अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही देश सहमा हुआ है. इस हमले में अब तक 7 अमरनाथ यात्रियों की मौत हो चुकी है और 32 यात्री अभी भी घायल हैं.
अमरनाथ यात्रियों पर ये कोई पहला आतंकी हमला नहीं है. इससे पहले भी अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले हुए हैं. पर, अनंतनाग में हुए आतंकी हमले कई मायने में दूसरे आतंकी हमलों से अलग है.
आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के मुखिया सैयद सलाहुद्दीन ने कुछ दिन पहले ही अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमले की धमकी दी थी. अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा का जिम्मा 40 हजार सुरक्षाबलों पर है. सवाल यह है कि इतने पुख्ता सुरक्षा इंतजाम के बावजूद आखिर कहां चूक हो गई?
अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने काफी पहले से ही आतंकी हमले का अलर्ट भेजा था जिसके बाद अमरनाथ यात्रा के रूट पर यात्रियों की सुरक्षा पिछले साल के मुकाबले और बढ़ा दी गई थी.
सूत्र बताते हैं कि पीएमओ ने अनंतनाग में हुए आतंकी हमले के बाद गृह मंत्रालय के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की है. बताया गया है कि खुफिया एजेंसियों ने 25 जून को ही श्रद्धालुओं पर आतंकी हमले का अलर्ट जारी कर दिया था. जिसको गंभीरता से नहीं लिया गया.
पीएमओ ने खुद संभाली कमान
पीएमओ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यात्रा की पूरी कमान अब अपने हाथों में ली है. पीएमओ आगे की अमरनाथ यात्रा की मॉनिटरिंग खुद ही करेदा.
सोमवार को बस यात्रियों पर हुए हमले दूसरे हमलों से इसलिए अलग है कि इस बार जांच एजेंसियों के द्वारा यात्रा को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही थी, इसके बावजूद घटना को अंजाम दिया गया.
पिछले साल इसी समय आतंकी बुरहान वानी की एनकाउंटर में मौत हुई थी. जिसको लेकर अभी तक विवाद चल रहा है. उस समय अमरनाथ यात्रा को और कड़ा कर दिया गया था. बुरहान वानी के मौत के बाद भी अमरनाथ यात्रा में किसी प्रकार की रुकावट नहीं आई थी.
इस बार कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के दावों को धता बताते हुए आतंकियों ने तीर्थयात्रियों पर हमला कर गुजरात के 7 यात्रियों की जान ले ली. बाइक से आए आतंकी गुजरात के वलसाड से आए तीर्थयात्रियों की बस पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर भाग निकले और सुरक्षाबल सिर्फ देखते रह गए.
सोमवार रात करीब साढ़े आठ बजे जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के बटेंगू में जिन अमरनाथ यात्रियों की मौत हुई है, वे सभी गुजरात के रहने वाले हैं.
हमले को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के लोकल पुलिस का दावा है कि बस चालक ने तीर्थयात्रा नियमों का पालन नहीं किया. रात के सात बजे के बाद किसी भी यात्रा वाहन को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं थी.
दूसरी तरफ पुलिस यह भी कह रही है कि आतंकियों के निशाने पर अमरनाथ यात्री नहीं थे. आतंकियों ने यह हमला सीआरपीएफ के काफिले को निशाने बना कर किया था. क्योंकि बस के साथ कोई सुरक्षा काफिला नहीं था इसलिए आतंकियों ने अपना इरादा बदल कर अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनया.
जम्मू-कश्मीर पुलिस का ये भी कहना है कि यात्रा की व्यवस्था देखने वाले बोर्ड में इस बस का पंजीकरण नहीं था.
वहीं बस के मालिक हर्ष ने बीबीसी से बातचीत में कहा है कि ये बस भी बाकी बसों के काफिले के साथ ही चल रही थी. बस का टायर पंक्चर होने की वजह से बस साथ चलने वाली और बसों से पीछे छूट गई.
अब सवाल यह है कि जब बस की टायर पंक्चर हो गई थी तो स्थानीय पुलिस या सुरक्षाबलों ने बस में सवार 56 यात्रियों के जिंदगियों को किसके भरोसे छोड़ कर अागे की ओर चल दिया?
