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पटाखों पर बैन: क्या पाबंदी ही हर मर्ज का इलाज है!

अगर पटाखों पर पाबंदी ही वायु प्रदूषण का इलाज तो फिर यह इलाज महज दिल्ली-एनसीआर के लिए ही क्यों?

Sumit Kumar Dubey

बचपन से ही हम पढ़ते आए हैं कि भारत त्योहारों का देश है. धार्मिक और पारंपरिक वजहों के अलावा ज्यादातर त्योहार देश में बदलती ऋतुओं के साथ कुछ इस तरह जुड़े हुए हैं कि वे आने वाले मौसम के स्वागत के सामाजिक उत्सव का जरिया बन गए हैं. हर त्योहार के साथ कोई ना कोई परंपरा भी जुड़ी हुई है और दीपावली में आतिशबाजी करना ऐसी ही परंपराओं का हिस्सा है.

बीते सोमवार को देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली से जुड़ी परंपरा यानी आतिशाबाजी करने पर राजधानी दिल्ली और उससे सटे आसपास के इलाकों में पाबंदी लगाने का फैसला सुना दिया.


अदालत ने यह फैसला दिल्ली-एनसीआर में दीपावली के आसपास होने वाले वायु प्रदूषण को काबू नें रखने की सोच के मद्देनजर सुनाया है. अदालत के इस फैसले के समर्थन के साथ-साथ इसका विरोध भी हो रहा है.

सवाल तो कई हैं

सवाल है कि क्या वाकई किसी चीज पर पाबंदी लगा देने से उस समस्या का निदान निकल सकता है? और अगर वाकई निकल सकता है तो फिर पटाखे बेचने पर महज दिल्ली और एनसीआर में ही पाबंदी क्यों? क्या देश के बाकी बड़े शहरों में आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण से लोगों को परेशानी नहीं होती होगी? क्या उत्तर और मध्य भारत के पटना, लखनऊ, भोपाल और जयपुर जैसे बड़े शहरों के बाशिंदों को आतिशबाजी का लुत्फ उठाने के बदले वायु प्रदूषण का शिकार बनने दिया जा सकता है?

क्या पटाखों की बिक्री को रोक कर ही दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को काबू में किया जा सकता है?  क्या पाबंदी ही हर समस्या का इलाज है? और अगर है तो फिर देश की बाकी समस्याओं को भी पाबंदी लगाकर ही हल किया जाएगा? क्या यह पाबंदी कारगर साबित होगी? क्या यह पाबंदी देश की सबसे बड़ी अदालत को वह आंकड़े देने में कामयाब रहेगी, जिन्हें जानने कोशिश के तहत ही दीपावली को पटाखों से महरूम रखने का फैसला सुनाया गया है?  ऐसे कुछ सवाल है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपने जवाब ढूंढ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के सामने इससे पहले साल 2015 में भी आतिशबाजी पर प्रतिबंधित लगाने की गुजारिश की गई थी. अब अदालत ने इसे नकार दिया था. लेकिन उसके बाद जब दीपावली का आसपास दिल्ली की हवा में हानिकारक तत्व कुछ इस तरह शामिल हुए कि खुद अदालत ने एक बार इसे ‘गैस का चैंबर‘ तक कह डाला था.

कब लगी थी पहली बार पाबंदी?

साल 2016 में अदालत ने पहली बार दिल्ली एनसीआर मे पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी थी. इसके साथ साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी को तीन महीने के भीतर इस पाबंदी के के दिल्ली की आबो-हवा पर होने वाले बदलाव का अध्ययन करके रिपोर्ट सौंपने को कहा था.

सीपीसीबी ने कुछ वक्त बाद अपने हाथ खड़े करते हुए कोर्ट में दलील दी कि पटाखों पर अध्ययन करना उसके अधिकारों का दायरे से बाहर है और यह काम एक दूसरी संस्था पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन को सौंपा जाए. यानी जांच नहीं हो सकी. दिल्ली की हवा को बिगाड़ने में पटाखों का कितना हाथ है, यह अब भी यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है.

दीपावली के आसपास हवाएं उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है. इन्ही दिनों पंजाब और हरियाणा में किसान फसलों को जलाते हैं जिसके धुएं की गिरफ्त में दिल्ली का इलाका जरूर आता है

क्या पूर्णत: लागू हो पाएगा अदालत का आदेश?

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि पाबंदी अल्पकालिक है और इसके जरिए पटाखों से होने वाले नुकसान का आकलन किया जाएगा. अब सवाल यह है कि क्या अदालत की इस पाबंदी को व्यावहारिक तौर पर पूर्णत: लागू किया जाएगा या किया जा सकता है? आदेश के मुताबिक दिल्ली में एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर पूर्णत: पाबंदी है, उनके इस्तेमाल पर नहीं.

