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ब्याज दरों में कटौती के लिए अप्रैल तक करना होगा इंतजार

रिजर्व बैंक ने दो दिन की बैठक के बाद रेपो रेट 6.25 फीसदी पर और रिवर्स रेपो रेट को 5.75 फीसदी पर रखने की घोषणा की

Bhuwan Bhaskar

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है.

हालांकि पिछले कुछ दिनों में आए तमाम सर्वे के मुताबिक बाजार का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही 6 साल के सबसे निचले स्तर पर चल रहे रेपो दर में चौथाई फीसदी की कमी की उम्मीद कर रहा था.


लेकिन बुधवार को आरबीआई ने छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो दिन तक चली बैठक के बाद रेपो रेट को 6.25 फीसदी पर और रिवर्स रेपो रेट को 5.75 फीसदी पर रखने की घोषणा की.

रेपो रेट वह ओवरनाइट ब्याज दर होता है, जिस पर बैंक आरबीआई से कर्ज लेते हैं. जबकि, रिवर्स रेपो वह दर होता है जिस पर बैंक अपना सरप्लस फंड आरबीआई के पास ओवरनाइट आधार पर रखते हैं. जाहिर है कि रेपो रेट कम होने से बैंकों को और कम खर्च पर आरबीआई से कर्ज लेने की सहूलियत मिलेगी जिससे उन्हें अपनी ब्याज दरें घटाने में आसानी होगी.

इससे पहले, आरबीआई ने 4 अक्टूबर की अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में दरों में चौथाई फीसदी की कमी की थी. जबकि 7 दिसंबर की समीक्षा में दरों में कोई बदलाव करने से इंकार कर दिया था.

दरों में कटौती पर कोई फैसला नहीं

बाजार का मानना था का विमुद्रीकरण से मिली नकदी और बजट के बाद आरबीआई अर्थव्यवस्था को ग्रोथ देने के लिए चौथाई फीसदी की और कटौती करेगा. लेकिन ऐसा लगता है कि कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों पर ऊपर की तरफ दबाव और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणात्मक नीतियों के कारण आने वाले दिनों में रुपये की कमजोरी के जोखिम को देखते हुए फिलहाल दरों में कटौती पर कोई फैसला न करना ही ठीक समझा.

महंगाई दरों के मोर्चे पर हालांकि रिजर्व बैंक बेहतर स्थिति में है. पिछले साल नवंबर में खुदरा महंगाई दर 2.59 फीसदी बढ़ी थी, जो कि दिसंबर में घटकर 2.23 फीसदी रह गई.

जनवरी में इसके कुछ और नरम होने की उम्मीद है जो कि रिजर्व बैंक के मध्यम अवधि के 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी नीचे है. लेकिन यह भी नहीं भूला जा सकता कि नवंबर, दिसंबर और कुछ हद तक जनवरी में खुदरा महंगाई दर पर नोटबंदी का असर बहुत ज्यादा रहा है. इसलिए शायद आरबीआई महंगाई दरों के कुछ और आंकड़ों को देखने के बाद अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती का फैसला कर सकेगा. क्योंकि उस समय तक ट्रंप की व्यापारिक नीतियों का असर भी कुछ और साफ हो चुका होगा.