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48 साल तक मुकदमा लड़कर वापस लिया अपना फ्लैट

मुकदमा करने वाले नवीनचंद्र नानजी अदालत में इस मामले के लंबित रहने के दौरान ही चल बसे थे

Bhasha

अपने एक कमरे के फ्लैट पर फिर से कब्जा पाने के लिए 48 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. आखिरकार मुंबई के एक परिवार को इंसाफ मिल ही गया. क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने किराएदार को मकान खाली करने को कह दिया है.

मुकदमा करने वाले नवीनचंद्र नानजी अदालत में इस मामले के लंबित रहने के दौरान ही चल बसे थे. उनके कानूनी उत्तराधिकारियों ने राहत पाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी.


12 हफ्ते के अंदर फ्लैट करना होगा खाली 

कोशिश अंतत: रंग लाई. उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने पिछले हफ्ते आदेश दिया कि उनके किराएदार मकान 12 हफ्ते के अंदर खाली करें. सीवड़ी इलाके में यह मकान 1967 में किराए पर दिया गया था.

न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी ने न्यायिक प्रणाली की सुस्ती पर अफसोस प्रकट किया. उन्होंने कहा, ‘एक सजग न्यायिक मस्तिष्क के लिए यह एक झटका है. इस मामले में करीब 48 साल पहले खाली कराने का केस दर्ज किया गया था.

अब तो प्रतिवादी इस मुकदमे की स्वर्णजयंती मनाएंगे. जहां याचिकाकर्ता केस के परिणाम के लिए इंतजार करते रहे, वहीं प्रतिवादी किराएदार न्यायिक प्रक्रिया की व्यवस्थागत सुस्ती का लाभ उठाते रहे.

नानजी 1969 में निचली अदालत गए थे 

अर्जी के अनुसार नानजी 1969 में निचली अदालत पहुंचे थे. किराए पर देने के दो साल बाद किराएदार जिवराज भानजी ने मकान खाली करने से इनकार कर दिया. उसका कहना था कि उसने उस फ्लैट में कानूनी तौर पर स्थाई परिवर्तन कराया है. इसके बाद नानजी निचली अदालत पहुंचे थे.

कुछ महीने बाद नानजी को पता चला कि भानजी, उसकी पत्नी और उसके पांच बच्चे वडाला इलाके में एक अन्य मकान में चले गए. लेकिन वह सेवरी फ्लैट का अपने मजदूरों के कैंटीन के रुप में अवैध रुप से प्रयोग करने लगे. निचली अदालत ने 1984 में सेवरी फ्लैट खाली करने का आदेश दिया.

लेकिन बॉम्बे स्मॉल काउज कोर्ट की अपीली पीठ ने इस फैसले को पलट दिया. वहां भानजी ने दलील दी कि वडाला में उसकी पत्नी और बच्चों ने किराए पर मकान लिया है तथा वह न तो उसका मालिक है औ न ही किराएदार. वर्ष 1988 में नानजी के बेटे उच्च न्यायालय पहुंचे. इसी बीच भानजी मर गया, लेकिन सीवड़ी वाला फ्लैट उसके बच्चों के कब्जे में रहा.

इस साल चार सितंबर को न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने व्यवस्था दी कि अपीली अदालत ने निचली अदालत के फैसले को पलटकर गंभीर भूल की.