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नो वर्क नो सैलरी: सरकार के फॉर्मूले पर विपक्ष का पलटवार कितना कारगर होगा

6 अप्रैल को सत्र का आखिरी दिन है. इस दिन भी कार्यवाही चलने की संभावना नामुमकिन ही लग रही है. ऐसे में दोनों सदनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा.

Amitesh

इस बात की संभावना पहले से ही जताई जा रही थी. आखिर वैसा ही हुआ. विपक्ष पर दबाव बनाकर नैतिक बढ़त लेने की कोशिश में बीजेपी और एनडीए के सभी सांसदों ने 23 दिन का वेतन-भत्ता नहीं लेने का फैसला कर लिया. अब जवाब विपक्ष की तरफ से आना था.

नो वर्क नो सैलरी का फॉर्मूला विपक्ष को रास नहीं आया, हो सकता है सत्ता पक्ष के कई सांसद भी इस फॉर्मूले से खुश ना हों, लेकिन, सरकार की तरफ से इस फॉर्मूले के सहारे विपक्ष पर दबाव बनाने की कोशिश की गई. सरकार की इस कोशिश के बाद विपक्ष भी लामबंद हो गया.


सुबह-सुबह संसद भवन परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने 15 विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने बजट सत्र के दूसरे चरण में सरकार के रवैये के  खिलाफ विरोध जताया. हाथों में तख्तियां लेकर सरकार विरोधी नारे लगा रहे इन सांसदों की अगुआई खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी कर रहे थे.

सरकार की तरफ से हमला कांग्रेस पर ही था, तो ऐसे में जवाब तो कांग्रेस को ही देना था. कांग्रेस ने भी पलटवार करते हुए संसद नहीं चलने देने के लिए सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. कांग्रेस ने विपक्षी दलों के विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व किया और निशाने पर केंद्र की सरकार रही. निशाना बैंकिंग घोटाले, एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा और लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे को लेकर था.

दरअसल, यह पूरी लड़ाई परसेप्शन की लड़ाई हो गई है जिसमें सरकार के ऐलान के बाद विपक्ष परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ता हुआ नजर आ रहा था. लेकिन, विपक्षी दलों ने सरकार की रणनीति का भंड़ाफोड़ करने का तरीका अपना लिया है. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक, इस वक्त अगर सदन ठीक से चलता और सदन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होती तो सरकार को कई मुद्दों पर जवाब देना मुश्किल होता.

खासतौर से नीरव मोदी मामले और एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर मचे बवाल पर सरकार को विपक्षी हमले से दो-चार होना पड़ता. लेकिन, सदन के भीतर हंगामा नहीं होने के कारण इन मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पा रही है. विपक्षी दलों को बोलने का मौका नहीं मिल पा रहा है. इससे सरकार बच निकल रही है.

एससी-एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खलबली बीजेपी और एनडीए के भीतर भी है. बीजेपी सांसद सावित्री बाई फूले के बयान ने पार्टी नेतृत्व को परेशान कर दिया था. पार्टी के भीतर के एससी-एसटी सांसदों को अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने का डर सता रहा है. कुछ ऐसा ही हाल एनडीए के भीतर भी है. एनडीए के भीतर रामविलास पासवान से लेकर रामदास अठावले जैसे दलित तबके के नेता भी सरकार की एंटी दलित छवि बनने से परेशान नजर आ रहे हैं.

ऐसे में कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को ऐसा मौका हाथ लगा जिसमें वो सरकार को घेर सकते थे. विपक्षी इसी मुद्दे को उठाकर अब सरकार पर पलटवार कर रहा है. विपक्ष की तरफ से यह समझाने की कोशिश हो रही है कि हम तो चर्चा के लिए तैयार ही थे. लेकिन, सरकार ही नहीं चाह रही थी कि सदन ठीक ढंग से चले.

विरोध प्रदर्शन करते टीडीपी के नेता

गुरुवार को भी सदन की कहानी कुछ और नहीं रही. सरकार और विपक्ष की तरफ से एक-दूसरे पर सदन नहीं चलने देने का आरोप लगता रहा, लेकिन, सदन की कहानी कुछ भी नहीं बदली. फिर वही हो-हंगामा और सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई. अब 6 अप्रैल को सत्र का आखिरी दिन है. इस दिन भी कार्यवाही चलने की संभावना नामुमकिन ही लग रही है. ऐसे में दोनों सदनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा.

लेकिन, बजट सत्र का समापन जिस अंदाज में और जिस जगह खत्म हुआ है. उससे साफ लग रहा है कि सत्र के अवसान के बाद भी इन मुद्दों पर राजनीति होती रहेगी.