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एक्सक्लूसिव वीडियो: पहलू खान को हमने पीटा तो वो हार्ट अटैक से मर गया

हनुमानगढ़ में देशभक्ति के नाम पर चल रहे बजरंग दल और वीएचपी के कैंपों का स्टिंग ऑपरेशन.

Asad Ashraf

दिल्ली से बस 400 किलोमीटर की दूरी पर बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद और हिंदुत्ववादी जैसे समूह प्रशिक्षण शिविर चला रहे हैं. इन शिविरों में स्कूली बच्चों को तलवार और बंदूक चलाना सिखाया जाता है. शिविरों के बारे में फ़र्स्टपोस्ट को सूचना मिली तो हमने इन संगठनों और उनके ढांचे की खोजबीन का फैसला किया.

हम राजस्थान के हनुमानगढ़ के लिए निकल पड़े. हनुमानगढ़ भी उन जगहों में से एक हैं जहां बच्चों के नाजुक दिलो-दिमाग में देशभक्ति जगाने के नाम पर ये प्रशिक्षण शिविर चलाये जा रहे हैं.


हनुमानगढ़ जाना जरुरी था, क्योंकि हाल के समय में देशभक्ति का अर्थ कुछ धुंधला हुआ है और समाज में कुछ लोग शायद यह भुला बैठे हैं कि देशभक्ति और देशप्रेम का मतलब दूसरे समुदाय से नफरत पालना तथा गोरक्षा के नाम पर किसी की पीट-पीटकर जान लेना नहीं होता.

श्रीगंगानगर से सटे इस शहर हनुमानगढ़ पहुंचकर हमने देखा कि भगवा कपड़ा पहने और इसी रंग का गमछा लिए लोग हर तरफ नजर आ रहे हैं. बाद में हमें बजरंग दल के एक सदस्य ने बताया कि राजस्थान के इस इलाके में यह एक नया चलन निकला है जो इस बात के संकेत देता है कि ऐसे समूहों का जोर इलाके में बढ़ रहा है.

हम अभी होटल पहुंचे ही थे कि कुछ ही मिनटों के अंदर तीन लोगों ने दरवाजा खटखटा दिया. हमने पूछा कि जनाब, आप सब कौन हैं तो जवाब मिला- 'बजरंग दल के सदस्य.' वे अंदर आये और बिना कुछ कहे कमरे में रखे सोफे पर बैठ गये. इससे माहौल तनिक असमंजस वाला बन गया, बहुत कुछ ऐसा भान होने लगा कि रहने के लिए यह जगह सुरक्षित नहीं है और इस वक्त से हमपर लगातार निगरानी रखी जायेगी.

हमने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की लेकिन उनकी तरफ से चुप्पी कायम रही. कुछ देर तक कमरे और हमारे साज-ओ-सामान पर सरसरी नजर डालने के बाद वे चले गये और जाते-जाते कहा कि हमारे नेता कुछ देर में आप लोगों से मिलने के लिए आयेंगे.

हमने उनके नेता आशीष के आने का कुछ देर तक इंतजार किया लेकिन उनका कहीं अता-पता नहीं था. आशीष जोधपुर के इलाके में वीएचपी और बजरंग दल का काम संभालते हैं. हम उम्मीद खोते जा रहे थे और यह मानकर चल रहे थे कि ये लोग हमें शक की नजर से देख रहे हैं. इसी बीच मेरे फोन की घंटी बजी. फोन आशीष का था. कहा गया कि जिस होटल में ठहरे हो उसके बेसमेंट में आओ और हमसे और हमारी टीम से मिलो.

हमारा दिल धक-धक कर रहा था, मन में घबड़ाहट हो रही थी और ऐसी ही मनोदशा में हम नीचे उतरे जहां दर्जन भर नौजवान हमारा इंतजार कर रहे थे. शुरू-शुरू में उन्होंने बातचीत करने में हिचकिचाहट दिखायी लेकिन धीरे-धीरे खुल गये और अपने बड़े विस्तार से अपनी गतिविधियों के बारे में बताया. लेकिन ऐसा तभी हुआ जब हमने उनके साथ एक किस्म का दोस्ताना कायम कर लिया और उन्हें लगने लगा कि इन लोगों के मन में हमारे काम को लेकर हमदर्दी है.

