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बीएचयू घोटाला (पार्ट-1): पीढ़ियों से चल रहा है नियुक्तियों में हेरफेर

बीएचयू में अक्सर प्रोफेसर का बेटा प्रोफेसर ही होता है, नहीं होता तो बना दिया जाता है.

Avinash Dwivedi

एक जानी-मानी न्यूज एंकर, जो 90 के दशक में बीएचयू की छात्रा भी थीं, बीएचयू पर हो रही एक चर्चा में एक घटना के अनुभव याद करते हुए निराशा से भर जाती हैं. उस वक्त बीएचयू के बाहर लंका मार्केट पर उनकी एक दोस्त के साथ जींस पहनने पर छेड़खानी हुई थी और तमाम प्रयासों के बावजूद भी बीएचयू प्रशासन ने न कोई कार्रवाई की थी, न किसी को पकड़ा था.

ऐसे में आज उन्हें लड़कियों के छेड़छाड़ के खिलाफ इस स्वत: स्फूर्त विरोध में आशा की किरण नजर आती है. खुद मैं बीएचयू का छात्र रहने के नाते इस व्यापक विरोध को देख आश्चर्यचकित था क्योंकि जिसने भी बीएचयू का माहौल देखा है, वो जानता है कि बीएचयू की अधिकांश छात्राएं हमेशा मुंह झुकाकर चलने वाली, फब्तियों को इग्नोर कर आगे बढ़ जाने वाली रही हैं. आखिर इनमें इतना दमखम आया कैसे?


इस सवाल को लेकर कई स्तर पर स्नातक, परास्नातक और शोध छात्रों से बात करने पर जो पता चला वो वाकई विद्यार्थियों के लिए ही इस निराशाजनक माहौल में आशा की किरण है.

को-एड पढ़ाई शुरू करने से छात्रों के बीच यौन कुंठा में कमी आई है

चाहे वो बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर्स हों या अंडरग्रेजुएट कोर्सेस के छात्र, सभी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि इस बार कैंपस की दो महत्वपूर्ण फैकल्टी आर्ट्स और सोशल साइंसेज की अंडरग्रेजुएट क्लासेस में को-एड पढ़ाई शुरू करने से लड़के और लड़कियों के बीच यौन कुंठा में कमी आई है. जिसके बाद से न सिर्फ दोनों जेंडर में एक-दूसरे के प्रति रूढ़िवादी सोच खत्म हुई है बल्कि सहयोग भी बढ़ा है.

लड़कियों के धरना-प्रदर्शन को लड़कों का नैतिक सहयोग इसका प्रमाण है. और यही सहयोग था जिसने उन्हें इतने लंबे वक्त तक प्रशासन से मोर्चा लेते रहने का बल दिया.

पर इस धरने-प्रदर्शन का जो निराशाजनक अंत हुआ, हम सभी उससे वाकिफ हैं. ये अंत निंदनीय है पर जिसने बीएचयू के सामंतवादी और पितृसत्तात्मक माहौल को देखा है, उनके लिए ये बात ज्यादा चौंकाने वाली नहीं कि प्रशासन ने निहत्थी लड़कियों पर लाठीचार्ज किया. बीएचयू प्रशासन की सोच ही ऐसी बनी है.

इस लेख में हम यही पड़ताल करने का प्रयास कर रहे हैं कि बीएचयू के इस सामतंवादी, पितृसत्तात्मक चरित्र के पीछे क्या वजह है?

बीएचयू में लड़कियों के विरोध प्रदर्शन पर लाठीचार्ज के विरोध में मार्च

गहरी है परिवारवाद की जड़ें 

पॉलिटिकल साइंस के एक रिसर्च स्कॉलर से बीएचयू प्रशासन के ऐसे चरित्र के पीछे की वजह पूछी तो उनका जवाब था, 'बीएचयू एक बड़ा ब्लैक होल है, जो हर तरह की धोखाधड़ी और गड़बड़ी से भरा हुआ है. ऐसे में बीएचयू में जो लड़कियों के साथ हुआ वो इसी तरह दशकों से लगातार की जा रही गलतियों का परिणाम था. या यूं कहें कि बहुत सारे गलत में थोड़ा सा गलत दुनिया के सामने उभर कर आ जाना था.'

