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बीएचयू घोटाला (पार्ट-2): नियुक्तियों में ठाकुरों-ब्राह्मणों के पीछे बर्बाद यूनिवर्सिटी

आंकड़े गवाही देते हैं कि बीएचयू की ज्यादातर नियुक्तियां राजनीति से प्रेरित हैं और ये लिस्ट जातिवाद की गंध से बजबजाती नियुक्तियों की सूचना देती है.

Avinash Dwivedi

(इस लेख के पहले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह बीएचयू की नौकरियों में परिवारवाद है. इस रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा यहां पढ़ें. पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

आखिर नियुक्तियों में घोटाला संभव कैसे हो पाता है?


ये संभव हो पाया है वक्त-वक्त पर कुलपतियों की कृपा से. मसलन लालजी सिंह ने, जो जीसी त्रिपाठी से पहले वीसी हुआ करते थे, बीएचयू को एक संस्था मानकर नियुक्तियां की थीं और इसमें तमाम धोखाधड़ी कर सामान्य जाति के लोगों के जरिए अधिकतर पद भर दिए गए थे. पर कुछ ही महीने पहले आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक निर्णय में हाईकोर्ट ने पूरे बीएचयू को एक संस्था मानने से इंकार कर दिया.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये नियुक्तियां वापस होंगी? छात्रों को डर है कि कम से कम ठाकुर-ब्राह्मण की जातिवादी राजनीति करने वाले लोगों के रहते तो कभी नहीं. साथ ही ये आदेश आते ही वर्तमान वीसी, जीसी त्रिपाठी, युद्धस्तर पर नई भर्तियों में जुट गए ताकि अपने लोगों को सिस्टम में भर सकें.

बीएचयू में प्रोफेसर के पदों की संख्या 

आनन-फानन में कुछ नियुक्तियों के लिए यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर पद निकाले गए. जिनमें से जनरल पद भर लिए गए और बाकी छोड़ दिए गए. ऐसे में जब दुबारा नियुक्तियां आईं तो वही पद जो कैटेगरी के हैं दुबारा की नियुक्तियों में भी दिखा दिए गए. ऐसे में विश्वविद्यालय में कैटेगरी के बहुत से पद खाली पड़े हैं और बहुत से जनरल कैंडिडेट्स के जरिए भर दिए गए हैं.

प्रो. एम.पी. अहिरवार ने समय-समय पर इस गड़बड़ी को लेकर बीएचयू प्रशासन से आरटीआई के जरिए जवाब मांगे हैं. हाल ही में बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर ग्रुप ने एक नई लिस्ट जारी की थी, जिसके हिसाब से बीएचयू में खाली पड़े हुए पदों के आंकड़े इस प्रकार हैं-

कई रिसर्च स्कॉलर और पूर्व छात्रों से बातचीत के दौरान पता चला कि बीएचयू के कुलपति की नियुक्ति भी इस घटियापने से बाहर नहीं है. कुलपति ही नहीं सारे उच्चपद बीएचयू में ब्राम्हण-ठाकुर लॉबी के हाथ में होते हैं. 'जिसने जोर लगाया, बाजी उसकी' जैसी व्यवस्था होती है.

जरा एक नजर बीएचयू के पिछले दस कुलपतियों पर डालें- 

गिरीश चंद्र त्रिपाठी

लालजी सिंह

डी.पी. सिंह

पंजाब सिंह

रामचंद्र राव

वाई. सी. सिम्हाद्री

हरी गौतम

डी. एन. मिश्रा

सी. एस. झा

आर. पी. रस्तोगी

ऐसे में जातिगत आधार पर देखें तो बीएचयू के पिछले दस वीसी में से 8 सवर्ण हैं. जिनमें से 5 ब्राह्मण हैं और 3 क्षत्रिय हैं. और पिछले 5 वीसी में से 3 क्षत्रिय रहे हैं, जो दिखाता है कि हाल-फिलहाल बीएचयू में क्षत्रिय लॉबी का दबदबा है. हालांकि एक रिसर्च स्कॉलर इसे खारिज करते हुए कहते हैं कि बीएचयू के कर्मचारियों में अभी भी ब्राह्मणों का वर्चस्व है.

पर यह पूछने पर कि क्या ये जातिगत वर्चस्व की लड़ाई उच्च शिक्षण संस्थान में शोभा देती है और क्या इनके ऊपर नकेल कसने वाला कोई नहीं है, वो अनमने हो जाते हैं और कहते हैं यही तो है यहां का सामंतवादी चरित्र. ऐसे ही थोड़े पढ़ाई चौपट हुई पड़ी है विश्वविद्यालय में.

