view all

भीमा कोरेगांव हिंसा मामला: सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर SC में सुनवाई आज

पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य चार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में कार्यकर्ताओं की रिहाई के साथ-साथ मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई थी

FP Staff

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई होगी. इस साल जनवरी में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस ने देशभर के कई शहरों में छापेमारी कर 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पांचों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए पुलिस को उन्हें 6 सितंबर तक हाउस अरेस्ट में रखने का आदेश दिया. गुरुवार को कोर्ट इसी मामले पर आगे सुनवाई करेगा.

इन पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य चार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में कार्यकर्ताओं की रिहाई के साथ-साथ मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई थी.


महाराष्ट्र पुलिस ने कई शहरों में एक साथ छापेमारी कर सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव को हैदराबाद से, फरीदाबाद से सुधा भारद्वाज और दिल्ली से गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था. वहीं ठाणे से अरुण फरेरा और गोवा से बर्नन गोनसालविस को गिरफ्तार किया गया. इस दौरान उनके घर से लैपटॉप, पेन ड्राइव और कई कागजात भी जब्त किए गए. ये सभी फिलहाल हाउस अरेस्ट पर हैं.

पहले कोर्ट ने क्या कहा था?

इससे पहले 29 अगस्त को पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'विरोध को रोकेंगे तो लोकतंत्र टूट जाएगा.' रोमिला थापर और चार अन्य कार्यकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए  कोर्ट ने कहा, 'असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे, तो वो फट सकता है. लिहाजा अदालत आरोपियों को अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगाती है, तब तक सभी आरोपी हाउस अरेस्ट में रहेंगे.'

वहीं महाराष्ट्र पुलिस का दावा है कि उसके पास पांचों कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं कि गिरफ्तार आरोपियों के संबंध नक्सली संगठनों से हैं.

वार्षिक समारोह ने ले लिया था हिंसक रूप

हर साल जनवरी महीने में दलित समुदाय के कई लोग भीमा कोरेगांव में इकट्ठे होते हैं. वह मराठा पेशवाओं के खिलाफ दलित समुदाय के लोगों की पहली जीत की 200वी सालगिराह मनाने के लिए इस बार भी जनवरी महीने में भीमा कोरेगांव आए थे.

लेकिन इस बार कुछ दक्षिण पंथी दलों ने उनका विरोध किया. उनका तर्क था कि यह जीत अंग्रेजों की थी और इसका जश्न नहीं मनाया जा सकता. इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया. जिसमें कई लोग गंभीर रूप से जख्मी भी हुए थे. इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जांच के आदेश दिए थे.