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जेएनयू में अटल बिहारी वाजपेयी: क्या नाम में ही सब रखा है?

शेक्सपीयर की एक प्रसिद्ध उक्ति है नाम में क्या रखा है. इसके उलट जेएनयू प्रशासन ने सिर्फ नाम पर ही अपना पूरा फोकस किया हुआ है

Piyush Raj

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक्जिक्यूटिव काउंसिल ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सम्मान देने के लिए अगले साल से शुरू होने वाले ‘स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड आंत्रप्रेन्योरशिप’ का नाम बदलकर ‘अटल बिहारी वाजपेयी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड आंत्रप्रेन्योरशिप’ करने का फैसला किया है. वैसे देखा जाए तो बहुत पहले से किसी सम्मानित व्यक्ति के नाम पर किसी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय का नाम रखने की एक रवायत रही है. जिस भी विचारधारा वाली पार्टी की सरकार आती है वो अपने महापुरुषों के नाम पर या तो कोई योजना चलाती है या शहर, गांव, सड़क, सरकारी संस्था आदि का नाम बदलती है. अमूमन ऐसे नामकरणों का विरोध नहीं होता है. लेकिन कई बार इस तरह के नामकरण बेतुके भी लगते हैं और इससे जिस महापुरुष के नाम पर ऐसा किया जाता है उनके सम्मान में भी इससे कोई बढ़ोतरी नहीं होती है.

आखिर क्यों है बेतुका फैसला?


जेएनयू प्रशासन द्वारा मैनेजमेंट के स्कूल के नाम में बदलाव भी यही हुआ है. सबसे पहली बात जेएनयू या किसी भी विश्वविद्यालय में किसी डिपार्टमेंट या स्कूल का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर रखने की परंपरा नहीं है. अगर कहीं होगी भी तो वहां सभी विभागों और केंद्रों के नाम किसी न किसी महापुरुष के नाम पर होंगे. जेएनयू में सभी स्कूलों के नाम विषय या अध्ययन क्षेत्र के आधार पर रखे गए. जैसे स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, स्कूल ऑफ लाइफ साइंस इत्यादि. और अगर सभी स्कूलों के नामों में इसी तरह के बदलाव हुए तो फिर इसमें जेएनयू कहां रह जाएगा.

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ऐसे में सिर्फ एक स्कूल का नाम किसी महापुरुष के नाम पर रखना जेएनयू प्रशासन द्वारा सिर्फ अपने राजनीतिक रुझान का प्रदर्शन मात्र है. ऐसा लग रहा है कि जेएनयू प्रशासन किसी शैक्षणिक संस्था को नहीं बल्कि किसी राजनीतिक दल को संचालित कर रहा है या उससे संचालित हो रहा है. साथ ही इसे जवाहरलाल नेहरू बनाम अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बेवजह विवाद को भी पैदा करने की कवायद से जोड़कर भी देखा जा सकता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

कहां लिखा जाएगा अटल बिहारी वाजपेयी का नाम?

दूसरी बात यह कि जिस स्कूल का नाम बदला गया है, उसकी अभी कोई इमारत ही नहीं है और एक साल के भीतर इसकी इमारत बनाना भी संभव नहीं है. ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से अगले साल से शुरू होने वाला स्कूल जेएनयू में कहां चलेगा किसी को पता नहीं. ऐसा नहीं है कि वर्तमान वाइस चांसलर जगदीश कुमार के कार्यकाल में जेएनयू में पहली बार कोई नामकरण हुआ. 2016 में प्रो. जगदीश कुमार ने वाइस चांसलर का पद संभाला था और तब से लेकर अब तक उन्होंने सिर्फ सड़कों और इमारतों का नामकरण ही किया है.

