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नायपॉल की मां ने उन्हें सलाह दी थी कि भारतीयों के लिए भारत छोड़ दो

उन्होंने कहा था 'मेरी मां ने सिर्फ एक शब्द भारत से सीखा था (बेटा) और वह कहती थी, बेटा भारत भारतीयों के लिए छोड़ दो.'

FP Staff

वीएस नायपॉल, अपनी टाइमलेस किताबों और असंख्य विचारों के चलते जाने जाते थे. उन्होंने भारत में अपनी आखिरी सार्वजनिक उपस्थिति जनवरी 2015 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में दी थी. जहां उन्होंने लंबा भाषण दिया था और उन्हें मिले भव्य स्वागत के चलते आंखों में आंसू आ गए थे.

अपनी पहली भारत यात्रा को याद करते हुए नोबल पुरस्कार विजेता ने कहा था 'मैं अपने पूर्वजों की भूमि के बारे में जिज्ञासा के कारण पहले भारत आया था. मैंने भारत पर जो कुछ भी लिखा उसके बदले में प्रकाशकों ने मुझे एडवांस देने पर सहमति जताई थी.'


लेकिन भारत पर दो पुस्तकें (An Area of Darkness और A Wounded Civilization) लिखने के बाद उनकी मां ने उनसे भारत छोड़ने के लिए कहा था.

उन्होंने कहा था 'मेरी मां ने सिर्फ एक शब्द भारत से सीखा था (बेटा) और वह कहती थी, बेटा भारत भारतीयों के लिए छोड़ दो.'

कौन थे वी एस नायपॉल?

वी एस नायपॉल का पूरा नाम विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल है. उनका जन्म 17 अगस्त, 1932 को कैरेबियाई देश त्रिनिडाड के चगवानस में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई त्रिनिडाड में ही रहकर की थी. बाद में उन्होंने प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई की.

नायपॉल की पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' साल 1951 में प्रकाशित हुई थी. नायपॉल की सबसे चर्चित उपन्यास 'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' है. इसे लिखने में उन्हें 3 साल से भी ज्यादा वक्त लगा.

वी एस नायपॉल एक क्रांतिकारी लेखक थे. खुलकर लिखने और बोलने के पैरोकारी थे. एक बार उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस उचित थी. बाबरी मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाकर ठीक कर दिया गया. उन्होंने यह विचार भी रखा कि जिस तरह स्पेन ने अपने राष्ट्रीय स्मारकों का पुनर्निर्माण कराया है, वैसा ही भारत में भी होना चाहिए.