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बुंदेलखंड: लगातार चौथे साल सूखे के कहर से भयंकर मुश्किल में किसान, विस्थापन तेज

पिछले पांच सालों में लगातार चौथी बार सूखे से इस गरीब इलाके के लोग बर्बाद हो गए हैं.

Mohika Saxena

ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके पर ग्लोबल वॉर्मिंग की तगड़ी मार पड़ी है. पिछले पांच सालों में लगातार चौथी बार सूखे से इस गरीब इलाके के लोग बर्बाद हो गए हैं. पारा पहले ही 46 डिग्री सेल्सियस को छू रहा है. इलाके के सभी तालाबों और नदियों का पानी सूख चुका है. ट्यूब वेल भी सूख गए हैं.

मध्य प्रदेश के बेहद पिछड़े इलाके बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले पर भी सूखे की भारी मार पड़ी है. यहां के एक गांव के लोग जान की बाजी लगाकर बहुत पुराने एक कुएं से पानी निकालते हैं. वो कुएं के अंदर जाने के लिए बनी पत्थर की सीढ़ियों से उतरते हैं. इसके लिए वो मानव श्रृंखला बनाने, ताकि एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नीचे तक जाएं, फिर एक-एक करके सबके बर्तन पानी से भरे जाते हैं.


इन दिनों टीकमगढ़ जिले के अटरिया गांव के लोगों को अपनी प्यास बुझाने के लिए ये काम रोज करना पड़ रहा है. गांव की आबादी करीब 3 हजार है. ग्रामीण रोजाना कुएं के भीतर बहुत सावधानी से जाते हैं और अपने पीने की जरूरत का पानी हासिल करते हैं.

एक छात्र बाबूलाल यादव बताता है कि, जो गांव वाला कुएं में सबसे नीचे खड़ा होता है, वो कुएं से बर्तन में पानी भरकर अपने बगल में खड़े शख्स को देता है. इसके बाद एक हाथ से दूसरे हाथ तक होता हुआ ये बर्तन कुएं से बाहर लाया जाता है. ऐसा लगता है कि बाबूलाल को कुएं से जोखिम भरे तरीके से पानी निकालने में महारत हासिल है.

पर सिर्फ एक कुएं से गांव के लोगों की पानी की जरूरत पूरी नहीं होती. नतीजतन, गांव के लोग साइकिल या बाइक से जाकर पांच किलोमीटर दूर यूपी के ललितपुर जिले के पथराई गांव से पानी लाते हैं. यहां वो एक निजी ट्यूबवेल से पानी लेते हैं.

टीकमगढ़ के इस गांव से करीब दो सौ किलोमीटर दूर स्थित दमोह जिले के हरदुआ गांव में भी लोगों का ये रोजमर्रा का काम है. इस गांव की आबादी करीब 1500 है. गांव से सभी 10 हैंड पंप सूख चुके हैं. ऐसे में एक पुराना कुआं ही उनके काम आ रहा है. गांव के सरपंच सुधा यादव कहते हैं कि इस पुराने कुएं ने उन्हें धोखा नहीं दिया.

ये दोनों गांव सूखे से बेहाल बुंदेलखंड इलाके की बदहाली बयां करते हैं. सूखे का सबसे ज्यादा असर मध्य प्रदेश के दमोह, छतरपरु, सागर, पन्ना और टीकमगढ़ जिलों पर पड़ा है. इन जिलों के शहरी इलाकों में लोगों के नलों में पानी या तो 3 से 6 दिन में एक बार आता है, या फिर रिहाइशी बस्तियों में पानी टैंकर के जरिए पहुंचाया जाता है.

आधिकारिक तौर पर मध्य प्रदेश की सरकार ने राज्य के 13 जिलों की 110 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है. इनमें बुंदेलखंड के पांच जिले भी शामिल हैं. पिछले साल इस इलाके में बमुश्किल ही थोड़ी बहुत बरसात हुई थी.