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लाइब्रेरी का नाम बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के नाम पर किया गया और दूसरी तरफ पिछड़े और वंचित क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के लिए दिए जा रहे डिप्राइवेशन प्वाइंट को जेएनयू से खत्म कर दिया. इसके अलावा एमफिल और पीएचडी की सीटों में भी काफी कटौती की गई. इसके अलावा एडमिशन के नियमों में इस तरह के बदलाव किए गए कि किसी भी वंचित तबके के स्टूडेंट के लिए जेएनयू में एडमिशन लेना अब असंभव सा हो गया है.

बिरसा मुंडा, भगत सिंह, विवेकानंद, सावित्री बाई फुले आदि के नाम पर जेएनयू की मुख्य सड़कों का नाम रखा गया लेकिन ये महान लोग समाज के जिन लोगों बात करते थे उनके लिए जेएनयू में पढ़ पाना अब उतना आसान नहीं रहा जितना पहले हुआ करता था. इतना ही नहीं जेएनयू में ढाबों के अलॉटमेंट में ओबीसी को जो आरक्षण दिया जा रहा था उसे भी खत्म कर दिया गया है.

नाम रखने में आगे और काम में...

शेक्सपीयर की एक प्रसिद्ध उक्ति है नाम में क्या रखा है. इसके उलट जेएनयू प्रशासन ने सिर्फ नाम पर ही अपना पूरा फोकस किया हुआ है. जेएनयू प्रशासन ने सावित्री बाई फुले के नाम पर एक सड़क का नाम तो रख दिया लेकिन महिलाओं को सशक्त बनाने वाली संस्था जीएसकैश को खत्म कर दिया. यह संस्था न सिर्फ यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर पारदर्शी तरीके से सुनवाई किया करती थी बल्कि जेंडर संबंधी जागरूकता अभियान भी जेएनयू हर तबके के लिए चलाती थी. अभी हाल में जेएनयू के एक प्रोफेसर पर कई छात्राओं ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इस मामले में जांच के लिए जेएनयू ने पहले जो कमेटी बनाई थी उसमें किसी भी महिला को शामिल नहीं किया गया था. इसको लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने जेएनयू प्रशासन को लताड़ा भी था.

इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर प्रशासन ने स्कूल का नाम तो रख दिया है लेकिन जिन छात्रों का इस स्कूल में एडमिशन होगा वो रहेंगे कहां? जेएनयू में एक-एक साल तक छात्रों को हॉस्टल नहीं मिल रहा है. इससे अच्छा होता कि अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर जेएनयू प्रशासन कोई हॉस्टल ही बनवा देता. भले ही जेएनयू में नदियों के नाम पर हॉस्टल के नाम हैं लेकिन इससे अटल बिहारी वाजपेयी का सम्मान जरूर बढ़ता और जेएनयू के छात्रों को भी राहत मिलती.

मैनेजमेंट स्कूल के साथ-साथ जेएनयू प्रशासन ने इस साल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग की शुरुआत की है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस स्कूल के नाम की कोई इमारत आपको जेएनयू में नहीं मिलेगी. इसमें एडमिशन लेने वाले छात्रों को जेएनयू के कन्वेंशन सेंटर में पढ़ाया जा रहा है और इनके रहने की भी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. और अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अगले साल से शुरू होने वाले मैनेजमेंट स्कूल की भी हालत यही होने वाली है. जेएनयू के पास इन स्कूलों की बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड नहीं है और जेएनयू ने इसके लिए फैसला किया है कि एचआरडी मिनिस्ट्री की नई फंडिंग स्कीम के तहत ‘हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी’ से फंडिंग के लिए अप्लाई किया जाएगा. यह एक तरह का लोन होगा.

किसी भी महान व्यक्ति के नाम पर किसी स्थान या संस्था का नाम रखने में बुराई नहीं लेकिन नाम रखते वक्त यह जरूर खयाल रखा जाए कि जिस व्यक्ति के नाम पर यह कर रहे हैं, कहीं हमारे काम उसके सिद्धांतों के विपरीत तो नहीं हैं. जेएनयू में आजकल यही हो रहा है यानी ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)