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ब्लू व्हेल चैलेंज : सिर्फ बैन ही नहीं है सॉल्यूशन, इसकी जड़ तक कैसे पहुंचें?

ब्लू व्हेल चैलेंज यानी 'सुसाइड गेम' के चक्कर में आकर पिछले कुछ दिनों में देश के कई शहरों में बच्चों ने जान देने की कोशिश की है

Nimish Sawant

ब्लू व्हेल चैलेंज यानी 'सुसाइड गेम' जिसने आजकल सोशल नेटवर्क पर खूब हड़कंप मचाया हुआ है. 4 साल पुराना यह ऑनलाइन गेम महज 50 दिन में आपको अपने वश में कर के या तो बिल्डिंग से छलांग मारने के लिए मजबूर कर देता है, या फिर किसी पुल पर चढ़कर या ट्रेन के नीचे आकर खुदकुशी करने के लिए उकसाता है.

30 जुलाई, 2017 के दिन मुंबई में 14 साल के एक लड़के की मौत के बाद यह जानलेवा गेम सवालों के कठघरे में आ गया है. इस जानलेवा गेम का क्रेज इतना फैल गया है कि कई टीनेजर्स इस गेम को खेलने लगे हैं. इस चैलेंज से प्रेरित होकर इंदौर में 13 साल का एक लड़का बिल्डिंग से कूदकर सुसाइड करने जा रहा था. लेकिन सही समय पर उसके दोस्तों ने उसे यह कदम उठाने से बचा लिया. हाल ही में, पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर में 10वीं क्लास के एक छात्र ने भी खुदकुशी कर ली. एक बार फिर शक की सुई इसी खेल की तरफ जाती है.


इन हादसों के बाद केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने गृह मंत्री और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वो सोशल मीडिया से ब्लू व्हेल चैलेंज गेम को हटवाएं. हालांकि, इस बात पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या इन सभी मौतों के पीछे ब्लू व्हेल चैलेंज है?

जहां टीचर्स और पैरेंट्स अभी भी इस जानलेवा खेल को समझने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं सरकार ने अपने निर्देश में सर्च इंजन गूगल इंडिया, माइक्रोसॉफ्ट इंडिया और याहू इंडिया के अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म- फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को ब्लू व्हेल चैलेंज गेम को डाउनलोड करने की सुविधा या इससे जुड़ा कोई लिंक अपने प्लेटफॉर्म से तुरंत हटाने को कहा है.

केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन सरकार से पहले ही इस गेम पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं. विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में खत भी लिखा है. इसकी एक कॉपी तिरुवनंतपुरम में मीडिया को भी भेजी गई है.

सिर्फ यही नहीं, महाराष्ट्र सरकार भी इस गेम पर बैन लगाना चाहती है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई में हुई आत्महत्या के लिए इस ब्लू व्हेल खेल को दोषी ठहराया है. अब वो केंद्र सरकार की मदद से मौत के इस खेल को हमेशा के लिए बंद करवाना चाहते हैं. देश में बाल अधिकार की टॉप बॉडी 'नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स' आईटी मिनिस्ट्री को इस मुद्दे पर तीन बार पत्र लिख चुकी है, जिसमें उन्होंने ऐसे ग्रुप की पहचान करने को कहा है जो ब्लू व्हेल चैलेंज फैला रहे हैं.

यह चैलेंज बैन कैसे किया जाए?

इस चैलेंज को फैलने से रोकने के लिए कदम तो जरूर उठाने चाहिए, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इसका हल इसको बैन करने में है? दरअसल, इस ऑनलाइन गेम को अगर एक बार साइन इन कर लिया, तो इसे तब तक क्विट (निकल) नहीं कर सकते हैं, जब तक आप 50 दिन में इसके दिए 50 चैलेंज ना पूरे कर लें.