इंसान तो इन मुसीबतों को जैसे-तैसे झेल ही रहा है. सबसे बड़ी परेशानी तो जानवरों के लिए है. उनके लिए न तो पीने का पानी है और न ही खाने के लिए चारा. भयंकर सूखे की वजह से इस इलाके के लोग पानी और रोजगार की तलाश मे दूसरे ठिकानों की तरफ रुख कर रहे हैं.

वाटर मैन के नाम से मशहूर मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजेंद्र सिंह कहते हैं कि ऐसा लगता है कि दुनिया की बदलती आबो-हवा ने गरीबों की मुश्किल और बढ़ा दी है. इस बार तो सूखा और भी भयंकर है.

राजेंद्र सिंह कहते हैं कि, 'लोग न सिर्फ इस इलाके से पलायन कर रहे हैं, बल्कि वो अपने घर के बुजुर्गों और जानवरों को छोड़कर जा रहे हैं. फिर उनकी सुध लेने लौट भी नहीं रहे हैं'. वो कहते हैं कि, 'हम ने एक सर्वे किया, जिसके नतीजों से पता चला कि बुंदेलखंड के 70 से 90 फीसद हैंड पंप सूख चुके हैं. इस इलाके में पानी के दूसरे स्रोत जैसे नदियां और चंदेलों के दौर में बनवाए गए तालाब भी 50 से 90 फीसद तक सूख गए हैं'.

राजेंद्र सिंह ने दावा किया कि पिछले खरीफ सीजन में 70 फीसदी किसानों को नुकसान हुआ और आज करीब 40 फीसद लोगों के पास खाने के अनाज तक की कमी है.

राजेंद्र सिंह के मुताबिक बुंदेलखंड के 80 प्रतिशत किसानों के पास गांव में रोजी-रोटी कमाने का कोई ठीक-ठाक जरिया नहीं है. इनमें से 65 प्रतिशत किसान तो रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और गुजरात पलायन कर चुके हैं.

अलग-अलग इलाकों में पानी के 50 से लेकर 90 प्रतिशत तक स्रोत सूख चुके हैं

इलाके की केन, धसान, सुनार, व्यार्मा नदियां सूख चुकी हैं. अब पानी सिर्फ कुछ गहरे कुओं में ही बचा है. बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया कहते हैं कि, 'ऐसा लगता है कि इन नदियों में अब साल भर तो पानी रहता ही नहीं. अब ये सिर्फ बरसाती नदियां बन कर रह गई हैं'.

हकीकत तो ये है कि मध्य प्रदेश की कमोबेश सभी नदियां, राज्य की लाइफ लाइन कही जाने वाली नर्मदा नदी तक, सूख रही हैं. इसकी वजह बहुत कम बारिश होना है. नर्मदा में पानी तभी दिखाई देता है, जब इस पर बनाए गए तमाम बांधों में से पानी छोड़ा जाता है. जन स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी विभाग की मंत्री कुसुम मेहदेले कहती हैं, 'इस संकट से निपटने की पुरजोर कोशिश हो रही है. जहां भारी किल्लत है, वहां सरकार की तरफ से पानी पहुंचाया जा रहा है. लेकिन कई जगह तो भूगर्भ जल के स्रोत भी सूख गए हैं'.

साल दर साल पड़ते सूखे और बहुत कम बारिश होने, यानी ग्लोबल वार्मिंग के असर से इस इलाके में भूगर्भ जल का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है.

इस साल गर्मी आने से पहले केंद्रीय ग्राउंड वाटर बोर्ड की तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दस सालों में मध्य प्रदेश में भूगर्भ जल का स्तर बहुत बड़े इलाके में लगातार घट रहा है. जमीन के भीतर पानी इकट्ठा होने की प्रक्रिया बहुत धीमी और बहुत कम हो रही है. मध्य प्रदेश के उत्तरी इलाकों जिनमें ग्वालियर और चंबल के इलाके आते हैं, बुंदेलखंड और महाकोशल इलाके का कुछ हिस्सा, गिरते भूगर्भ जल स्तर से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.