ऐसे में दिल्ली एनसीआर से आगे के इलाकों से पटाखों को खरीद कर लाने और उनके इस्तेमाल की गुंजाइश अब भी बरकरार है. साथ ही, पटाखों की काला बाजारी की आशंका भी अब और बलवती हो गई है. ऐसे में बिना पटाखों वाली दीपावली के वक्त दिल्ली-एनसीआर की हवा की जांच के आंकड़े पूर्णत: अकाट्य होंगे, उस पर भी सवालिया निशान लग सकते हैं

क्या बैन ही हर मर्ज का इलाज है?

दीपावली पर महज पटाखों की वजह से ही वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी नहीं होती है. त्योहार के इस पावन मौके पर बहुत लोग अपनी अपनी पुरानी गाड़ियों तो बाहर निकालकर रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालों से मुलाकत करने निकलते हैं. दिल्ली की सड़कों पर इस त्योहार के मौके पर गाड़ियों की संख्या और उनसे होने वाला वायु प्रदूषण भी अपने पुराने रिकॉर्ड्स तोड़ देता है. सारी गाड़ियां सड़कों पर आने की वजह से जाम की समस्या होती है. जाम के वक्त गाड़ियों से लगातार धुआं निकलता है. यह भी प्रदूषण की तमाम वजहों में शामिल होता है.

क्या इस मौके पर कारों और बाकी वाहनों को भी बैन कर देना चाहिए? नहीं..किसी चीज पर पाबंदी से उससे जुड़ी समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता है. समस्या का समाधान उससे जुड़ी बुराइयों को खत्म करके किया जाता है.

हाल ही में देश में ऐसे कई वाकये हुए हैं जो दर्शाते हैं कि देश के लोगों को किस तरह बैन के साए में जीने के लिए मजबूर किया जा रहा है.  हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ममता बनर्जी ने मुहर्रम के दिन दुर्गा पूजा विसर्जन पर बैन लगा दिया था. धार्मिक भावनाएं आहत होने के खतरे के मद्देनजर कई राज्यों में  बीफ खाने पर बैन लगा हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों तमिलनाडु में किसानों के उत्सव जल्लीकट्टू पर पाबंदी लगाई लगाई थी जिसेक बाद हुए जनविरोध के मद्देनजर सरकार ने अध्यादेश लाके अदालत के आदेश को निष्प्रभावी बना दिया.

यह बात खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी मानी है कि पटाखों पर पाबंदी अनिश्चित काल के लिए नहीं बल्कि इसे एक टेस्ट केस की तरह इस दौरान वायु प्रदूषण का अध्ययन के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा.

दिल्ली में दीपावली के अलावा भी शादी ब्याहों के सीजन में पटाखों का जमकर इस्तेमाल किया जाता है. पटाखों की बिक्री पर रोक का फैसला दीपावली के बाद भी किया जा सकता था. त्योहार से ऐन पहले इस फैसले में करोड़ों की इस पटाखा इंडस्ट्री से जुड़े हजारों लोगों की आजीविका पर भी संकट पैदा कर दिया है.

चेतन भगत जैसे लेखक ने तो इसे गैरवाजिब धार्मिक रंग भी दे दिया है और उसके लिए उनका विरोध भी हो रहा है. लेकिन यह एक वास्तविकता है कि अदालत के इस फैसले से देश के बहुसंख्यक वर्ग की जवभावनाओं के भी आहत होने की आशंका है जिसका नाजायज फायदा उठाकर असामाजिक तत्व साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए भी कर सकते हैं.

यह बात तो सोलह आने सच है कि पटाखों में सल्फर, मरकरी और लेड जैसे घातक रसायनों का इस्तेमाल होता है जिससे बच्चों और बुजुर्गों के लिए वाकई में मुश्किल खड़ी हो जाती है. लेकिन एक बेहतर मैकैनिज्म के तहत पटाखों की बिक्री को नियंत्रित करने का रास्ते खोजे जा सकते थे. अधिक प्रदूषण फैलाने वाले सुतली बम, लड़ी बम या फिर रॉकेट जैसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों के बजाय कम प्रदूषण वाले पटाखों की बिक्री को मजूरी देकर पटाखा मार्केटके रेग्यूलेट करने की कोशिश की जा सकती थी ताकि दिल्ली एमसीआर के लोग अनंत वर्षों पुराने इस त्योहार को मनाते हुए हर्षोल्लास के साथ शीत ऋतु का स्वागत कर पाते.