ये सारे टास्क लगभग सुबह के 4 बजकर 20 मिनट पर शुरू होते हैं. शुरुआती टास्क काफी आसान होते हैं, ताकि प्लेयर इसकी गिरफ्त में आ जाए. मसलन पूरी रात जागना, डरावनी फिल्में देखना, हॉरर ऑडियो फाइल्स सुनना. प्लेयर को इन सभी टास्क को पूरा करने का प्रूफ एडमिन को तस्वीरें खींचकर भेजना होता है. यानी हर टास्क के बाद प्लेयर को #curatorfindme, #BlueWhaleChallenge के साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फोटो शेयर करनी होती है.

टास्क 4 में प्लेयर पूरी दुनिया को हैशटैग के जरिए बताता है कि वो इस चैलेंज का हिस्सा है और अपने स्टेटस को अपडेट करता है- #iamwhale. एडमिन ये सारे हैशटैग्स मॉनिटर करता रहता है और सोशल मीडिया, जैसे- फैसबुक, वाट्सऐप, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम आदि के जरिए प्लेयर से संपर्क बनाए रखता है.

इस दौरान, एडमिन अपनी पहचान छिपाए रखता है. यानी एडमिन की टीम के बारे में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सकता. और तो और, इस चैलेंज की ना कोई वेबसाइट है, ना लिंक, ना सब्स्क्राइबर और ना ही यह किसी ऐप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. इस खेल के दौरान, एडमिन प्लेयर की सारी निजी जानकारी भी जुटा लेता है और गेम छोड़ने या टास्क ना करने पर मारने की धमकियां भी देता है.

इस गेम की शुरुआत रूस में VKontakte नाम की वेबसाइट पर हुई थी और अब इस वेबसाइट पर भी इन हैशटैग्स को बैन किया जा रहा है. इस खेल के कारण रूस में 130 जिंदगियां खत्म हो चुकी हैं. ऐसे में राजनीतिक गलियारे में हल्ला मचा हुआ है. सीनियर मंत्री दावा कर रहे हैं कि केरल में 2000 से ज्यादा बच्चे इस गेम के शिकंजे में हैं.

इस पूरे मामले पर मुंबई बेस्ड काउंसलर और साइकोथेरेपिस्ट दिव्या श्रीवास्तव का कहना है, 'अगर सरकार को लगता है कि सोशल नेटवर्क पर सिर्फ ब्लू व्हेल चैलेंज ही बच्चों के लिए खतरा है, तो वो गलती कर रहे हैं. आए दिन इंटरनेट पर कुछ न कुछ पॉप अप होता रहता है. अब सरकार कितने पॉप अप्स, हैशटैग्स और लिंक्स को फॉलो करेगी? बच्चों को वो चीज ज्यादा लुभावनी लगती है, जिसके लिए आप उन्हें मना करते हैं. इस गेम को बैन करने से वो इसकी तरफ ज्यादा आकर्षित होंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि यह है क्या?'

सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी इस खेल पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून और न्याय मंत्रालय के साथ बातचीत कर रहा है. ये उन वेबसाइट्स को दंडित करेंगे जो इस गेम को बढ़ावा देंगी.

दिव्या कहती हैं, 'सोशल मीडिया साइट्स पर इन हैशटैग्स पर प्रतिबंध लगाने से, एडमिन को विक्टिम्स मिलने में मुश्किल होगी. मैंने फेसबुक और ट्विटर पर दो हैशटैग्स # ब्लूव्हेलचैलेंज और # क्यूरेटरफाइंडमी सर्च किए. फेसबुक ने पहले परिणाम में 'आत्महत्या और आत्म हानि' रोकथाम संसाधनों को जोड़ा. ट्विटर पर या तो लोग इस चैलेंज को खेलते पाए गए या फिर इसे प्रमोट करते हुए. यानी, हैशटैग्स इन दोनों प्लेटफॉर्मों पर दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, यह कोई गारंटी नहीं है कि हैशटैग्स को हटाने से यह गेम फैलेगी नहीं. लेकिन, इसका प्रभाव कम लोगों पर जरूर पड़ेगा.'

