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बाहुबली बनाम लोकल कुंगफू-2: मुख्यमंत्री सोनोवाल की रीजनल सिनेमा बचाने की कोशिश

मुख्यमंत्री की योजना सिर्फ अच्छी फिल्में बनाने की नहीं बल्कि इन अच्छी फिल्मों को बाजार तक भी ले जाने की है.

Kangkan Acharyya

बाहुबली का असर इस कदर है कि एक्शन से भरपूर असमिया फिल्म 'लोकल कुंगफू' भी कई सिनेमा हॉल से बाहर कर दी गई है.

ऐसे में असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने क्षेत्रीय सरकारी फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान को कुछ निर्देश जारी किए हैं.


इसके तहत क्षेत्रीय फिल्म उद्योग के विकास और ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों से मिलती मजबूत चुनौतियों से क्षेत्रीय फिल्मों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक और निर्णायक नीति बनाई जाएगी.

इस संस्थान के प्रमुख पबित्रा मार्गरीटा ने फर्स्टपोस्ट से कहा, 'शुक्रवार को हुई बैठक में उन्होंने सभी पक्षों को विश्वास में लेकर क्षेत्रीय फिल्म उद्योग के हितों की रक्षा करने के लिए एक नीति बनाने का निर्देश दिया है.

उन्होंने आगे बताया, 'मुख्यमंत्री ने नीतियों को लेकर दो सख्त बड़े गाइडलाइंस दिए. पहली बात तो यह कि यह नीति सभी पक्षों को कुबूल होनी चाहिए. दूसरी बात कि जितनी जल्दी हो सके इसे तैयार किया जाए.'

पिछले सप्ताह सर्बानंद सोनोवाल ने पहले ही बंद हो चुके सिनेमा हॉल को फिर से शुरू करने के लिए 50 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की.

इसके अलावा पुराने हो चुके सिनेमा हॉल की मरम्मत करके उसे सुचारू

बनाने के लिए 25 लाख रुपये की सहायता मुहैया कराने वाली एक नीति का भी एलान किया.

पबित्रा मार्गरीटा ने इसके अलावा क्षेत्रीय सिनेमा को बेहतर स्थिति में लाने के लिए सामुदायिक हॉल्स को सिनेमा हॉल में बदलने की बात कही. उन्होंने ये भी कहा कि सीटों के कुछ निश्चित प्रतिशत वाली स्थानीय फिल्मों के लिए कारोबारी हॉल्स में कम से कम एक शो को आरक्षित करने पर खास नियम तैयार किया जा रहा है.

बाहरी प्रभाव

असम के मुख्यमंत्री की इस पहल को असमिया फिल्म 'लोकल कुंग्फू-2' के निर्देशक के उस विवादास्पद बयान की रौशनी में देखा जा रहा है जिसमें निर्देशक ने कहा था कि बाहुबली की रिलीज के बाद असम के थियेटर से कथित रूप से 'बाहरी प्रभाव' के कारण उनकी फिल्म सिनेमा हॉल से उतार दी गई है.

क्षेत्रीय फिल्म के निर्देशक केनी देवरी बासुमतारी ने फर्स्टपोस्ट से कहा, 'गुरुवार को 60-80 प्रतिशत सीटों के भरे होने और अनेक हाउसफुल और करीब-करीब

हाउसफुल सप्ताह के बावजूद उत्तर-पूर्व के बाहुबली के वितरक और मुंबई और दिल्ली के मल्टीप्लेक्स प्रौग्रामर ने हमें वहां से बाहर कर दिया. सभी शो बाहुबली को दे दिए गए हमारे हिस्से में एक भी शो नहीं रहा.

हम दूसरे सप्ताह तक सिर्फ गुवाहाटी के वंदना थियेटर तक ही सीमित रहे, क्योंकि इस पर बाहरी ताकतों का रिमोट कंट्रोल काम नहीं आ सका.

असम के मशहूर फिल्म आलोचक अरुण लोचन दास ने इस सिलसिले में कहा, 'ऐसा नहीं कि इस तरह पहली बार हुआ हो कि किसी बॉलीवुड फिल्म को फायदा पहुंचाने के लिए थियेटर से किसी लोकप्रिय क्षेत्रीय फिल्म को उतार दिया

गया हो.'

उन्होंने कहा कि किसी भी हिट असमिया फिल्म को अपनी लागत वसूलने में कम से कम दो सप्ताह तो लग ही जाते हैं लेकिन अक्सर ही ऐसा होता है कि जैसे ही कोई बॉलीवुड फिल्म रिलीज होती है क्षेत्रीय फिल्म थियेटर से उतर जाती है.

अरुण लोचन दास ने आगे बताया, 'कई कारणों में से एक कारण ये भी है कि असमिया फिल्म उद्योग लंबे समय से किसी हिट फिल्म के लिए तरस सा गया है. जहां तक मुझे याद आता है कि आखिरी हिट असमिया फिल्म 'रामधेनू' शायद पांच साल पहले आई थी.

