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भोपाल गैस कांड: मौत, भय और पीड़ा के 32 बरस

भोपाल गैस कांड के आरोपी एंडरसन को भगाने वाले अधिकारी आठ दिसंबर को कोर्ट में पेश होंगे

Krishna Kant

भोपाल गैस कांड का जो मुख्य आरोपी था उसे कभी सजा नहीं दी जा सकी थी. दो अधिकारियों पर उसे भागने में मदद करने का आरोप था. अब 32 साल बाद उन अधिकारियों को आठ दिसंबर को कोर्ट में पेश होना है.

भोपाल गैस कांड के बाद इस दुर्घटना का आरोपी वारेन एंडरसन सात दिसंबर, 1984 को अमेरिका भागने में सफल रहा. भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की कोर्ट में 15 जून, 2010 में दायर एक याचिका दायर की गई. याचिका में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी मोती सिंह और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी स्वराज पुरी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी.


कोर्ट ने 19 नवंबर, 2016 को धारा 212, 217 और 221 के तहत दोनों अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया. मोती सिंह एवं स्वराज पुरी को 8 दिसंबर, 2016 को कोर्ट में उपस्थित होने के लिए समन जारी किया गया है.

भोपाल गैस कांड के बाद वहां मौजूद रासायनिक कचरा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर, 1984 की रात जिंदगी रोज की तरह चल रही थी. सब अपने-अपने घरों में अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे. लोगों ने दिन गुजारे, कामधाम निपटाया और फिर शुरू हुई वह रात, जिसके बारे में किसी को अंदाजा नहीं था कि तबाही की रात शुरू हुई है.

लोग खा-पीकर सोने गए और सैकड़ों लोगों के लिए यह नींद चिरनिद्रा साबित हुई. वे फिर कभी नहीं उठे. चौवन साल के रहमान वह भयानक याद करते हुए समाचार एजेंसी आइएएनएस से कहते हैं, 'उस समय हमारा परिवार काजी कैम्प में रहा करता था. हादसे की रात परिवार के सभी सदस्य सो रहे थे. अचानक हमें लगा कि आंखों में जलन हो रही है, दम घुट रहा है, घर से बाहर निकल कर देखा तो डरावना मंजर था.'

'सड़कों पर लोग बेहोशी की हालत में ऐसे पड़े थे, जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते बिखरे पड़े होते हैं. लोग सड़कों पर भागे जा रहे थे. किसी की गोद में बच्चा था तो कोई बच्चों के हाथ पकड़कर भागे जा रहा था. उस रात का मंजर आज भी डरवना बना हुआ है.'

भोपाल गैस कांड के बाद हजारों लोग सामान्य जीवन से महरूम हो गए

इस हादसे के बाद तीन हजार से ज्यादा मौतें तो हुईं ही, सैकड़ों लोगों की जिंदगी अभिशप्त हो गई. किसी को कैंसर हुआ, किसी को सांस की बीमारी हुई, किसी की आंख चली गई, किसी का फेफड़ा खराब हुआ, किसी का गुर्दा खराब हुआ. हादसे की वजह से आज भी हजारों लोग विकलांग जिंदगी जी रहे हैं.

आज 32 साल बाद भी उसे याद करने वाले प्रत्यक्षदर्शी सिहर उठते हैं. आज की नई पीढ़ी के हम जैसे लोगों ने इसके बारे में सिर्फ पढ़ा है या लोगों के मुंह से सुना है. बताते हैं कि 2-3 दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कंपनी से जहरीली गैस मिथाइल आयसोसायनेट का रिसाव हुआ था. इसकी वजह से एक हफ्ते के भीतर ही तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. इसके अलावा इस गैस रिसाव की वजह से तमाम लोग बीमार या विकलांग हुए. गैस की चपेट में आने वालों की मौतों का सिलसिला आज भी जारी है.

भोपाल सरकार के मुताबिक, गैस कांड से कुल 3787 मौतें हुईं. 2006 में सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि इसकी वजह से 558125 लोग प्रभावित, बीमार या विकलांग हुए थे (यहां देखें). हालांकि, निजी समूहों और संगठनों का कहना है कि गैस कांड के दो हफ्ते के अंदर ही आठ हजार लोग मारे गए थे. बाद के वर्षों में भी करीब आठ हजार लोग मारे गए. यानी इस हादसे में तकरीबन 15 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार का कहना है कि 'इस त्रासदी के असर से अब तक 20,000 से ज्यादा लोग मारे गए और लगभग साढे पांच लाख लोगों पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पडा. (यहां देखें) भोपाल गैस कांड के जख्म इतने गहरे थे कि वे तीन दशक बाद भी ताजा हैं.

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा, 'केंद्र और राज्य सरकारों ने इस हादसे के शिकार लोगों के हित की बात करने के बजाय आरोपी कंपनी का साथ देने की कोशिश की. यही कारण है कि इस हादसे के प्रभावितों को न तो बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल पाई और न सबको मुआवजा मिला है. गैस पीड़ितों में बीमारियां बढ़ रही हैं, हादसे के बाद जन्मे लोग भी गैस का दुष्प्रभाव झेल रहे हैं, मगर उन्हें चिकित्सा की सुविधा नहीं मिल रही है.'

भोपाल गैस कांड के बाद हजारों लोग सामान्य जीवन से महरूम हो गए

हादसे के समय यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड अमेरिका की मल्टीनेशनल कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के नियंत्रण में था. अब यह डाओ केमिकल कम्पनी (यूएसए) के अधीन है.

भोपाल गैस कांड दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में एक है. उस वक्त वारेन एंडरसन यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन था. घटना के चार दिन बाद एंडरसन को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन कुछ दिन बाद उसे जमानत मिल गई और वह अमेरिका भागने में सफल रहा.

अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित किया. भारत ने अमेरिका से एंडरसन के प्रत्यर्पण की बहुत कोशिश की लेकिन नाकामी ही हाथ लगी. भारत सरकार पर उसे बचाने और अमेरिका भागने में मदद करने के आरोप लगते हैं. 2014 में एंडरसन की मौत हो गई, उसे कभी सजा नहीं दी जा सकी. कंपनी बंद होने के बाद वहां मौजूद रासायनिक कचरा भी अब तक निपटाया नहीं जा सका है.