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बठिंडा कांड: एक इनकार के बदले मौत 

पंजाब में एक युवती ने युवकों के साथ डांस करने से मना किया तो उसे गोली मार दी गई.

Krishna Kant

'शराब की आदत मनुष्य की आत्मा का नाश कर देती है और उसे धीरे-धीरे पशु बना डालती है.'- महात्मा गांधी, हरिजन, 9/3/1934


पंजाब के बठिंडा में एक युवती ने स्टेज से उतर कर युवकों के साथ डांस करने से मना किया तो उसे गोली मार दी गई. समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक नशे में चूर मेहमानों ने डांसर कुलविंदर कौर को उनके साथ डांस करने का आॅफर दिया. उसके मना करने पर नजदीक से उस पर गोली चला दी. डांसर की मौत हो गई. कुलविंदर गर्भवती भी थी.

महात्मा गांधी जिस सभ्यता को शैतानी कहकर उसकी घोर निंदा करते थे, भारत में वह शैतानी सभ्यता दशकों पहले प्रवेश कर गई थी. यह उन सपनों का भारत तो कतई नहीं है, जिसका सपना महात्मा गांधी के साथ तमाम भारत के निर्माताओं ने देखा था.

हम इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं कि अपने व्यसन के लिए की गई मांग पर इनकार पसंद नहीं करते और किसी की जान ले लेते हैं?

चर्चित जेसिका लाल हत्याकांड भी इसी तरह का मामला था. 29 अप्रैल, 1999 को कुतुब कोलोनेड रेस्तरां में बीना रमानी ने पार्टी आयोजित की थी. पार्टी में तमाम नामी गिरामी हस्तियां मौजूद थीं. देर रात में कांग्रेस के नेता विनोद शर्मा का बेटा मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ पार्टी में पहुंचा. पार्टी में शराब परासने का टाइम खत्म हो चुका था. मनु शर्मा ने जेसिका लाल से शराब की मांग की, लेकिन जेसिका ने मना कर दिया. मनु शर्मा को इतना गुस्सा आया कि उसने पिस्टल निकाल कर एक गोली हवा में चलाई और दूसरी गोली जेसिका पर. जेसिका के सिर में गोली लगी. इसके बाद मनु शर्मा वहां से फरार हो गया.

अपनी कुंठित इच्छाओं को पूरा न होते देख किसी की जान ले लेना हमारे समाज का एक अंतहीन सिलसिला है. जेसिका लाल कांड पहला नहीं था, कुलविंदर की मौत आखिरी नहीं है.

हाल ही में दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाली करुणा को उसके स्वनामधन्य प्रेमी ने 33 बार कैंची घोंप कर मार डाला था. वजह सिर्फ यही थी कि करुणा ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था.

करुणा को मारने के बाद हमलावर युवक ने तड़पती हुई लड़की का फोटो खींचकर वाट्सअप किया, लाश के पास डांस किया और फिर खुद ही फोन करके पुलिस भी बुलाई. इससे हमें अंदाजा लगता है कि हमारे युवकों में कितनी हिंसा भरी है.

करुणा की हत्या की घटना 20 सितंबर की थी. इसी दिन तीन अन्य घटनाएं इसी से मिलती जुलती घटी थीं. घर में काम करने वाली एक लड़की ने प्रेम का प्रस्ताव ठुकराया तो प्रस्ताव रखने वाले ने उसे चाकू मार कर हत्या कर दी. एक लड़की को उसके प्रेमी ने गोली मार दी. एक और लड़की ने शादी की बात आगे बढ़ाने से मना किया तो लड़के ने उसे तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया.

इन सब घटनाओं में पैटर्न एक सा है. लड़की ने किसी भी प्रस्ताव को इनकार किया तो उसकी जान ले ली गई. हमने एक समाज बनाया है जिसमें पुरुष शराब पीकर नाचना चाहता है, जश्न मनाना चाहता है, ऐसा करके वह अपने को आधुनिक समझता है. लेकिन जिस भी स्त्री पर उसकी निगाह पड़े वह उसे हासिल करना चाहता है. इनकार उसे बर्दाश्त नहीं होता.

इनकार का बर्दाश्त न होना मध्ययुगीन प्रवृत्ति है. हमने सबने खूब कहानियां सुनी हैं, किताबों में पढ़ा है कि राजा को रास्ता चलते कोई लड़की पसंद आ गई तो शाम तक सिपाही उसे उठाकर राजा के सामने पेश कर देते थे. राजा उसे रानी, पटरानी, दासी या एक रात की वस्तु बना सकता था. स्त्री के पास नकार का विकल्प नहीं था. हमारे समाज का पुरुष वहीं ठहरा है. वह अपना शरीर जगमगाती पार्टियों तक ले आया है, लेकिन उसकी सोच वहीं ठहरी है. बर्बरता के मध्ययुग में. उसे ना सुनना अच्छा नहीं लगता.

अभी एक पखवाड़े पहले हरियाणा के करनाल में एक सगाई समारोह में कथित साध्वी देवा ठाकुर और उसके सुरक्षाकर्मियों ने फायरिंग की थी. इस फायरिंग में दूल्हे की मौसी की मौत हो गई थी और पांच लोग घायल हो गए थे.

शादियों में गोली, बंदूक और हिंसक जश्न होते ही क्यों हैं? हिंसक प्रदर्शनों में संपन्न शादियां क्या हमारे जीवन में भी हिंसा नहीं भर देती होंगी? जीवन भर की खुशी को एक मिनट में पुरमातम बनाने का यह खेल काफी खतरनाक है.

शादियों में शराब, बंदूक, गोलीबारी, आतिशबाजी, लड़कियों की डांस पार्टी आदि का किसी खुशी से कोई संबंध नहीं है. यह पुरुषों के मर्दवादी अहं को तुष्ट करने का जरिया भर है. यह हिंसक शक्ति-प्रदर्शन लोगों की जान लेने के सिवा और देता क्या है! आज बठिंडा में कुलविंदर की मौत हुई. कल कहीं और किसी और की मौत होगी. जैसा कि गांधी जी कहते थे, हमें अपने जीवन और अपनी खुशियों को शैतानी कृत्यों से मुक्त रखना चाहिए.