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बीएचयू विवाद: लाठीचार्ज पर सियासी घमासान, सुरक्षा का मुद्दा लहूलुहान

बीएचयू में छात्राओं पर लाठी चार्ज की चर्चा है लेकिन उनकी सुरक्षा की बात कोई नहीं कर रहा है

FP Staff

नवरात्रि पर जहां सारा शहर नारी शक्ति दुर्गा की पूजा कर रहा था, वहीं बीएचयू कैंपस में बेटियों पर लाठियां बरसाई जा रही थीं. रविवार को पूरी दुनिया 'वर्ल्ड डॉटर्स डे' मनाती है. 'वर्ल्ड डॉटर्स डे' से ठीक एक दिन पहले तकरीबन आधी रात को धरने पर बैठी बेटियों को लाठियां मारकर खदेड़ा जा रहा था.

उनका कसूर बस इतना था कि वे छेड़खानी सहने को तैयार नहीं थीं. वे सुरक्षा की मांग कर बैठी थीं. लेकिन अब इससे भी अधिक दुखद पहलू यह है कि बीएचयू कैंपस में सुरक्षा के लिए शुरू हुआ छात्राओं का आंदोलन अब लाठीचार्ज पर सियासी घमासान में तब्दील हो गया है.


दब गया छात्राओं का मुद्दा

सुरक्षा की खातिर 3 दिन से प्रदर्शन कर रही छात्राओं पर खाकी का बर्बर लाठीचार्ज सही है या गलत, इस पर खूब चर्चा हो रही है. लंका से लखनऊ पहुंचे इस प्रकरण पर जहां सरकार बैकफुट पर आ गई है वहीं विपक्षी दलों के नेताओं का बीएचयू परिसर में जमावड़ा शुरू हो गया है.

अब सारी चर्चा लाठीचार्ज और आरोप-प्रत्यारोप तक सिमट गई है. और इन सबके बीच छात्राओं की सुरक्षा की मुद्दा ही बिसरा दिया गया है. सवाल जस का तस है, जहां का तहां खड़ा है. आखिर महामना के इस मंदिर में ऐसा क्या हुआ जिसने छात्राओं को इस कदर उद्वेलित कर दिया, इतना गुस्सा उनमें क्यों है.

छात्राओं को क्यों आया गुस्सा?

यह एक छात्रा से छेड़खानी का नितांत व्यक्तिगत मामला था जिसे बीएचयू की छात्राओं ने भविष्य की सुरक्षा के लिए उठाया. पहले भी बीएचयू कैंपस में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं और छात्राओं का अपनी सुरक्षा की मांग करना कतई गलत नहीं कहा जा सकता. हां, उनके आंदोलन करने के तरीके पर भले ही कुछ लोग विरोध में खड़े हों पर उनके डर को किसी भी सूरत में गलत नहीं ठहराया जा सकता.

दरअसल इस बार बीएचयू प्रशासन छात्राओं के गुस्से को भांपने में नाकाम रहा. जब छात्राओं ने धरना प्रदर्शन शुरू किया तो पहले इसे गंभीरता से लिया ही नहीं गया. बीएचयू प्रशासन की इस नाकामी की वजह से छात्राओं का आक्रोश बढ़ गया और सुरक्षा के मुद्दे पर पूरा बीएचयू एकजुट हो गया. उसके बाद जो आगजनी, बवाल और लाठीचार्ज हुआ, वह इस विश्वविद्यालय के लिए एक काला अध्याय बन गया है.

विपक्ष को मिला बड़ा मुद्दा 

शुरू में तो सुरक्षा की मांग कर रही छात्राओं के आंदोलन पर ही चर्चा हो रही थी लेकिन लाठीचार्ज ने पूरे मामले को दूसरी तरफ मोड़ दिया है. लाठीचार्ज के बाद विपक्ष को जहां एक बड़ा मुद्दा मिल गया है वहीं सरकार इससे किसी तरह निपटने को छटपटा रही है. फौरी तौर पर हॉस्टल खाली कराया जा रहा है और पूरा कैंपस छावनी में तब्दील कर दिया गया है. चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया है. अभिभावक छात्राओं को अपने साथ लेकर घर जा रहे हैं.

वहीं दूसरी तरफ, राजनीतिक दलों को प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में हुई घटना ने एक प्लेटफॉर्म दे दिया है. कांग्रेस और एसपी के नेता यहां आ रहे हैं और लाठीचार्ज के मुद्दे पर पुलिस-प्रशासन समेत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. सभी एक स्वर में कह रहे, लाठीचार्ज गलत हुआ. मुख्यमंत्री ने भी कमिश्नर से लाठीचार्ज की पूरी रिपोर्ट तलब की है. साथ ही पूरे मामले की जांच कराकर कार्रवाई का आश्वासन भी दिया है.

क्या है छात्राओं की गलती?

इस सियासत के बीच छात्राओं की सुरक्षा का मुद्दा अब किसी को याद नहीं. जिसके लिए बीएचयू कैंपस में तीन दिन से छात्राएं आवाज उठा रही थीं, प्रदर्शन कर रही थीं, अपने लिए सुरक्षा मांग रही थीं. अब इस पर किसी का ध्यान तक नहीं. लाठीचार्ज क्यों हुआ, यह जांच का विषय है.

लेकिन ऐसे क्या हालात बने की छात्राओं को विरोध प्रदर्शन करने पर उतरना पड़ा, यह सोचने का विषय है. जब तक मूल मुद्दा नहीं सुलझता, किसी और विषय पर जांच और आरोप-प्रत्यारोप बेमानी है.