेशकश की थी. पीएम मोदी ने उस वक्त प्रभु से कहा था कि इंतजार करें. तभी से रेल मंत्रालय को लेकर कई नामों की चर्चा चल रही थी. जो आखिरकार पीयूष गोयल पर आकर खत्म हुई.

नए रेल मंत्री पर दुर्घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी

नए रेल मंत्री को लगातार हो रही दुर्घटनाओं को रोकने के साथ सुविधा और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की बात करनी होगी. पिछले कुछ सालों से सुरेश प्रभु को इसी बात को लेकर आलोचना झेलनी पड़ रही थी.

इसके साथ रेल प्रबंधन में सुधार लाने की जरूरत है. लापरवाह और निकम्मे अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की लगातार मांग उठ रही हैं. भारतीय रेल इस समय 64 हजार किलोमीटर के ऑपरेशनल नेटवर्क पर दौड़ रही है. इसकी निगरानी और मेनटेनेंस के लिए लोग काफी कम पड़ रहे हैं.

नए रेल मंत्री पीयूष गोयल को मेनटेनेंस के लिए लगभग दो लाख रेलवे के खाली पदों की भरने की भी चुनौती है. भारतीय रेल दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है और फिलहाल उसके पास 13 लाख कर्मचारी हैं.

रेलवे की दुर्दशा की वजह घिसी-पिटी पुरानी तकनीक

रेलवे की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार घिसी-पिटी पुरानी तकनीक और सिस्टम को भी बदलना होगा. जो कि 18 महीने के छोटे कार्यकाल में संभव नहीं लग रहा है.

पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु के लगभग 3 साल के कार्यकाल में करीब 650 लोग रेल हादसों में मौत को गले लगा चुके हैं. पिछले कुछ सालों में छोटे-बड़े दुर्घटनाओं को मिला दें तो तकरीबन 115 ट्रेन दुर्घटनाएं हुई हैं.

रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन आर एन मल्होत्रा फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, 'रेलवे में काम करने वाले लोगों के लिए जैसे-जैसे साल बीत रहा है, काम करना कठिन होता जा रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर उतना बढ़ नहीं रहा है. मेनटेनेंस का पूरा टाइम नहीं मिल पाता.'

रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन आरएन मल्होत्रा आगे कहते हैं, ‘रेलवे को सेफ्टी फंड के जरिए सिग्नल सिस्टम और रेलवे लाइनों को दुरुस्त करने के लिए सबसे पहले काम करना चाहिए. अगर इस क्षेत्र में ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति में कोई अंतर नहीं आने वाला है.'

देश की मोदी सरकार ने पावर मिनिस्ट्री के दो पूर्व परफॉर्मर को रेलवे में पावर दिखाने के लिए बारी-बारी से मौका दिया. लेकिन, पावर मिनिस्ट्री के एक परफॉर्मर आज रेलवे से आउट हो कर कॉमर्स विभाग में जा चुके हैं. अब दूसरे परफॉर्मर को 18 महीने में परफॉर्म करना है. देखना यह है कि नए रेल मंत्री पीयूष गोयल और रेलवे बोर्ड के नए चेयरमैन अश्विनी लोहानी रेलवे को मुसीबत से कहां तक निकाल पाते हैं.