'लोकल कुंग्फू' के बारे में वो कहते हैं कि यह एक गंभीर हास्य वाली फिल्म है और यह दर्शकों को शुरू से आखिरी तक हंसाती ही रहती है. वह आगे बताते हैं, 'कॉमेडी के अलावा, यह फिल्म हॉल में बैठे दर्शकों का ध्यान करीने से

तराशे गये मार्शल आर्ट के दृश्यों की तरफ भी खींचती है. इसमें हिट होने की पूरी संभावना थी.'

यू-ट्यूब पर रिलीज

'लोकल कुंगफू-2' लोकल कुंगफू नाम की पहले रिलीज हुई फिल्म का एक सिक्वल है जो साल 2013 में रिलीज हुई थी. इसका पाइरेटेड वर्जन यू-ट्यूब पर वायरल हो गया था. यू-ट्यूब के कई चैनलों पर 1 घंटे 23 मिनट की यह लंबी फिल्म अपलोड की गई थी.

दोनों फिल्मों के निर्देशक केनी देओरी बासुमातरी कहते हैं कि असल में इस फिल्म को कई लाख लोगों ने देखा ऐसा इसलिए क्योंकि यू-ट्यूब पर कई लोगों ने इसे अपने-अपने चैनल पर अपलोड किया था.

अरुण लोचन दास कहते हैं, 'हालांकि यह फिल्म यू-ट्यूब पर उपलब्ध थी इसके बावजूद इस फिल्म को घाटा नहीं हुआ. क्योंकि इसकी कुल लागत ही मात्र 96,000 रुपये थी.

इस फिल्म को स्थानीय मार्शल आर्ट के कलाकारों ने बनाया था और इनमें से ऐसा एक भी कलाकार नहीं था जिसे लोग जानते हों. लेकिन केनी देओरी बासुमतारी कहते हैं कि ऐसा सिक्वल के मामले में बिल्कुल नहीं था.

वो आगे बताते हैं, 'लोकल कुंगफू-2' की निर्माण लागत 22 लाख रुपये थी. पोस्ट प्रोडक्शन पर अलग से 8 लाख रुपये खर्च किए गए थे जिसे आम लोगों ने फंड किया था.

आम तौर पर किसी असमिया फिल्म के निर्माण पर 30-40 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं. हालांकि 19 अप्रैल को रिलीज होने के बाद पहले 9 दिनों में इस फिल्म ने 9 लाख रूपये की वसूली कर ली है.

अरुण लोचन दास का अनुमान है कि 'बाहुबली' के लाख क्रेज के बावजूद इस फिल्म ने अपनी लागत तो वसूल कर ही ली है. दास कहते हैं, 'छोटी-छोटी

जगहों पर इस तरह की फिल्म की मांग अब भी है. अगर ये फिल्म वहां के थियेटरों में लगाई जाए तो वहां एक बड़ी संभावना है.'

इस सम्बन्ध में पबित्रा मार्गरीटा कहते हैं, 'पिछले पांच सालों में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने वाली असमिया फिल्मों ने कुछ ऐसा अहसास कराया है कि असम के लोगों ने असमिया विज़ुअल आर्ट को नकार दिया है. लेकिन निश्चित रूप से ऐसा नहीं है. असम में चल रहे चलते फिरते थियेटर अब भी अच्छा कारोबार कर रहे हैं.'

असम में चलते फिरते थियेटर का इतिहास रहा है. ये थियेटर कंपनियां एक जगह से दूसरी जगह चलती रहती हैं और ड्रामे को पेश करने के लिए अपने स्टेज बदलते रहते हैं.

मार्गरीटा के अनुमान के मुताबिक इस तरह की करीब 35 कंपनियां हैं. मार्गरीटा कहते हैं,  'लेकिन उन ज्यादार जगहों पर सिनेमा हॉल नहीं है जहां इन चलते फिरते थियेटर की पहुंच है. यही कारण है कि वहां के सिने प्रेमी के लाख चाहने के बावजूद उन्हें असमिया फिल्में देखने को नहीं मिलती हैं.'

'लोकल कुंगफू' के एक्जयूकेटिव प्रोड्यूसर दुर्लोव बोरा बताते हैं, 'हमने 43 हॉल में इस फिल्म को रिलीज किया जिनमें से मुश्किल से 20 थियेटरों में ही इस फिल्म की स्थिति अच्छी कही जा सकती है और जहां से इस फिल्म ने अपने पैसे बनाए.'

अगर बड़े बजट वाली फिल्म 'बाहुबली' इन 20 थियेटरों पर भी कब्जा कर लेती है, तो क्षेत्रीय फिल्म कैसे अपना अस्तित्व बनाए रख सकती है.' पबित्रा मार्गरीटा कहते हैं, 'मुख्यमंत्री ने जिस नयी व्यापक योजना को लेकर निर्देश दिया है उसके पीछे यह विचार है कि सिर्फ अच्छी फिल्में ही नहीं बने बल्कि इन अच्छी फिल्मों को बाजार तक भी ले जाया जाए जहां इनकी मांग हो.'