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SC-ST एक्ट के खिलाफ भारत बंद: क्या चाहते हैं सवर्ण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों नाराज हैं दलित, क्या है पूरा मामला, जानें

सवर्ण समुदाय का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है और केंद्र सरकार ने वोट बैंक के दवाब में आकर इसको बदलने का फैसला किया है

FP Staff

केंद्र सरकार की तरफ से SC/ST एक्ट में संशोधन कर उसे मूल रूप में बहाल करने के विरोध में सवर्ण समुदाय के संगठनों ने आज यानि 6 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए मध्य प्रदेश के ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल समेत ज्यादातर जिलों में एहतियातन धारा 144 लागू कर दी गई है. केंद्र सरकार द्वारा एससी/एसटी एक्ट में संशोधन किए जाने के विरोध में सवर्ण समाज, करणी सेना, सपाक्स और अन्य द्वारा 6 सितम्बर को 'भारत बंद' के आह्वान को मद्देनजर यह आदेश जारी किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को सुनाया था फैसला


एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च को लिए गए फैसले के साथ शुरू हुआ था. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट 1989 में कुछ अहम बदलाव किए. फैसले का जमकर विरोध हुआ. दलित समुदाय ने भी भारत बंद का ऐलान कर विरोध प्रदर्शन किया था. इस दौरान काफी हिंसा हुई थी और कई लोगों की जान भी गई थी. आखिर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलित समुदाय इतना नाराज क्यों है...

कोर्ट के फैसले की अहम बातें?

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में मुख्य तीन बदलाव किए थे.

1. पहले इस कानून में अग्रिम जमानत का प्रानधान नहीं था, लेकिन कोर्ट के फैसले के मुताबिक अब इस एक्ट के तहत आरोपियों को अग्रिम जमानत मिल सकती है.

2. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस अधिनियम के तहत आने वाले मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस मामले की जांच करेगी. अगर वो मामले को सही पाती है तो ही एफआईआर दर्ज की जाएगी.

3. सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट में बदलाव करते हुए कहा था कि इस अधिनियम के तहत किसी भी लोक सेवक की गिरफ्तारी तभी हो सकेगी जब उसके अपोइंटिंग अथॉरिटी इसकी लिखित में अनुमति दें.

इसके अलावा अन्य आरोपियों की गिफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की लिखित में दी गई अनुमति के बाद ही होगी.

क्यों हुआ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विरोध?

1. 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट की धारा 18 को जायज ठहराते हुए कहा था कि इस तरह के मामलों में आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती. क्योंकि जमानत मिलने पर आरोपी पीड़ितों को धमका भी सकते हैं. कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट को पुराने फैसेल पर दोबारा विचार करने की जरूरत लगे तो इस मामले को किसी बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 20 मार्च, 2018 को लिए गए फैसले में ऐसा कुछ नहीं हुआ और महज दो जजों की पीठ ने ही एक्ट में बदलाव का फैसला दे दिया.

2. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक शिकायतों पर एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस जांच करेगी कि मामला सही है भी या नहीं. इसका मतलब एफआईआर दर्ज होने में पहले से और ज्यादा देरी होगी.

3. तीसरे बदलाव के मुतबिक अब वरिष्ठ पुसलि अधिकारियों की अनुमति के बाद ही आरोपियों को गिरफ्तार किया जाएगा. इससे दलित समुदाय की मुश्किलें और बढ़ ही सकती हैं, क्योंकि दलित एक तो पहले ही उनके साथ हुए अत्याचार के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से हिचकिचाते थे. ऐसे में उन्हें जब ये पता चलेगा की उनकी शिकायत करने के काफी दिन बाद भी आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है तो उनकी रही सही हिम्मत भी टूट जाएगी.

क्या है सवर्णों की मांग?

दरअसल सरकार ने मॉनसून सत्र में दलितों के प्रदर्शन और दलित समुदाय के दबाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का फैसला किया था. इसके लिए सरकार ने एससी-एसटी एक्ट संशोधन विधेयक को मंजूरी भी दे दी थी. सवर्ण समुदाय केंद्र सरकार के इसी फैसले से नाराज हैं.

एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए बदलावों को बहाल करने की मांग कर रहे सवर्ण समुदाय का कहना है कि एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग कर उन्हें झूठे मामलो में फंसाया जाता है. सवर्णों का मानना है कि कोर्ट का फैसला सही है और केंद्र सरकार ने वोट बैंक के दवाब में आकर इसे बदलने का फैसला किया है. कैंद्र सरकार के इसी फैसले का विरोध सवर्ण समुदाय के लोग कर रहे हैं. सवर्ण समुदाय की तरफ से बुलाए गए भारत बंद का सबसे ज्यादा असर मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रहा है.

 क्यों बना एससी-एसटी एक्ट?

दरअसल एससीएटी एक्ट को बनाने का मुख्य कारण था समाज के दलित और वंचित समुदायों को न्याय दिलाना. साथ ही दलित समुदाय को भय मुक्त और हिंसा मुक्त वातारण उपलब्ध कराना ताकि वे पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन जी सकें. इस एक्ट को बनाते हुए छआछूत को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया था.