बीएसएफ हो या सीआरपीएफ, ये जो तेज बहादुर यादव ने खराब खाने का वीडियो शूट कर के उसे लीक किया है, ये सिर्फ धुंए की एक हल्की सी लकीर है.
समय देखिए 31 जनवरी को तेज बहादुर वीआरएस यानी स्व-इच्छित अवकाश के साथ रिटायर्ड हो रहा है. जाते-जाते एक भ्रष्टाचार को सामने लाने की इच्छा जवान के दिल में पैदा हो गयी. कुछ इस तरह से कि ‘अब मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा’.
फिर एक वीडियो हमारी नजरों के सामने आया जिसे हम सब ने देखा. अब तो आंकड़े भी आ गए कि पिछले कुछ घंटों में 90 लाख से ज्यादा लोग इसे देख चुके हैं और लगभग साढ़े चार लाख लोगों ने अपने अकाउंट से इसे शेयर किया है.
हर जगह एक जैसा मंजर
करीब एक साल पहले की वह तस्वीर आंखों के सामने आ गयी. मैं वसंत विहार, दिल्ली के अपने दफ्तर में दाखिल हुआ ही था कि मेरे दोस्त दीपक ने बताया कि कोई नौजवान मिलने के लिए पिछले दो घंटे से बैठा है.
अगले 15 मिनट में, कांफ्रेंस रूम में वह मेरे सामने था. साढ़े छह फुट का कद, सांवला रंग, हष्ट-पुष्ट, मध्यप्रदेश, मुरैना जिले का निवासी और सीआरपीएफ में हवलदार चौहान जो कुछ बता रहा था वह बड़ा दर्दनाक था.
दर्दनाक इसलिए कि कथानक का दर्द उसके जैसे चेहरे और कद-काठी पर बुरा लग रहा था. चौहान की ज्यादातर शिकायतें उन अफसरों को लेकर थीं जिनके मातहत वह काम करता था.
चौहान ने कहा, 'ऐसे काम हम लोगों को करने पड़ते हैं कि दिल करता है आत्महत्या कर लूं. हमने जब जॉइन किया था तो लगा था कि देश की सेवा करने जा रहा हूं. छाती फूली हुई थी हमारी, लेकिन क्या पता था कि साहब के घर का नौकर बनना पड़ेगा, पूरे घर के जूते पॉलिश करने पड़ेंगे, घर के कपड़े सिलवाने, बाजार से सब्जी लाने और मरम्मत के काम करने पड़ेंगे.'
उसके पास कुछ वीडियो थे. बड़े हिलते-डुलते से वीडियो, कहीं कोई दीवार उठाई जा रही है, कहीं कपड़े धोने का आभास हो रहा है. ऑडियो में कोई महिला बड़े ही कर्कश आवाज में बोले जा रही है. वो ठीक से काम न करने पर नौकरी से निकलवा तक देने की धमकियां दे रही है. देखते ही लग गया कि बहुत डरते हुए कैमरा चलाया जा रहा था.
'जी डर तो लगता ही है, पकड़े गए तो यह तय है कि छोड़ा नहीं जायेगा, बहुत संगीन अपराध में डाल दिया जाएगा.'
हम उस नौजवान की आंखों का दर्द पढ़ रहे थे. साथ ही यह भी देख रहे थे कि जो सुबूत के तौर पर वो लाया है वह काफी नहीं है. फिर ये भी मन में चल रहा था कि अगर इसे सामने लाया गया तो उन अफसरों का तो कुछ नहीं होगा मगर इस नौजवान की नौकरी जाएगी. अगला एक घंटा उसे समझाने में खर्च हुआ. अाखिरकार वो संतुष्ट तो नहीं हुआ लेकिन फिर भी मुस्कुराते हुए उसने विदा ली.
फोर्स में सब कुछ ठीक नहीं
72 बैच के एक रिटायर्ड आईपीएस के मुताबिक, 'यह घटिया खाने का मामला, मेरा जो अनुभव है, उसके आधार पर कोई एक अकेला केस हो सकता है, सामान्यत: ऐसा नहीं है. लेकिन हां, घर के काम-काज वाली आपकी बात में काफी सच्चाई है. होता क्या है कि यह जो आजकल की नए जमाने की (अफसरों की) पत्नियां होती हैं वह इन रंगरूटो, सिपाहियों और हवलदारों से बहुत से ऐसे अनुचित काम करवाती हैं. यह सही है.'