उन लोगों ने कैमरे के सामने कबूल किया कि यह स्कूल हमीं लोग चलाते हैं और यहां बच्चों को आधुनिक हथियार चलाना सिखाया जाता है. यह सब भारत में इस्लामिक स्टेट के खतरे और देश के भीतर मौजूद दुश्मनों से निपटने के मकसद से किया जा रहा है. गोरक्षा के नाम पर लोगों पर हमला करने और ‘लव-जेहादियों’ से निपटने की बात भी उन लोगों ने कबूल की. संकेत बड़े साफ थे कि इन लोगों ने कानून अपने हाथ में ले रखा है और पुलिस को अपने काम और जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करने दे रहे.

उन लोगों ने यह भी कबूल किया कि इन सारे काम को अंजाम देने में उन्हें प्रशासन की ओर से मदद मिलती है और बीजेपी के सत्ता में आने से उनका विश्वास बढ़ा हुआ है, क्योंकि अब मुख्यधारा की पार्टी के कुछ लोग उनके हिमायती हैं और सरकार उन्हें मदद दे रही है. उनका एक दावा यह भी था कि हमारे ही जमीनी कामों की वजह से बीजेपी को जीत मिली है, भले ही पार्टी इस बात को ना माने.

आशीष ने इन बातों में अपनी तरफ से जोड़ते हुए कहा कि हमलोग हिन्दू संस्कृति की रक्षा और गायों की तस्करी तथा लव-जेहाद को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. आशीष की मानें तो वे लोग यह सब इस्लामिक स्टेट के खतरे से निपटने के लिए कर रहे हैं. उसने कहा- 'यह कहना ठीक नहीं कि प्रशासन हमारी पूरी-पूरी मदद कर रहा है लेकिन उनकी तरफ से हमें हमेशा कुछ ना कुछ मदद मिलती रहती है क्योंकि वे जानते हैं कि हमलोग जो कुछ कर रहे हैं वह सही है.'

हमारे ही लोगों ने ली पहलू की जान

पहलू खान की हत्या के बारे में पूछने पर आशीष ने कबूला कि हमारे ही लोगों ने उसकी जान ली लेकिन मकसद जान लेने का नहीं था, उसकी हत्या गलती से हो गई. प्रशिक्षण शिविर के बारे में पूछने पर उसने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया कि ‘इन शिविरों में नया कुछ नहीं किया जा रहा क्योंकि यहां हम लोगों को आत्मरक्षा करना सिखाते हैं. अब आप तो जानते ही हैं कि चारों तरफ आतंकवादी गतिविधियों की पैठ हो रही है और ऐसे में हमें चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए. संगठन कमउम्र लड़कियों के लिए पाली में भी एक शिविर चला रहा है. इस शिविर में लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है. पाली पाकिस्तान की सीमा से लगता हुआ इलाका है.'

आशीष ने बताया कि 'लोगों की अच्छी-खासी तादाद हमारे साथ जुड़ी है, हम लोगों को लव-जेहाद के मसले पर खासतौर से लामबंद करने में कामयाब हैं.' उसने यह भी कहा कि 'लव-जेहाद का मसला बहुत फैला हुआ है और मुस्लिम संगठन मुस्लिम मर्दों को पैसा दे रहे है कि हिन्दू लड़कियों को फंसाकर उनका धर्म-परिवर्तन कराओ.'

सरकार की भूमिका और उसके कामकाज पर पड़े असर के बारे में बताते हुए आशीष ने कहा कि 'चूंकि सत्ता में बीजेपी आ गई है इसलिए हमारे कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ा है क्योंकि बीजेपी में आरएसएस से जुड़े हुए लोग हैं और वो (हमारी) मदद को आगे आयेंगे. हालांकि बीजेपी सत्ता में आकर यह भूल गई है कि हमारे ही कामों के कारण उसे गद्दी नसीब हुई है. देखिए असम में क्या हुआ- आरएसएस ने दशकों तक जमीनी काम किया लेकिन चुनाव जीतने का सारा श्रेय पार्टी के कुछ जाने-माने चेहरों को दिया जा रहा है.'

