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शेल्टर होम चलाने से NGO को रोकने की बिहार सरकार की योजना गैरजरूरी: TISS प्रोफेसर

'मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप कांड का मामला दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन जांचे गए सभी शेल्टर होम में इस तरह के कानूनी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं थी'

Neerad Pandharipande

पिछले कई हफ्ते से, बिहार के मुजफ्फरपुर का एक गर्ल्स शेल्टर होम यहां रहने वाली कई लड़कियों से मारपीट और बलात्कार के आरोपों को लेकर चर्चा के केंद्र में है. 5 अगस्त को, कई विपक्षी दल इस अपराध की निंदा करने और शीघ्र जांच कर मुकदमा चलाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक साथ आए .

शेल्टर होम में रहने वालों के शोषण का यह मामला पहली बार टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई (टीआईएसएस, मुंबई) की एक टीम बिहार सरकार के संज्ञान में लाई थी. टीम के सदस्य संस्थान के फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट ‘कोशिश’ से थे, जो बेघर और बेसहारा लोगों के लिए काम करता है.


फ़र्स्टपोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में, सहायक प्रोफेसर मोहम्मद तारिक ने, जिन्होंने ऑडिट करने वाली 7 सदस्यीय टीम का नेतृत्व किया था, इस रिपोर्ट पर राज्य सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर बात की. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान का भी जिक्र किया कि ऐसे केंद्रों का गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चलाया जाना 'सिस्टम की खामी' है, और सरकार समय के साथ सभी शेल्टर होम का प्रशासन अपने हाथ में ले लेगी.

फ़र्स्टपोस्ट: टीआईएसएस टीम के निष्कर्षों और सिफारिशों के लिए बिहार सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही है?

मो.तारिक: संस्थानों की विभिन्न श्रेणियों (इनमें से कुल 110 की जांच की गई थी) के लिए कई तरह की सिफारिशें की गई थीं. कुछ मामलों में, बड़े पैमाने पर दखल देने जरूरत थी. राज्य सरकार ने सामाजिक कल्याण विभाग के सभी जिला स्तर के अधिकारियों को एक बैठक के लिए पटना बुलाया, और उनके साथ रिपोर्ट के निष्कर्ष साझा किए.

मुख्य सचिव ने भरोसा दिया कि सरकार रिपोर्ट को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, और इसकी सिफारिशों पर कार्रवाई होगी. सरकार ने इस मुद्दे पर राज्य के सभी जिलों की चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी के अध्यक्षों से भी चर्चा की.

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप कांड का मामला दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन जांचे गए सभी शेल्टर होम में इस तरह के कानूनी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं थी.

नीतीश कुमार

फ़र्स्टपोस्ट: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चिल्ड्रेंस होम को चलाने की परंपरा खत्म करने के सरकार के इरादे की घोषणा की. क्या आप इस प्रस्ताव से सहमत हैं?

मो.तारिक: निजी तौर पर, मुझे नहीं लगता कि इससे ज्यादा मदद मिलेगी. सरकार के इस तरह के कदम के पीछे यह सोच लगती है कि अगर एक तरीका काम नहीं करता है, तो एक दूसरा तरीका आजमा लिया जाए. मेरा मानना है कि मुद्दा यह नहीं है कि संस्थाएं कौन चला रहा है. ऐसा नहीं है कि एनजीओ द्वारा संचालित सभी शेल्टर होम में दुर्व्यवहार के ऐसे मामले होते हैं, जबकि दूसरी ओर, यह भी संभव है कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे होम में भी ऐसा दुर्व्यवहार हो.

दीर्घकालिक जरूरत यह है कि देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों के लिए संस्थानों की निगरानी की एक बेहतर प्रणाली हो- चाहे वो सरकार द्वारा या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा संचालित हो.

सवाल यह है कि क्या सरकार के पास इतने सारे होम्स चलाने की क्षमता है? वर्षों से, स्वीकार्य तर्क यह है कि सरकार सिस्टम बना सकती है, जबकि सिविल सोसाइटी संगठन उस सिस्टम को चलाने में मदद कर सकते हैं, और इस तरह के काम में सहानुभूति भरा नजरिया अपनाने की जरूरत है. ऐसे कई कार्यक्रम हैं जिनमें एनजीओ अच्छा काम कर रहे हैं और सरकार की सहायता कर रहे हैं.

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के मामले में हुआ यह कि यहां रहने वालों की सुरक्षा के लिए किए गए कई उपाय फेल हो गए थे. यह एक बड़ा ही दुर्लभ मामला था, जिसमें बाल संरक्षण के लिए जिम्मेदार कई लोग अपराध में हिस्सेदार बन जाते हैं. अकेले इस मामले के आधार पर कोई संरचनात्मक बदलाव करना सही नहीं होगा.

फ़र्स्टपोस्ट: चिल्ड्रेंस होम में शोषण रोकने के लिए, और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) के तहत अधिकारी क्या कदम उठा सकते हैं?

मो.तारिक: अक्सर, कानून में बाल संरक्षण के उपायों को उस तरह लागू नहीं किया जाता है, जिस तरह होना चाहिए. मुजफ्फरपुर मामले में, ऐसा नहीं है कि विभिन्न अधिकारी वहां की स्थिति को जांचने के लिए संस्थान नहीं गए थे. हालांकि, ऐसे अधिकारियों को संस्थान के लाभार्थियों से बात करने की आवश्यकता है- चाहे वो बच्चे हों, वरिष्ठ नागरिक या विकलांग व्यक्ति आदि. सेवा के लाभार्थियों को मूल्यांकन प्रक्रिया का हिस्सा बनाना बहुत जरूरी है.

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फ़र्स्टपोस्ट: अब बिहार में चिल्ड्रेन होम के कल्याण को सुनिश्चित करने में ‘कोशिश’ क्या भूमिका निभाएगा?

मो.तारिक: हमने जो सिफारिशें की थीं उनमें से एक यह था कि सिद्धांत और नीतियां तय की जानी चाहिए जिनके आधार पर ऐसे संस्थानों को चलाना चाहिए. विचार यह है कि जिन संगठनों को देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों, या अन्य कमजोर समूहों के लिए होम चलाने को आमंत्रित किया जाता है, उनका इन सिद्धांतों से सहमत होना जरूरी हो.

यही वो चीज है जिसे हम अभी विकसित करने की प्रक्रिया में हैं. यह निर्देश का हिस्सा था जो हमें राज्य सरकार द्वारा शुरुआत में ही दिया गया था. लेकिन अब जबकि सरकार ऐसे संस्थानों को गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चलाने की अनुमति देने के बजाय खुद चलाने के बारे में सोच रही है, मुझे नहीं पता कि इस पहलू पर क्या किया जाएगा.