कुल मिलाकर ‘पारा मिलिट्री फोर्सेज’ में सबकुछ ठीक नहीं है, इसका आभास ही काफी है.
बक्शी साहब बताते हैं कि हमारे जमाने में ऑफिसर-मेस से ज्यादा अच्छा खाना लंगर में बनता था. लंगर उस खाने को कहते हैं जो जवानों के लिए तैयार किया जाता है.
एक और बातचीत में यह भी सामने आया कि कुछ कमांडेंट पूरी फोर्स को बदनाम करते हैं. कैसे? मेरे सवाल पर बोले, 'जैसे किसी ने बोल दिया कि मुझे हर कंपनी से पांच हजार चाहिए. अब अगर उसके अंडर में 6 कम्पनियां हैं तो 30 हजार महीना उसकी आमदनी हो गयी. अब इसका असर उनके खान-पान में कटौती पर तो करेगा ही.' मैं उनकी बात का समर्थन सिर हिलाने के अलावा और किस तरह से कर सकता था.
बीएसएफ का खाना काफी मशहूर है. इसकी एक मिसाल देते हुए मेरे मित्र बोले, गृहमंत्री के यहां जो पेंट्रीज होती हैं, वहां कैटरिंग के लिए हमेशा से बीएसफ की सेवाएं ही ली जाती हैं.
क्या मिलेगा जवानों को इंसाफ?
तेज बहादुर यादव ने जिस जगह की वीडियो बनायीं है, वह दरअसल जम्मू फ्रंटीअर का मंडी-मंदिर ऑपरेशनल एरिया है. यहां आर्मी की मदद के लिए बीएसएफ जवानों को डेप्युटेशन पर भेजा जाता है.
वहां के सारे प्रबंध आर्मी के होते हैं. चूंकि ऑपरेशनल एरिया है इसलिए खाना-पीना बहुत अस्थायी तौर पर बनाया जाता है, जिसमें गिरावट आना कोई हैरत की बात नहीं होनी चाहिए.
कुल मिलाकर सब इस घटना से पल्लू झाड़ रहे हैं. लेकिन जैसा की सरकार से संकेत मिल रहे हैं कि इस घटना की निष्पक्ष-जांच करायी जायेगी.
हम उम्मीद करते हैं कि तेज बहादुर चौहान और वे जवान जो इस घटना के बाद से सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयान कर रहे हैं, उनको इंसाफ मिलेगा. सीएजी भी अपनी रिपोर्टों में कई बार इस बात का इशारा कर चुकी है.
यह इंसाफ तभी मिल सकता है जब पारा मिलिट्री फोर्स के उच्च-अधिकारी स्थिति को समझें. साथ ही यह भी समझें की अब लोगों के पास सोशल मीडिया के रूप में एक हथियार है. यह खतरनाक भी है लेकिन कई बार मददगार भी साबित होता है.
यह धुआं जो उठ रहा है, संकेत है उस भ्रष्ट-व्यवस्था की ओर जो आर्म्ड फोर्सेज में दशकों से चली आ रही है और अनुशासन के नाम पर दबाई जाती रही हैं.
बीएसएफ हो या सीआरपीएफ, सिर्फ यह कहकर नहीं बच सकते कि तेज बहादुर अनुशासनहीनता और दिमागी असंतुलन का शिकार है. उसकी पत्नी का यह बयान सोचने पर मजबूर करता है कि अगर उसका पति जो अपनी 20 वर्षों की सेवा में 14 अवार्ड प्राप्त कर चुका है वो दिमागी असंतुलन का शिकार है तो उसके हाथ में रायफल क्यों थमाई गई?
सवाल, वाकई वाजिब है और इशारा कर रहा है कि भ्रष्ट व्यवस्था की इस लडाई की अभी केवल शुरुआत है. जिस तेजी से यह खबर फैली है, इसने बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवानों में सच को सामने लाने की हिम्मत दे दी है.