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सुब्रमण्यम स्वामी ने क्यों दिया पड़ोसी देश मालदीव पर हमला करने का बयान?

विदेश मंत्रालय ने उनके इस बयान पर कहा कि ये उनका निजी बयान है. भारत किसी भी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता

FP Staff

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ये कहकर विवादों को जन्म दे दिया है कि अगर पड़ोसी देश मालदीव के अगले आम चुनावों में कोई धांधली होती है तो भारत को इस देश पर हमला कर देना चाहिए. विदेश मंत्रालय ने स्वामी के इस बयान को निजी बताकर इससे खुद को अलग कर लिया है. वहीं मालदीव इस बयान से भड़क गया है. मालदीव के विदेश सचिव अहमद सरीर ने भारतीय हाई कमिश्नर अखिलेश मिश्रा को इस रविवार समन किया था.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक विदेश सचिव अहमद सरीर ने इस बयान की आलोचना की है और मालदीव की सरकार ने भी इस घटना को आश्चर्यजनक बताया है.


सुब्रमण्यम स्वामी ने रविवार को ट्वीट किया था कि अगर 23 सितंबर को होने वाले मालदीव के आम चुनावों में कोई धांधली होती है तो भारत को इस देश पर हमला कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि मालदीव की वर्तमान सरकार को उनके इस बयान से इतनी परेशानी क्यों हो रही है? मालदीव में वैसे भी भारतीयों को प्रतिहिंसा का शिकार होना पड़ रहा है. हम अपने नागरिकों की सुरक्षा करनी है.

दरअसल सुब्रमण्यम स्वामी ने पिछले बुधवार को कोलंबो में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के साथ एक बैठक की थी, जिसमें नाशीद ने आशंका जताई थी कि सितबंर में होने वाले आम चुनावों में वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की पार्टी की तरफ से धांधली की जा सकती है. इसके बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने हमला करने का बयान दिया था.

उनके बयान का विरोध करने वालों को जवाब में उन्होंने कहा था कि भारत ने मालदीव को 1988 में तमिल टेरेरिस्ट्स की घुसपैठ से बचाया था. तब आपने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. उन्होंने कहा कि आज भारतीयों को मालदीव छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है. अगर यहां के चुनावों में धांधली हुई तो मालदीव इस्लामिक आतंकवादी बन जाएगा.

विदेश मंत्रालय ने उनके इस बयान पर कहा कि ये उनका निजी बयान है. भारत किसी भी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता.

बता दें कि मालदीव और भारत के संबंध पिछले कुछ वक्त से खराब ही होते जा रहे हैं. मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने फरवरी में देश में आपातकाल की घोषणा की थी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जेल में बंद विरोधी नेताओं को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसके बाद यामीन ने इन जजों को गिरफ्तार करवा लिया और देश में आपातकाल की घोषणा करवा दी. यामीन के इस कदम की विश्वभर में आलोचना हुई थी. भारत ने दोनों देशों के नाजुक संबंधों को देखते हुए सधा हुआ बयान दिया था कि भारत किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता है लेकिन मालदीव को लोकतंत्र की मूल भावनाओं के बारे में सोचना चाहिए.

यामीन पिछले कुछ वक्त से भारत की बजाय चीन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. पिछले महीनों में मालदीव ने चीन और पाकिस्तान का सहारा लेकर भारत को कई झटके दिए हैं. अप्रैल महीने में मालदीव ने भारत की ओर से दिए गए 2 नौसेना के हेलीकॉप्टरों में से एक भारत को वापिस ले जाने को बोला था. हेलिकॉप्टर वापस करने और भारतीय कामगरों को परमिट न देने के बाद मालदीव ने ऊर्जा क्षेत्र में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए. पाकिस्तान के जनरल कमर बाजवा ने भी यहां अप्रैल में दौरा किया था. चीन भी माले को काफी सैन्य सहायता उपलब्ध करवा रहा है इसलिए इस दिशा में भारत को काफी सोच-समझकर कदम उठाने की जरूरत है.