बैन करने के अलावा इस ओर भी दें ध्यान

डॉक्टर दिव्या के मुताबिक, 'इसका सोल्यूशन गेम को बैन करने में नहीं, बल्कि कुछ ऐसी पॉलिसीज के निर्माण में है जिससे टीनेजर्स को साइबर सेफ्टी और सिक्योरिटी के बारे में पूरी जानकारी मिले. सिर्फ यही नहीं, सरकार को इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि अगर किसी बच्चे में लो-सेल्फ एस्टीम है, तो उसे मुफ्त में प्रोफेशनल हेल्प मिले.'

मुंबई बेस्ड मनोचिकित्सक हरीश शेट्टी कहते हैं, 'सरकार को नेशनल सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी का निर्माण करना चाहिए, जिसमें एडल्ट्स को बताया जा सके कि वो बच्चों के सेल्फ हार्म करने वाले लक्षणों को कैसे समझें और इससे कैसे निपटें, क्योंकि इस गेम के 50 टास्क में सेल्फ-हार्म ही है.'

पैरेंट्स का कैसा हो रोल

इसकी जिम्मेदारी के घेरे में इंटरनेट ही नहीं, पैरेंट्स और टीचर्स भी हैं. बच्चों को छोटी उम्र में खेल-खेल में मोबाइल पकड़ा दिया जाता है. और जब तक वो बड़े होते हैं, ये गैजेट्स उनके लिए माता-पिता से भी ज्यादी जरूरी हो जाते हैं. बच्चों को जिस उम्र में अपने माता-पिता और टीचर्स पर निर्भर होना चाहिए, वो इन गैजेट्स को दोस्त बना लेते हैं. आजकल के फास्ट लाइफस्टाइल में जहां दोनों पैरेंट्स वर्किंग होते हैं, बच्चे अपना टाइमपास इन गैजेट्स के जरिए करते हैं और इन पर मेंटली, इमोशनली डिपेंडेंट भी होने लगते हैं.

सिर्फ यही नहीं, बच्चों को खुद में बिजी रखने के लिए भी माता-पिता उन्हें मोबाइल पर इंटरनेट चलाकर दे देते हैं. एक-दूसरे की देखा-देखी बच्चे अब स्कूल में भी फोन लाने लगे हैं. इमोशनली वीक, आत्मविश्वास की कमी और अकेलेपन से जूझ रहे बच्चों का फायदा फिलिप बुडेकिन जैसे गेम डवलेपर्स उठा लेते हैं और मासूम बच्चों को धीरे-धीरे मौत के कुएं में धकेल देते हैं.

ऐसे में ये स्कूल टीचर्स और माता-पिता की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने बच्चों पर नजर रखें, उन्हें अकेला ना छोड़ें, वो मोबाइल पर क्या देखते हैं उसकी हिस्ट्री देखें और अपने बच्चों में खुद पर विश्वास करने की फीलिंग जगाएं. अगर कोई बच्चा डिप्रेस है तो उसे डॉक्टर की मदद दें और प्यार से उनका भोला-भाला मन जीतने की कोशिश करें.

अब सबकी नजर इस पर है कि सरकार गेम को कैसे बैन करती है? इसका प्रेशर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. पहले भी जब कुछ यूआरएल के चलते दिक्कतें आई हैं. वो यूआरएल नहीं, बल्कि पूरी वेबसाइट ही बैन हुई है. ऐसे में इस मुद्दे को सुलझाने का सही तरीका यह है कि उन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से इन हैशटैग्स को बढ़ावा ना देने के लिए मदद ली जाए. यह होगा या नहीं, इसका तो पता नहीं लेकिन इससे मुसीबत की जड़ तक जरूर पहुंचा जाएगा.

डॉक्टर दिव्या का कहना है, 'सिर्फ यही नहीं, अगर पैरेंट्स इंटरनेट के लेटेस्ट ट्रेंड्स को समझ नहीं पा रहे, तो यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उनकी मदद करे. और तो और, स्कूल और कॉलेज में बच्चों को सेफ ऑनलाइन बिहेवियर के बारे में भी शिक्षित किया जाना चाहिए, जैसे- कैसे वो किसी को अपनी पर्सनल जानकारी देने से बचें, इंटरनेट पर अपरिचितों से कैसे दूरी बनाएं.'