इस साल अमरनाथ यात्रा 29 जून को शुरू हो कर से 7 अगस्त तक चलेगी. गृह मंत्रालय ने सुरक्षा को लेकर पिछले दो महीने में कई बैठकें कीं. गृह मंत्रालय ने राज्य पुलिस बल के साथ केंद्रीय सुरक्षाबलों के 40 हजार जवानों की तैनाती भी की.
सुरक्षाबलों के द्वारा इस साल सीसीटीवी कैमरा के साथ बुलेटप्रूफ मोबाइल बंकरों, ड्रोन सहित कई आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा था. इसके बावजूद आंतकियों ने घटना को न केवल अंजाम दिया बल्कि बड़ी साफगोई से चकमा दे कर भाग भी निकला.
देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बैठक कर सुरक्षा हालात की समीक्षा की. इसके बाद अजीत डोभाल ने पीएम मोदी से मुलाकात कर उन्हें पूरे मामले से अवगत कराया.
इस बीच आर्मी चीफ बिपिन रावत और गृह मंत्रालय की एक टीम श्रीनगर रवाना हो गई है.
जम्मू-कश्मीर के डीजीपी के मुताबिक अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले की साजिश लश्कर-ए-तैयबा ने रची है. अटैक का मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकी इस्माइल बताया जा रहा है. इस हमले के बाद पूरे देश में सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट कर दिया गया है.
इससे पहले भी अमरनाथ यात्रियों पर हमले हुए हैं-
- 1 अगस्त 2000 को भी आतंकियों ने पहलगाम में यात्रियों के बेस कैंप पर हमला बोला था. इस हमले में अमरनाथ यात्रियों और स्थानीय लोग समेत कुल 30 लोग मारे गए थे. उस समय भी केंद्र में एनडीए की सरकार थी.
- 23 जुलाई 2001 को भी अमरनाथ यात्रियों के शिविर पर हमले हुए थे. इस हमले में भी 13 अमरनाथ यात्री और कुछ पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी. उस समय भी केंद्र में एनडीए की ही सरकार थी.
- 30 जुलाई 2002 को भी एनडीए शासनकाल में दो अमरनाथ यात्री आतंकियों के ग्रेनेड हमले का शिकार हुए थे.
- 6 अगस्त 2002 पहलगाम के लिद्दर में अमरनाथ यात्रियों के शिविर पर हमले हुए थे जिसमें 10 श्रद्धालु मारे गए थे.
- साल 2015 में अनंतनाग में अमरनाथ यात्रा के मार्ग पर ग्रेनेड फटा था जिसमें कई यात्री घायल हो गए थे.
अनंतनाग में हुए आतंकी हमले के बाद अमरनाथ यात्रियों में चारों तरफ दहशत है. अमरनाथ यात्रियों की सेवा के लिए दिल्ली-एनसीआर में सवा सौ कैंप लगाए गए हैं. इन सारे कैंपों में भी सुरक्षा कड़े कर दिए गए हैं.
गाजियाबाद में अमरनाथ यात्राओं के लिए बनाए गए एक कैंप के संयोजक अतुल गुप्ता ने फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा, ‘अमरनाथ यात्रा को लेकर हर साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद और दिल्ली के सेवादार कैंप लगाते हैं. यही नहीं हमलोगों के लगभग सवा सौ कैंप पहलगाम से शेषनाग गुफा तक हैं. इन कैंपों में हमारे सेवादारों की ड्यूटी लगती है. आतंकी हमले के बाद हमलोग सेवादारों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं.’
बाबा बर्फानी का दर्शन कर लौटे सहारनपुर के एक यात्री रामेश्वर का कहना है कि हमलोग दो जुलाई को ऊधमपुर पहुंचे. जितने लोग सड़क पर नहीं थे उससे कहीं ज्यादा सुरक्षाबल क्षेत्र की सुरक्षा में तैनात थे. चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा कड़ी थी. शायद ही कोई स्थान होगा जहां पर सुरक्षा बल नहीं होंगे. ये घटना कैसे हुई समझ नहीं आ रहा है?’
इस साल अमरनाथ यात्रा के लिए 2.12 लाख यात्रियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है. 9 जुलाई तक 1.34 लाख से ज्यादा दर्शन कर चुके हैं.