सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद मामले की बुधवार यानी 14 मार्च को फिर से सुनवाई होगी. कोर्ट में चल रहे इस मामले पर पूरे देश की नजर है. इस मामले में पिछली सुनवाई 8 फरवरी को हुई थी.
इस मामले में दस्तावेज के तौर पर रखे जाने वाले सभी कागजी कार्रवाई और अनुवाद के काम को पूरा कर लिया गया है. 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के यहां हुई मीटिंग में सभी पक्षों ने कहा था कि कागजी और अनुवाद का काम पूरा हो गया है.
सात साल से लंबित पड़े इस मामले में सबसे पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस आधार पर सबसे पहले उन्हें बहस में शामिल होने का मौका मिल सकता है.
कोर्ट ने दिया था अनुवाद कराने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले के लिए दस्तावेजों का अलग-अलग लिपियों और भाषाओं में अनुवाद कराया था, जो 53 खंड में था. मूल दस्तावेज संस्कृत, फारसी, पालि, उर्दू और अरबी में हैं. 8 फरवरी को हुई सुनवाई में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हिस्से के 3260 पेज जमा नहीं हो पाए थे, जिस कारण सुनवाई टालनी पड़ी थी.
इस मामले में 5 दिसंबर को भी सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि इस मामले की सुनवाई को लेकर इतनी जल्दी क्यों है. 2019 के बाद इसकी सुनवाई की जाए. उनकी इस दलील को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने नकार दिया था और कहा था कि अब सुनवाई नहीं टाली जाएगी.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच कर रही है. इस बेंच की अगुवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे हैं. उनके अलावा इस बेंच में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं.
सितंबर 2010 में आया था हाईकोर्ट का फैसला
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जजों ने फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों से ढके इलाके में बीच का हिस्सा हिंदुओं का है. फिलहाल, भगवान राम की मूर्ति वहीं है. यह फैसला 30 सितंबर 2010 को आया था.
इसी के बाद विवादित जमीन मामले को लेकर हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके साथ ही सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.