प्रशिक्षण शिविर के मसले पर आशीष ने कहा कि इन शिविरों को चलाने के लिए जरुरी सारी कानूनी औपचारिकताओं का पालन किया गया है. उसने शिविर के कामकाज के ब्यौरे भी दिए लेकिन पुलिस सुप्रिटेंडेंट यादराम फंसल सहित बाकी अधिकारियों ने इस बाबत पूछने पर बताया कि ऐसे किसी शिविर के चलने की जानकारी उन्हें नहीं हैं और यह भी कहा कि पुलिस अपने से कार्रवाई नहीं कर सकती क्योंकि बजरंग दल के खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई है. बहरहाल ऊपर की तस्वीर में साफ दिख रहा है कि पुलिस कुछ नौजवानों की सड़क पर परेड करा रही है.

रिपोर्टर की डायरी

खोजबीन की शुरुआत में ही मैं जान गया था कि एक अनजानी जगह पर एकदम ही अपरिचित लोगों से मिलने का फैसला करके मैं बड़ा जोखिम उठा रहा हूं. फैसला आसान नहीं था खासकर जब आप यह सोचें कि मिलना उनसे था जो बजरंग दल और वीएचपी से जुड़े हैं और हिंसा करने का इनका एक इतिहास रहा है. इस भय से उबरने के लिए मैंने अपना परिचय अनुपम कुमार के रुप में देने का निश्चय किया- जाहिर है पहलू खान वाली घटना मेरे मन में थी और यह भय सता रहा था कि कहीं मेरी असली पहचान उजागर ना हो जाये. खैर, मैंने तय किया कि कदम पीछे नहीं हटाने हैं, कहानी पर काम करना है और इन लोगों को अपने कैमरे पर रिकार्ड करना है.

हमारा काम खत्म हो गया था, हमने कहानी की तफसील खोज-समझ ली थी और हनुमानगढ़ से दिल्ली अब बस लौटने ही वाले थे कि पत्रकार के भेष में काम करने वाला एक स्थानीय मुखबिर बीच में टपक पड़ा. उसने इन लोगों को मेरी असल पहचान बता दी कि बंदा मुसलमान है. जल्दी ही पुलिस आ पहुंची और हमें गाड़ी से उतरने के लिए कहा. उस वक्त मैं, विजय पांडे और अनुपम पांडे गाड़ी में थे. फोटो जर्नलिस्ट विजय और दिल्ली के पत्रकार अनुपम के साथ मुझे अलग-अलग कारों में बैठाकर पुलिस थाने ले जाया गया. हमपर झूठे केस लादने और गिरफ्तार करने की धमकी दी गई. इसी बीच दिल्ली के हमारे दोस्तों ने फोन करना शुरु किया, हमें छोड़ने की मांग की जाने लगी.

बजरंग दल के लोगों से कहीं ज्यादा सख्ती का बरताव हमारे साथ पुलिस ने किया. पुलिसवालों में से एक ने बजरंग दल के नेता से कहा कि, “ इनके खिलाफ अगर तुम केस नहीं करते तो फिर मैं करुंगा.” एक पुलिसवाले ने मुझे धमकी दी कि मैं जूतों से तुम्हारी पिटाई करुंगा भले ही बाद में सस्पेंड हो जाऊं. इन सारी बातों से हमें यकीन हो गया कि ये लोग नहीं चाहते कि हम आजादी से अपना काम करें. यहां तक कि जब हमने अपना असली परिचय दे दिया और पहचान-पत्र दिखाया और पहचान जाहिर करने वाले बाकी कागजात भी दिखाये तो भी वे लोग हमें छोड़ने को तैयार नहीं थे.

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