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जीएसटी: अभी सिर्फ एडमिशन मिला है, देखते हैं पास होता है या नहीं!

जीएसटी लागू होने का मतलब कामयाब होना नहीं है थोड़ा इंतजार करना चाहिए

Alok Puranik

30 जून-1 जुलाई के बीच या 30 जून की रात 12 बजे जीएसटी को औपचारिक तौर पर लागू हुआ माना जा सकता है. पर लागू होना कामयाब होना नहीं है. जैसे किसी बच्चे को आईआईटी में एडमिशन मिल जाना बहुत बड़ी सफलता है, पर उसका इंजीनियर बनना सिर्फ एडमिशन होने से सुनिश्चित ना हो जाता. एडमिशन इंजीनियर होने की बुनियादी शर्त है, गारंटी नहीं है. इसलिए अब चुनौतियों को समझना और उनका सतत निराकरण ही जीएसटी को कामयाब बनाएगा.

कोई पूर्व उदाहरण नहीं


भारत के किसी भी सुधार की किसी भी अन्य किसी देश के सुधार से तुलना उचित नहीं है. भारत की जनसंख्या के स्तर को देखते हुए, यहां शासन की जटिलताओं को देखते हुए इसकी तुलना अगर किसी देश से हो सकती है, तो वह चीन है. पर वह तुलना भी ठीक नहीं है क्योंकि चीन में तानाशाही शासन है, वहां कोई चीज डंडे के जोर पर लागू करवाई जा सकती है.

भारत जैसे लोकतंत्र में वह स्थिति नहीं है. इसलिए जीएसटी का किसी और देश का उदाहरण भारत के संदर्भ में कारगर नहीं होगा. कोई भी कर सुधार मूलत दिल के ऑपरेशन जैसा होता है, यानी दिल रुकना नहीं चाहिए, कर संग्रह रुकना नहीं चाहिए. चलते दिल का ऑपरेशन मुश्किल ऑपरेशन होता है, पर उसके अलावा कोई विकल्प नहीं होता. ऐसा हाल कर संग्रह का है, उसे दो साल के लिए रोक कर सुधार लागू करने की स्वतंत्रता सरकार के पास नहीं होती. इसलिए देखा गया कि लगातार परिवर्तन जीएसटी में हो रहे हैं.

जीएसटी लागू होने के कुछ घंटे पहले खाद पर जीएसटी 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया गया और ट्रैक्टर में प्रयुक्त होनेवाले ऑटो पार्ट्स पर जीएसटी 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत किया गया. यानी जो जीएसटी ढांचा लागू हुआ है, वह पूरी तरह से फाइनल नहीं है. उसमें सुधार नहीं लगातार सुधार होते रहेंगे. पर मोटे तौर चुनौतियां तीन हैं.

तकनीकी ढांचा

जीएसटी की व्यवस्था ऐसी विकसित की गई है कि इसमें तकनीक का भारी रोल है. तकनीक सुचारू तौर पर चलती रहे, यह सुनिश्चित करना होगा. तकनीक की विफलताओं और सफलताओं के दोनों के उदाहरण हमारे सामने रहे हैं. तमाम बैंकों खास तौर पर सरकारी बैंकों में अकसर यह सुनने में आता है कि नेटवर्क डाऊन है, तो काम नहीं होगा. पर यह भी देखा गया है कि रेलवे की वेबसाइट हजारों रिजर्वेशन बिना किसी अड़चन के रोज कर रही है. यानी तकनीकी ढांचे को सुचारु तौर पर चला पाना असंभव नहीं है, ऊपर के स्तर इच्छा शक्ति की जरूरत है.

जीएसटी साक्षरता

यह क्षेत्र वह है, जहां बहुत काम करने की जरूरत है. सरकारी इश्तिहारों में जीएसटी बहुत शानदार काम करता नजर आ रहा है. पर सरकार के बाहर भी अर्थव्यवस्था है. जीएसटी को लेकर तरह-तरह का अज्ञान है. छोटे कारोबारियों में इसे लेकर तरह-तरह के भय हैं. एक तो अज्ञात और नए के प्रति भय स्वाभाविक हैं. इसलिए जीएसटी से जुड़े हर मसले पर छोटे कारोबारियों और ग्राहकों के बीच जीएसटी साक्षरता अभियान चलाए जाने की जरूरत है. खास तौर पर भारतीय भाषाओं में. भारतीय बहुत समझदार हैं, रुपए पैसे के मामलों को बहुत तेजी से समझते हैं. निरक्षर भारतीयों की वित्तीय साक्षरता कई बार चकित करनेवाली होती है. जीएसटी साक्षरता पर काम किए जाने की जरूरत है.

अज्ञान से भय पैदा होता है और भय से विरोध को बल मिलता है. जीएसटी का विरोध एक हद तक अज्ञान से भी आ रहा है.

तेज प्रतिक्रिया वक्त

राजस्व के मामले बहुत संवेदनशील मामले होते हैं. लंबा इंतजार नहीं कर सकते. बहुत तकनीकी मसलों पर फैसले के लिए यह इंतजार नहीं कर सकते. किसी भी राज्य को किसी भी चिंता का तेज निराकरण करना जीएसटी काउंसिल का कर्तव्य है. देखना है कि आगामी महीनों में यह काम कितनी गति से हो सकता है. यह गति ही इसकी सफलता का प्रमुख कारक बनेगी. यानी किसी भी मुद्दे पर लंबा इंतजार किए बगैर तेज प्रतिक्रिया ही जीएसटी को कारगर बनाएगी.