केंद्रीय बजट 2017 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और सभी वर्गों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं. आम आदमी को इस आम बजट से मौजूदा टैक्स-रेट और सब्सिडी में कुछ राहतों की उम्मीद है.
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कॉरपोरेट जगत को उत्सुकता है कि फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली घरेलू खपत और निजी निवेश साइकिल में कैसे जोश भरते हैं. फाइनेंशियल सेक्टर भी फाइनेंशियल इंटीग्रेशन में तेजी लाने तथा डिजिटल फाइनेंशियल सर्विसेज को बढ़ावा देने के लिए कुछ बजटीय सौगातों की उम्मीद कर रहा है.
बजट 2017 के लिए मेरी उम्मीदें इस प्रकार हैं:
फाइनेंशियल इंटीग्रेशन को अधिक बढ़ावा
फाइनेंशियल इंटीग्रेशन की एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सही उपभोक्ता किसी भी कीमत पर कर्ज प्राप्त नहीं कर पाते. बैंक कर्ज देने के लिए सही कीमत का निर्धारण करने के लिए मशक्कत करने की बजाय, कर्ज के आवेदनों को खारिज करना ज्यादा बेहतर समझते हैं.
डिजिटल भुगतानों के बढ़ते चलन की वजह से उपभोक्ता आज अपने पीछे डिजिटल फुटप्रिंट,डाटा छोड़ रहे हैं. इनका प्रयोग करके वित्तीय संस्थान नए-नए प्रकार के जोखिम वाले लोन (रिस्क एडजस्टेड लोन) देना शुरू कर सकते हैं.
बजट 2017 में उन कर्जदाताओं, जो रेगुलेटर द्वारा प्री-डिटरमाइन एक्सेपटेबल लोन रेट (पूर्व-निर्धारित ऋण स्वीकार्य दर) हासिल करना चाहते हैं, के लिए करों में छूट और अन्य बजटीय प्रोत्साहन शामिल होने चाहिए.
भारत के 70 प्रतिशत हिस्से में संस्थागत कर्जदाताओं की सेवाओं का अभाव है. ऐसे में इस प्रकार का प्रयास भारत के फाइनेंशियल इंटीग्रेशन को बेहतर बनाने में योगदान देगा.
डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना
नोटबंदी का एक बड़ा उद्देश्य कैश ट्रांजैक्शन में कमी लाना और डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा देना बताया गया था. कैश ट्रांजैक्शन में भ्रष्टाचार और करों की चोरी में की अधिक संभावना के अलावा, इससे जुड़ी कई खामियों और नकदी के रखरखाव और संचालन पर होने वाले खर्चो की वजह से अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ता है.
वीजा द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक कैश ट्रांजैक्शन पर देश के जीडीपी का 1.7 फीसदी खर्च होता है. हालांकि सरकार ने नोटबंदी के बाद कार्ड से किए जाने वाले भुगतानों के लिए कम समय के लिए कई तरह की छूटों की घोषणा की है.
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लेकिन ये छूटें डिजिटल वॉलेट भुगतानों पर भी लागू की जानी चाहिए. इसके अलावा, सरकार को फ्यूल सरचार्ज और विभिन्न सरकारी विभागों और आईआरसीटीसी जैसे सरकारी उपक्रमों द्वारा कार्ड भुगतानों पर लगाए जाने वाले सरचार्ज खत्म करने चाहिए.
पेपरलेस प्रैक्टिस के लिए वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा देना
अधिकांश वित्तीय संस्थान आज भी कागजों में कामकाज करते हैं. इसकी वजह से ऑपरेटिंग कास्ट अधिक लगती है. इस लागत का भार आखिर में प्रोसेसिंग या सर्विस टैक्स के रूप में उपभोक्ताओं पर पड़ता है.
सरकार को बजट 2017 में चाहे कर्ज हों, क्रेडिट कार्ड हों, बीमा हों, म्युचुअल फंड हों, सभी वित्तीय उत्पादों के लिए पेपरलेस प्रैक्टिस को विकसित करने के लिए वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिए.
पेपरलेस प्रैक्टिस के लिए सर्विस टैक्स, स्टांप ड्यूटी या अन्य सरकारी शुल्कों की माफी जैसे कदमों से वित्तीय संस्थानों और उपभोक्ताओं दोनों को पेपरलेस प्रैक्टिस अपनाने की प्रेरणा मिलेगी.
म्युचुअल फंडों में खुदरा निवेशेकों की भागीदारी में बढ़ोतरी
फिलहाल, सेक्शन 80 सी के तहत ईएलएसएस निवेशों पर 1.5 लाख रुपये तक की कर में छूट उपलब्ध है. हालांकि, ईएलएसएस को हाउसिंग कर्ज की मूलराशि, पीपीएफ, जीवन बीमा प्रीमियमों, पेंशन प्लानों और कर्मचारी भविष्य निधि जैसे विभिन्न अन्य निवेशों में जमा की गई राशि के साथ यह स्लॉट साझा करना पड़ता है.