बीएचयू के बारे में लगभग सारे ही रिसर्च स्कॉलर ये बात स्वीकारते हैं कि बीएचयू जातिवाद और सामंतवादी व्यवस्था की सड़ांध से बजबजा रहा है. इसके पीछे उनका आरोप है कि यहां चाहे प्रोफेसर्स की नियुक्तियां हों या अन्य बॉडीज या सेल में की जाने वाली नियुक्तियां, कभी भी पारदर्शी और ईमानदार नहीं होतीं. ऐसे में अक्सर बीएचयू में प्रोफेसर का बेटा प्रोफेसर ही होता है, नहीं होता तो बना दिया जाता है!

'महामना की सेवा' के जुमले के पीछे काट रहे हैं मलाई 

कई रिसर्च स्कॉलर ये आरोप लगाते हैं कि यही वजह है कि कई प्रोफेसरों का पूरे का पूरा परिवार 'महामना की सेवा' के जुमले के पीछे मजे में कई पीढ़ियों से बीएचयू को अपने लोगों से भरता जा रहा है. जैसी परिवारवाद की बेल यहां लहलहा रही है, वैसी तो राजनीति में भी नहीं होती.

मसलन, यहां पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट में पढ़ाने वाले कौशल किशोर मिश्र, वीरभद्र मिश्र के भांजे हैं जो बीएचयू आईटी में प्रोफेसर रह चुके हैं. कौशल किशोर मिश्र के ही तीन ममेरे भाई बीएचयू और उससे जुड़ी संस्थाओं में कार्यरत हैं. ये हैं न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के बीएन मिश्र, आईआईटी में विजयनाथ मिश्र और बीएचयू से संबद्ध संस्था में पढ़ाने वाले अनूप मिश्र.

परिवारवाद देखना है तो देश की राजनीति छोड़िए बीएचयू को देखिए

ऐसे ही अभी तक प्रॉक्टर रहे ओएन सिंह के बेटे- विश्वंभर सिंह. मेडिकल विभाग में ENT के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उनकी बड़ी बहू सर सुंदर लाल अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर का पद संभालती हैं तो छोटी बहू मैनेजमेंट में किसी पद पर हैं. वीपी निर्मल लॉ फैकल्टी में प्रोफेसर रहे हैं उनकी बेटी आरती निर्मल, इंग्लिश डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हो चुकी हैं.

आद्याप्रसाद पांडेय के बेटे बीएचयू के बरकच्छा कैंपस में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. ज्यॉग्रफी के प्रोफेसर रहे एसबी सिंह की बेटी सुमन सिंह ज्यॉग्रफी की प्रोफेसर हैं. मारुती नंदन तिवारी, प्रियंकर उपाध्याय का परिवार भी ऐसे ही महामना की सेवा कर रहा है. प्रो. चंद्रकला पाडिया भी इसमें शामिल हैं. उनके बेटे अभी तक मेडिकल विभाग में थे जिन्होंने हाल ही में इस्तीफा दिया है. वहीं बहू प्रो. विनीता चंद्रा, सोशल एक्सक्लूजन सेंटर में कार्यरत हैं.

अरविंद जोशी जो सोशल साइंस फैकल्टी में सोशियोलॉजी के प्रोफेसर हैं, स्वयं एक पूर्व रजिस्ट्रार के पुत्र हैं. अरविंद जोशी की पत्नी, वसंता कॉलेज में पढ़ाती हैं. रजिस्ट्रार नीरज त्रिपाठी की पत्नी ऊषा त्रिपाठी मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में कार्यरत हैं. छात्रों का आरोप है कि उनसे संबद्ध कई लोग विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं.

ऐसे ही ज्यॉग्रफी डिपार्टमेंट के हेड रहे राना पी.बी. सिंह के बेटे प्रवीण कुमार राना और उनकी बहू ज्योति रोहिल्ला भी डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट एंड टूरिज्म मैनेजमेंट डिपार्टमेंट में पढ़ा रहे हैं.

