भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में एसआईटी की जांच की मांग करने वाली इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य चार कार्यकर्ताओं की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी को चार हफ्तों के लिए बढ़ा दिया है.
कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में आरोपी बनान गए कार्यकर्ता नजरबंदी के दौरान भी राहत के लिए कोर्ट जा सकते हैं. हालांकि कोर्ट ने इस केस में एसआईटी जांच की मांग को खारिज कर दिया है और पुणे पुलिस को अपनी जांच जारी रखने को कहा है.
इसके पहले अदालत ने आरोपियों को अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. फिलहाल ये सभी कार्यकर्ता हाउस अरेस्ट में रह रहे हैं.
इस साल जनवरी में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस ने बीते 28 अगस्त को देशभर के कई शहरों में एक साथ छापेमारी कर सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव को हैदराबाद से, फरीदाबाद से सुधा भारद्वाज और दिल्ली से गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था. वहीं ठाणे से अरुण फरेरा और गोवा से वर्नान गोनसालविस को गिरफ्तार किया गया.इस दौरान उनके घर से लैपटॉप, पेन ड्राइव और कई कागजात भी जब्त किए गए.
असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है: सुप्रीम कोर्ट
इसके बाद रोमिला थापर सहित अन्य चार कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका दायर की. इस याचिका में कार्यकर्ताओं की रिहाई के साथ-साथ मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई थी.
बाद में पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'विरोध को रोकेंगे तो लोकतंत्र टूट जाएगा. असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे, तो वो फट सकता है.'
बाद में शीर्ष अदालत ने 19 सितंबर को कहा कि वह मामले पर ‘पैनी नजर’ बनाए रखेगा क्योंकि ‘सिर्फ अनुमान के आधार पर आजादी की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती है.’ अगर साक्ष्य ‘मनगढ़ंत’ पाए गए तो कोर्ट इस संदर्भ में एसआईटी जांच का आदेश दे सकता है.