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टॉपर घोटाले से बदनाम बिहार का नाम रोशन करता 97 साल का छात्र राजकुमार

बिहार की राजधानी पटना में रहने वाले राजकुमार वैश्य उम्र को चुनौती देते हुए परीक्षा दे रहे हैं

Manish Shandilya

एक तरफ बिहार के इंटर आर्ट्स टॉपर उम्र छिपाने के आरोप में जेल में हैं तो दूसरी ओर बिहार की राजधानी पटना में रहने वाले राजकुमार वैश्य उम्र को चुनौती देते हुए परीक्षा दे रहे हैं. 97 साल की उम्र में वे नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में एमए कर रहे हैं.

रिटायरमेंट के 35 साल बाद शुरू की डिग्री वाली पढ़ाई


अप्रैल 1920 में उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे राजकुमार वैश्य ने अंग्रेजों के जमाने में बरेली काॅलेज से 1938 में बीए किया और इसके बाद 1940 में लाॅ ग्रेजुएट भी बने. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत सहित कुछ दूसरे काम भी किए. इसके बाद कोडरमा (अब झारखंड) में क्रिश्चन माइका इंडस्ट्रीज में बतौर लॉ ऑफिसर नौकरी की और वहीं से जनरल मैनेजर के पद से 1980 में रिटायर हुए और फिर रिटायरमेंट के 35 साल बाद डिग्री वाली पढ़ाई शुरु की.

राजकुमार अभी अपने बेटे संतोष कुमार और बहू भारती एस कुमार के साथ पटना के राजेंद्र नगर इलाके में रहते हैं. संतोष और भारती दोनों रिटायर्ड प्रोफेसर हैं.

कहां से हुई शुरूआत

संतोष राजकुमार एमए की पढ़ाई की शुरूआत का किस्सा कुछ यूं बताते हैं, '2015 अगस्त में वित्त मंत्री अरुण जेटली सीनियर सिटीजन संबंधी नीतियों के बारे में एक न्यूज चैनल पर कुछ बोल रहे थे, जिससे पिताजी को नाइत्तेफाकी थी. वित्त मंत्री की बातों के बहाने हम दोनों ने भी सीनियर सिटीजन से जुड़े आर्थिक मसलों और इकोनाॅमिक्स पर थोड़ी बात की.'

संतोष कहते हैं, 'बातचीत मेरे इस प्रस्ताव पर खत्म हुई कि पिताजी गहराई से इकोनाॅमिक्स पढ़ें. इस पर पिताजी ने हामी तो भरी लेकिन साथ ये भी जोड़ दिया कि वे व्यवस्थित ढंग से पढ़ना पसंद करेंगे.'

इसके बाद जब उनके दाखिले का प्रस्ताव नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के पास पहुंचा तो यूनिवर्सिटी इसे अपने लिए सम्मान की बात बताते हुए तुरंत तैयार हो गई. राजकुमार की उम्र को देखते हुए नालंदा यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एसपी सिन्हा ने खुद उनके घर आकर दाखिले की प्रक्रिया पूरी की थी.

क्या रहा सबसे ज्यादा चुनातीपूर्ण

राजकुमार ने अंग्रेजों के जमाने में इंग्लिश मीडियम से ही काॅलेज के एग्जाम पास किए थे. उनकी अंग्रेजी भी उतनी ही अच्छी है. लेकिन यूनिवर्सिटी से कोर्स की जो किताबें उन्हें मिली वो सारी हिंदी में थे.

राजकुमार के मुताबिक, पढ़ाई के दौरान सबसे ज्यादा चुनातीपूर्ण उनके लिए हिंदी में कोर्स की किताबों को पढ़ना रहा. ऐसे में उन्होंने एक काम ये किया कि मदद लेकर कठिन हिंदी शब्दों की सूची तैयार की और फिर उसका अंग्रेजी तर्जुमा भी उसके सामने लिखा.

एडमिशन के बाद बीते दो सालों से राजकुमार सुबह-शाम दो घंटे पढ़ाई करते हैं. उनके इम्तिहान 17 जून को खत्म हो जाएंगे. इसके बाद उनकी योजना अर्थशास्त्र के ही विषयों पर एक किताब लिखने और रामेश्वरम की तीर्थ यात्रा करने की है.

कुछ ऐसा रहता है एग्जाम हॉल का माहौल

परीक्षा हाॅल के अपने अनुभवों के बारे में वे कहते हैं, 'मैं परीक्षा शुरु होने के पंद्रह मिनट पहले अपनी सीट पर पहुंच जाता हूं. प्रश्न पत्र मिलने के बाद सबसे पहले ये तय करता हूं कि मुझे किन सवालों के जवाब पहले लिखने हैं और किनके बाद में. घड़ी पर नजर बनाए रखते हुए जवाब लिखता जाता हूं.'

राजकुमार बताते हैं कि उम्र को देखते हुए परीक्षक उन्हें थोड़ा अतिरिक्त समय देने को तैयार रहते हैं. लेकिन मैं इससे विनम्रता से इंकार कर देता हूं. राजकुमार को प्रथम वर्ष में करीब 50 प्रतिशत अंक मिले. उनके बेटे संतोष के मुताबिक ऐसा इस कारण हुआ क्यूंकि इस उम्र में उनके हाथों में अब वो तेजी नहीं जितना एक सामान्य छात्र के हाथों में होता है.

वहीं उनकी बहू भारती के मुताबिक इस पढ़ाई के बहाने उनकी जो लगन और मेहनत सामने आई है वह सीखने की चीज हैं. वो कहती हैं, 'उन्होंने काफी व्यवस्थित ढंग से पढ़ाई की. खुद से नोट्स तैयार किए. इसके लिए रंग-बिरंगे कलम और कागज का इस्तेमाल किया. उन्हें सीरियल देखना बहुत पसंद है. खासकर ऐतिहासिक सीरियल. लेकिन उन्होंने पढ़ाई के लिए टीवी प्रोग्राम देखना लगभग छोड़ दिया.'

उम्र के जिहाज से राजकुमार अब भी बहुत फिट हैं. आंखों की रोशनी अच्छी है. बस उन्हें चलने के लिए वाॅकर का सहारा लेना पड़ता है.