मेडिकल विभाग में प्रो. प्रदीप जैन (गेस्ट्रो) और उनकी पत्नी प्रो. मधु जैन (प्रसूति) के साथ बेटी डॉ सी.वी. जैन (रेडियोलॉजी) और दामाद डॉ वैभव जैन (प्लास्टिक सर्जरी) कार्यरत हैं. ऐसे ही प्रो लखोटिया (जन्तु विज्ञान), उनका बेटा सिद्धार्थ लखोटिया (कार्डियो) और बहु अंजलि रानी लखोटिया (स्त्री एवं प्रसूति) भी एक साथ कार्यरत हैं.

एक और परिवार प्रो. अजय खन्ना का है. जिनका लड़का अनुराधा खन्ना और बहू सौम्या खन्ना कार्यरत हैं. प्रो. ओ.पी. मिश्रा के बेटे को भी हाल में ही असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया गया है.

ऐसे में बीएचयू में मेडिकल विभाग की गड़बड़ियों के पीछे एक बहुत बड़ा कारण परिवारवाद है. करीब एक साल हुआ जब बीएचयू के सर सुंदरलाल हॉस्पिटल में गलत इलाज के चलते कई मरीजों ने आंखों की रौशनी चली गई थी.

इसे परिवारवाद वाले में जोड़ दें. या अगर पहले से मेडिकल विभाग से कुछ नाम हों तो वो नाम इसमें जोड़कर मेडिकल विभाग में घोटाला नाम की अलग हैडिंग भी दे सकते हैं.

बड़े पदों पर सुशोभित लोगों का घोटाला बहुचर्चित है 

केपी उपाध्याय जो कि पहले कई बड़े पदों पर विश्वविद्यालय में नियुक्त किए जा चुके हैं. छात्रनेता विकास सिंह ने बताया, रिटायर होने के बाद उन्हें तनख्वाह देते रहने के लिए एक OSD नाम का विशेष पद गढ़ा गया है, जिसपर उन्हें नियुक्त कर लाखों की सैलरी दी जा रही है. केपी उपाध्याय पर और भी कई तरह से शैक्षणिक संस्था में धोखाधड़ी का आरोप लगता रहा है, जो छात्र ही नहीं, अध्यापक भी लगाते हैं.

फर्जी प्रमाणपत्र वालों को नियुक्त कर दिया जाता है प्रोफेसर एमेरिट्स

इसी तरह पिछले साल इतिहास विभाग में प्रो. अरुणा सिन्हा को एमेरिटस प्रोफेसर बना दिया गया था. जबकि उनके बायोडाटा में लिखी उनकी प्रकाशित पुस्तकें फर्जी थीं. साथ ही जिन कोर्स में उन्होंने पढ़ाने का दावा किया था वो कभी बीएचयू में पढ़ाए ही नहीं जाते थे. यहां तक कि खुद उनके इतिहास विभाग की समिति ने उनके आवेदन को मापदंड पर खरा नहीं पाया था. फिर भी कुलपति ने अपने पद का दुरुपयोग कर उन्हें एमेरिटस प्रोफेसर बनाया. इसके बाद इतिहास विभाग की एक प्रोफेसर बिंदा परांजपे ने इस बात से झुब्ध होकर इस्तीफा तक दे दिया था. ये सारे नाम बीएचयू की नियुक्तियों में घोटाले की बानगी भर हैं.

प्रोफेसर साहब ने चुटकियों में बना दिया पत्नी को रिसर्चर

सोचकर देखें, जब ये हाल प्रोफेसर्स की भर्ती का है तो ऐसे में किसी को धोखाधड़ी कर छात्र के रूप में भर्ती कराना कितना आसान है! रिसर्च स्कॉलर आरोप लगाते हैं, बीएचयू के परीक्षा नियंत्रक के पद पर बैठे एमपी पांडेय ने अपनी पत्नी का ए़डमिशन फिजिक्स डिपार्टमेंट में रिसर्च स्कॉलर के तौर पर करवा दिया है. इस एडमिशन के लिए उनकी पत्नी का रेट या गेट नाम की परीक्षा में पास होना जरूरी था पर सारे नियमों को धता बताकर बिना ऐसी किसी डिग्री के उनका एडमिशन हुआ है. ऐसे रिसर्च स्कॉलर के तौर पर किसी साइंटिफ लैब में काम करने वाले का भी एडमिशन हो सकता है, जबकि उनकी पत्नी पहले डीपीएस स्कूल में मात्र शिक्षिका हुआ करती थीं.

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(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)