यहां फिर प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र का जिक्र उचित जान पड़ता है, जिनके ऊपर छात्र आरोप लगाते हैं कि अधिकतर वक्त भांग के नशे में रहने वाले कौशल किशोर मिश्र ने पिछले वर्ष पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में हेड रहते हुए धड़ल्ले से पीएचडी में सीटों से ज्यादा और पीएचडी करने की अहर्ता भी न पूरी कर पाने वाले लोगों की नियुक्तियां की हैं.

इस बीच ये महत्वपूर्ण पद छूट न जाएं. पिछले कुछ पद पर रहने वालों पर एक नजर डालिए-

ये आंकड़े गवाही देते हैं कि बीएचयू की ज्यादातर नियुक्तियां राजनीति से प्रेरित हैं और ये लिस्ट जातिवाद की गंध से बजबजाती नियुक्तियों की सूचना देती है. और महामना के मानसपुत्र बनकर संस्थान की सेवा करने वाले लोग विश्वविद्यालय का खून चूसने में लगे हैं.

हिंदी के एक शोध छात्र कहते हैं कि चीफ प्रॉक्टर के पद पर पिछली 7 में से पांच बार किसी क्षत्रिय को नियुक्त किया गया है. हिंदू मान्यताओं में क्षत्रियों को स्वाभाविक योद्धा मानने का चलन है. और शायद प्रशासन मानता है कि ये 'योद्धा' आसानी से छात्रों पर नियंत्रण कर पाएंगे. इस हद तक जातिवादी आग्रह से बीएचयू में नियुक्तियां होती रही हैं.

हर फैकल्टी, हर डिपार्टमेंट में चालू है ये गड़बड़ घोटाला

प्रो. एमपी अहिरवार आरोप लगाते हैं कि कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में 3 नियुक्तियां होनी थीं. जिसमें से 2 एसोसिएट प्रोफेसर और 1 असिस्टेंट प्रोफेसर की थी. नियुक्तियां पूरी हुईं तो तीनों पदों को असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर भर लिया गया. वो भी दो भर्तियां टेक्नीकली फर्जी हैं. कहते हैं ऐसे डिप्लोमा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हुई है, जिसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता ही नहीं प्राप्त है.

इसी तरह से पिछले कुछ वक्त में लाइब्रेरी में हुई नियुक्तियों पर भी वो फर्जी होने के सवाल खड़े करते हैं. प्रो. एमपी अहिरवार कहते हैं कि अभी तक की सारी प्रक्रिया ऐसे तत्वों को बढ़ावा देने वाली है. प्रॉपर समय पर एक भी कार्रवाई होती तो बात बनती, नहीं तो घटनाओं की ऐसे ही पुनरावृत्ति होती रहेगी.

'गाइड' लड़कियों के मोबाइल और कपड़े तक चेक करती है

ऐसे में कैसे प्रोफेसर्स से बीएचयू जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को भरा जा रहा है, इसका अंदाजा एक रिसर्च स्कॉलर की बताई इस घटना से लगाया जा सकता है, जिसमें रिसर्च स्कॉलर लड़की ने अपनी गाइड पर तमाम आरोप लगाते हुए सेल में शिकायत की थी.

लड़की का कहना था कि गाइड उसका मोबाइल और कपड़े रेगुलर चेक करती है. उसका मोबाइल लेकर वो देखती हैं कि लड़की किससे-किससे बातें करती है और सलीके के कपड़े पहनकर आती है या नहीं. टाइट कपड़े पहनने पर उसे फटकार भी लगाई जाती है.

इस लेख के अगले हिस्से 'बीएचयू अराजक तत्वों का गढ़ कैसे बना और क्या इसमें सुधार की गुंजाइश है?' में आपको उन कोर्सेस के बारे में बताया जाएगा, जिसमें आसानी से अराजक तत्व एडमिशन पा जाते हैं. साथ ही सुरक्षा और संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड की व्यवस्था में क्या सुधार किए जा सकते हैं? और बीएचयू के जातिवादी, सामंतवादी और पितृसत्तात्मक चरित्र को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

(इस लेख से जुड़े तमाम कागजातों और आरटीआई के जवाबों तक पहुंचने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- https://bhufiles.blogspot.in/)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)