मनोरमा देवी द्वारा स्थापित सृजन महिला विकास सहयोग समिति 'गुंडा बैंक' के नाम से जाना जाता था. सहायता के नाम पर यह बैंक जरूरतमंद लोगों को मनमानी इंटरेस्ट रेट पर कर्ज देता था.
निर्धारित समय सीमा के अंर्तगत कर्ज की रकम चुकता नहीं करने पर सबक सिखाने के लिए गुंडों की मदद ली जाती थी.
लोन की रिकवरी सुनिश्चित करने के लिए मनोरमा देवी ने बाकायदा गुंडों की एक फौज तैयार कर रखी थी. इस रहस्य का खुलासा बैंक आफ बड़ौदा के स्केल टू आफिसर अतुल रमन और भागलपुर जिला कल्याण पदाधिकारी अरुण कुमार गुप्ता ने घोटाले की चांच कर रही पुलिस टीम को दी है.
दोनों अधिकारियों ने ये भी बताया, 'जो भी व्यक्ति मनोरमा देवी की बात को नहीं मानता था उसको वो कठोर शारीरिक तथा मानसिक दंड दिया करती थीं'. छोटे-मोटे सरकारी अधिकारियों और बैंक कर्मियों से अपने पक्ष में काम कराने का उनका अपना तरीका था. बकौल अतुल रमन, 'पहले किसी भी गलत काम के लिए पैसे का प्रलोभन देती थीं. नहीं मानने पर घर पर गुंडे भेज देती थीं. कभी-कभी खुद नकद लेकर घर पहुंच जाती थीं और पैसा लेने से इंकार करने पर धमकी देती थीं'.
कई खाता धारियों एवं ऋण लेने वालों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, 'जब हमलोग मनोरमा देवी द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को पुलिस संज्ञान में लाते थे तो हमारी जमकर पिटाई की जाती थी और कानून के रखवाले उनके गुंडे द्वारा किए जा रहे बर्बर अत्याचार को देखते रहते थे'.
सृजन महिला सहयोग सहकारी समिति सिलाई मशीन से लेकर, बाइक, कार और मकान बनाने तक का लोन देता था.
दिखाने के लिए कागज में लोन का ब्याज आरबीआई द्वारा तय की गई गाइडलाइन के अंर्तगत होता था. परंतु मनोरमा देवी के पास एक अलग रजिस्टर रहता था जिस पर दर्ज की गई ब्याज की दर पर कर्ज की वसुली की जाती थी. कहते हैं इसका इंटरेस्ट रेट तीन रुपए सैकड़ा हुआ करता था. यानि एक महिने में 100 रुपए पर 3 रुपए ब्याज. साल में 100 रुपए लोन का इनटरेस्ट 32 रुपए.
मरहूम मनोरमा देवी को 'गुंडा बैंक' चलाकर अकूत धन बटोरने की शिक्षा-दीक्षा एक घाघ स्वजातीय आइएएस ऑफिसर ने दी थी जो 2003 में बिहार सरकार में ताकतवर अधिकारी हुआ करते थे. इस अधिकारी ने नियम कानून को ठेंगा दिखाते हुए 5 वर्षों तक सृजन की संचालिका मनोरमा देवी को बिहार स्टेट कोऑपरेटिव बैंक का डायरेक्टर बना कर रखा.
उस आफिसर के रसूख का अंदाजा एक घटना से लगाया जा सकता है. तब वो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे तो किसी 'जरूरी' काम के सिलसिले में पटना प्रवास पर आए थे. लिकर टायकून विजय माल्या ने चार्टड विमान से उससे मिलने बिहार की राजधानी पटना में लैंड किया था. जनाब अपने को एक फॉर्मर केंद्रीय फाइनेंस मंत्री का क्लोज रिलेटिव भी बताते हैं.
महागठबंधन सरकार में 20 माह का काल सुखले कट गया क्योंकि लालू प्रसाद के कोप के कारण वेटिंग फॉर पोंस्टिंग में रह गए. लेकिन राज्य में एनडीए की सरकार बनने के बाद चेहरे पर हल्की रोशनी आने लगी है. आस जगी है की मलाइदार विभाग मिलेगा. पर डर भी है कि कहीं सृजन रूपी बम सब गुड़-गोबर न कर दे.
मनोरमा देवी के 'गुंडा' बैंक को स्ट्रॉन्ग बनाने में अहम भूमिका भागलपुर के जिस डीएम ने की वो बाद के दौर में नौकरी से स्वेच्छा से सेवानिवृति लेकर जनता दल यू की टिकट पर 2014 का चुनाव लड़े. बुरी तरह हारे. कहते हैं चुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मनोरमा देवी भी प्रचार करने गई थीं.
कागजी सबूत के अनुसार इसी सेल्फ सेवानिवृत्त आइएएस ने सभी सरकारी मुलाजिमों को निर्देश जारी किया था कि विभिन्न योजनाओं में आए धन को मनोरमा देवी के 'गुंडा बैंक' में डिपॉजिट किया जाए. उस समय भागलपुर जिले में पदस्थिापित एक प्रखंड प्रमुख ने बताया, ' मेरे अलावा 4 बीडीओ ने जब कलेक्टर के निर्देश का विरोध किया तो तबादला करा दिया गया.'
सनद रहे कि उस दौर में बिहार के भागलपुर और खगड़िया, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में सरकार के नजदीक रहे दबंगों द्वारा प्राइवेट बैंक चलाए जा रहे थे. इन बैंको को गुंडा बैंक कहा जाता था. 2005 में सत्ता परिवर्तन के बाद सीएम नीतीश कुमार की कड़ी फटकार के बाद प्रशासन ने सक्रिय होकर उन बैंको को बंद कराया.
लेकिन आश्चर्य है कि मनोरमा देवी द्वारा संचालित 'गुंडा बैंक' पर सीएम नीतीश कुमार की नजर क्यों नहीं पहुंच पाई? और न ही नीतीश कुमार का कोई प्राइवेट गुप्तचर इसका उदभेदन करने में सफल रहा. जबकि सीएम नीतीश कुमार मजबूत गुप्तचरी नेटवर्क रखने का प्रमाणित रूप से दावा करते हैं