मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र 60 से 62 साल किए जाने के बाद फैसले का विरोध शुरू हो गया. सवाल उठ रहे हैं कि इस फैसले के पीछे सरकार की क्या मजबूरी है, क्योंकि सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और चुनावी साल में करीब 18 हजार कर्मचारी रिटायर होने वाले हैं.
दरअसल, नियमों के मुताबिक रिटायरमेंट के बाद एक कर्मचारी औसतन पच्चीस लाख रुपए निकाले जाने की पात्रता रखता है. ऐसे में सरकार पर करोड़ों रुपए का भार आ सकता है. साथ ही सरकार की कोशिश है कि चुनावी साल में इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों के रिटायरमेंट होने और प्रमोशन में आरक्षण के पेंच अड़े होने के कारण बड़ी संख्या में पद खाली हो जाएंगे. इसी संकट से उबरने के लिए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.
वहीं कांग्रेस ने शिवराज सरकार के फैसले को चुनावी साल में अपनी साख बचाने की कोशिश बताया है. कांग्रेस ने सरकार के फैसले को चुनावी साल में 17 हजार करोड़ रुपए के भार से बचने के लिए उठाया गया कदम बताया है.
एमपी में सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों का लेखा-जोखा
-प्रदेश में कुल कर्मचारियों की संख्या 6 लाख 50 हजार से ज्यादा है.
-इनमें से शिक्षा और डॉक्टरी के पेशे से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र पहले से 62 से 65 साल है.
-सरकार के फैसले से करीब 3 लाख 50 हजार अधिकारी-कर्मचारी प्रभावित होंगे.
-मौजूदा साल में 18 हजार कर्मचारी रिटायर होने है.
-ग्रेच्युटी, पीएफ समेत रिटायरमेंट के लाभ के रुप में एक कर्मचारी को औसतन 20 से 25 लाख रुपए का भुगतान होता है.
-इसके तहत सरकार पर करीब 450 करोड़ का भार आएगा.
वहीं दूसरी ओर प्रदेश के युवा शिवराज सरकार के इस फैसले से नाराज हैं. वे फैसले के खिलाफ आंदोलन करने की भी चेतावनी दे रहे हैं. बेरोजगार सेना के संयोजक अक्षय हुंका का कहना है कि जिस प्रदेश में 23.90 लाख रजिस्टर्ड बेरोजगार हों, 75 लाख बेरोज़गार घूम रहे हों, वहां इस तरह का फैसला राजनीति से प्रेरित फैसला है. उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ़ बेरोजगार सेना पूरे प्रदेश में आंदोलन करेगी.
(साभार: न्यूज़18)