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अब मोदी सरकार भी संसद में बाधा बनी

विपक्ष के बाद अब खुद बीजेपी संसद चलाने में बाधा बन रही है

सुरेश बाफना

लोकसभा व राज्यसभा में गुरुवार को एक बार फिर जो दृश्य दिखाई दिए, उनसे स्पष्ट था कि सरकारी पक्ष के सदस्यों ने इस निर्णय के साथ सदन में प्रवेश किया था कि सदन की कार्यवाही को नहीं चलने देना है.

विमुद्रीकरण के मुद्दे पर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों ने 17 दिनों तक दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी और पिछले चार दिनों से मोदी सरकार के मंत्रियों ने यह सुनिश्चित किया कि सदन की कार्यवाही न चलें.


राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद का यह कहना सही है कि आजाद भारत के इतिहास में पहला मौका है, जब सरकारी पक्ष ने संसद की कार्यवाही को चलने नहीं दिया. साथ ही कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकार करना चाहिए कि विमुद्रीकरण पर लगातार 17 दिनों तक संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था.

आश्चर्य की बात यह है कि गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में विमुद्रीकरण पर शुरू हुई बहस में हस्तक्षेप करते हुए मोदी सरकार के निर्णय को उचित बताया था. डेढ़ दिन तक राज्यसभा में विपक्षी नेताओं के भाषण होने के बाद कांग्रेस पार्टी को लगा कि लोकसभा में बहस स्थगन प्रस्ताव के तहत ही होना चाहिए.

उम्मीद थी सुलह होगी

17 दिनों तक विपक्षी दलों के अनावश्यक तौर पर लंबे विरोध के बाद स्थिति बनी थी कि सरकार और विपक्ष मिलकर कोई सुलह निकालें, लेकिन दोनों पक्षों के बीच आपसी अविश्वास इतना बढ़ गया कि सामान्य बातचीत भी संभव नहीं हो पाई.

राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उसके आधार पर मोदी सरकार को लगता है कि कांग्रेस पार्टी की रणनीति यह है कि किसी तरह लोकसभा में राहुल का भाषण करवा लिया जाए और फिर सरकारी पक्ष के किसी भी वक्ता को बोलने न दिया जाए. इसलिए सरकारी पक्ष ने भी निर्णय लिया कि राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली के भाषण के बाद ही लोकसभा में राहुल गांधी बोलने दिया जाएगा.

लोकतंत्र में विपक्षी दलों को अविवेकपूर्ण व्यवहार करने का अधिकार होता है, लेकिन यह अधिकार सरकार के पास नहीं है. भाजपा जब विपक्ष में थी, तब भी कई मुद्दों पर उसने संसद की कार्यवाही को लंबे समय तक रोका था, लेकिन कांग्रेस पार्टी की सरकारों ने सुलह की कोशिश कभी छोड़ी नहीं थी. पहली बार सरकारी पक्ष सुलह की कोशिश करने की बजाय विपक्ष के साथ टकराव की मुद्रा में खड़ा दिखाई दे रहा है.

गुरुवार को जब लोकसभा में कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल बिना किसी शर्त के विमुद्रीकरण पर बहस करने के लिए तैयार दिखाई दिए तो संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाप्टर घोटाले पर बहस की मांग कर यह सुनिश्चित कर दिया कि स्पीकर सुमित्रा महाजन सदन की कार्यवाही स्थगित कर दें.

भाजपा सांसदों  ने शुरू किया हंगामा

राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी विमुद्रीकरण पर अधूरी बहस को शुरू करने की बजाय किसानों से जुड़े मुद्दों को उठाना चाहती थी. जाहिर है सरकारी पक्ष नहीं चाहता था कि विपक्ष की कोई बात रिकार्ड में जाए, इसलिए भाजपा सांसदों ने वेस्टलैंड हेलिकाप्टर घोटाले पर बहस की मांग कर हंगामा खड़ा कर दिया.

सरकार में होने के नाते भाजपा की जिम्मेदारी है कि वह अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाप्टर घोटाले पर सदन में बहस की मांग करने की बजाय कार्रवाई करके संसद को अवगत कराए. यदि इस मामले में कांग्रेस के नेता शामिल हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने से भाजपा को कौन रोक रहा है?

विमुद्रीकरण पर मोदी सरकार और विपक्षी दलों के बीच संसद में 20 दिनों तक चले इस राजनीतिक संग्राम में किसको लाभ मिला यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि संसद की प्रतिष्ठा व गरिमा को गहरा आघात पहुंचा है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी दुखी मन से सवाल करते हैं कि क्या ऐसी स्थिति में मुझे संसद का सदस्य बने रहना चाहिए? उनका यह सवाल मोदी सरकार के कामकाज पर बेहद कठोर टिप्पणी है. संसद में सरकार व विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक टकराव होना स्वाभाविक है, पर इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि यह टकराव आत्मघाती रूप न ले ले.