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भीमा-कोरेगांव मामला: गिरफ्तार 5 कार्यकर्ताओं पर कोर्ट शुक्रवार को सुनाएगा फैसला

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था

Bhasha

कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुना सकता है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. इस दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं. पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिए कहा.


पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं.

याचिकाकर्ताओं की मांग स्वतंत्र जांच और तत्काल रिहाई

थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिए वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से दायर याचिका में इन गिरफ्तारियों के संदर्भ में स्वतंत्र जांच और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की गई है.

पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एल्गार परिषद’ के सम्मेलन के बाद राज्य के कोरेगांव-भीमा में हिंसा की घटना के बाद दर्ज एक एफआईआर के संबंध में महाराष्ट्र पुलिस ने इन्हें 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था.

शीर्ष अदालत ने 19 सितंबर को कहा था कि वह मामले पर ‘पैनी नजर’ बनाए रखेगा क्योंकि ‘सिर्फ अनुमान के आधार पर आजादी की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती है.’

वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर, अश्विनी कुमार और वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि समूचा मामला मनगढ़ंत है और पांचों कार्यकर्ताओं की आजादी के संरक्षण के लिए पर्याप्त सुरक्षा दी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि अगर साक्ष्य ‘मनगढ़ंत’ पाए गए तो कोर्ट इस संदर्भ में एसआईटी जांच का आदेश दे सकता है.