सेक्शन 80 सी की अधिकतम सीमा में बढ़ोतरी करने या अलग सब-सेक्शन (एनपीएस निवेशों के लिए उपलब्ध सेक्शन 80 सीसीडी (1बी) की भांति) शुरू करने से इक्विटी म्युचुअल फंडों में लॉन्ग टर्म निवेशों को बढ़ावा मिलेगा.
इससे स्टॉक मार्केट में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी. जिसकी बदौलत हमारे 7 फीसदी एयूएम/सकल घरेलू उत्पाद, जो दुनिया में सबसे कम है, में वृद्धि होगी.
बेसिक कर-रियायत सीमाओं में वृद्धि करके उपभोक्ता खर्च में वृद्धि करना
फिलहाल 2.5 लाख रुपये की बेसिक कर-रियायत सीमा काफी कम है. डिलोएट द्वारा तैयार की गई प्री-बजट एक्सपेक्टेशन सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, जवाब देने वाले 58 फीसदी लोग इनकम टैक्स में छूट की सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने के पक्ष में हैं.
हालांकि सरकार इतनी अधिक बढ़ोतरी तो शायद न करे, लेकिन छूट की सीमा में जितना भी सुधार किया जाएगा, उससे खासतौर पर मध्यम आय वर्गों के उपभोक्ताओं के खर्चों में बढ़ोतरी करने में मदद मिलेगी. इससे हमारी मंद पड़ती अर्थव्यवस्था में उम्मीद के मुताबिक सुधार आएगा.
लॉन्ग टर्म रिटायरमेंट बचतों को प्रोत्साहन देना
भारत में समान सामाजिक सुरक्षा के अभाव में सरकार को नई पेंशन योजना जैसे पेंशन उत्पादों में निवेश को प्रोत्साहन देना चाहिए. हालांकि 2004 में प्रारंभ की गई यह योजना अपने कमजोर टैक्स प्रैक्टिस की वजह से बहुत लोकप्रिय नहीं हो पाई.
फिलहाल, यह योजना आंशिक रूप से ईईटी के अंतर्गत आती है. इसकी वजह यह है कि इसकी केवल 40 फीसदी मैच्युरिटी मनी ही टैक्स-फ्री है. नई पेंशन योजना इसी वजह से पीपीएफ और ईपीएफ की तुलना में अधिक घाटे में है क्योंकि इनकी मैच्युरिटी मनी पूरी तरह से टैक्स-फ्री है.
नई पेंशन योजना में दूसरा बहुपेक्षित सुधार इक्विटी में अधिक निवेश की अनुमति देना है. फिलहाल, कोई भी निवेशक इसके इक्विटी फंड में अपने अंशदान का 50 प्रतिशत तक ही निवेश कर सकता है.
हालांकि, नई पेंशन योजना एक लॉन्ग टर्म निवेश है. यह माना जाता है कि जब लॉन्ग टर्म निवेश से हुए लाभ की बात आती है तो इक्विटी इन्वेस्टमेंट की अन्य सभी वर्गों से अधिक लाभकारी है.
अत: अधिक जोखिम की क्षमता वाले निवेशकों को इक्विटी फंड में 100 प्रतिशत तक निवेश की छूट दी जानी चाहिए. इससे उन्हें अपने रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए अधिक धन सृजित करने में मदद मिलेगी.
सेक्शन 80ईई के तहत छूट को जारी रखना
पिछले साल, सरकार ने पहली बार घर खरीदने वाले लोगों को 50,000 रुपए की अतिरिक्त छूट मुहैया कराने के लिए धारा 80 ईई प्रारंभ की थी. इस सेक्शन में छूट के लिए संपत्ति की कीमत पर 50 लाख और कर्ज की राशि पर 35 लाख रुपये की अधिकतम सीमा रखी गई थी.
इसका कारण, कम कीमत के घर खरीदने वाले लोगों और सस्ती आवासीय परियोजनाओं को बढ़ावा देना था. सरकार को खासतौर पर अपने ‘सबके लिए घर’ फोकस को ध्यान में रखते हुए, इस योजना को अगले फाइनेंसियल इयर में भी जारी रखना चाहिए.
इस साल सरकार कैशलेस पहल से होने वाले लाभ के आधार को मजबूत करेगी और इसका प्रयोग पेपरलेस और अधिक फाइनेंसियल इंटीग्रेशन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए करेगी.
बेसिक कर-रियायत सीमा में बढ़ोतरी करने और धारा 80ईई को जारी रखने जैसे उपायों से मांग में वृद्धि होगी. दूसरी ओर, पेंशनों में सुधार व ईएलएसएस निवेशों के लिए छूटों से लॉन्ग टर्म निवेश और रिटायरमेंट बचतों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.
नवीन कुकरेजा – मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सह-संस्थापक, Paisabazaar.com