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...जब वाजपेयी ने धर्मवीर भारती को खत में लिखा, 'मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं'

पूर्व पीएम वाजपेयी राजनीति के साथ-साथ साहित्य और काव्य में भी रुचि रखते थे. उनकी कई कविताएं मशहूर हैं. उनमें एक है-मौत से ठन गई

FP Staff

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के अति वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी की हालत नाजुक बताई जा रही है. फिलहाल वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर हैं. बीते एक महीने से अटल बिहारी वाजपेयी यूटीआई इंफेक्शन, लोवर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और किडनी संबंधी बीमारियों के कारण एम्स दिल्ली में भर्ती हैं.

नाजुक हालत को देखते हुए एम्स में उनसे मिलने वालों का तांता लगा है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अस्पताल पहुंचे और उनका हालचाल जाना. गुरुवार सुबह लाल कृष्ण आडवाणी भी एम्स गए और पूर्व प्रधानमंत्री की कुशल-क्षेम पूछी.


पूर्व पीएम वाजपेयी राजनीति के साथ-साथ साहित्य और काव्य में भी रुचि रखते थे. उनकी कई कविताएं मशहूर हैं. उन्होंने संसद में चर्चा के दौरान भी अपनी कविताओं से सांसदों-नेताओं को हास्य-विनोद की अनुभूति कराई. उनकी काव्य में दिलचस्पी का एक वाकया काफी मशहूर है. साल 1988 में जब वे किडनी का इलाज कराने अमेरिका गए थे तब धर्मवीर भारती को लिखे एक पत्र में उन्होंने मौत को अपने सामने देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था. कविता का शीर्षक था- 'मौत से ठन गई'...यहां प्रस्तुत है उनकी पूरी कविता.

'मौत से ठन गई'...

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आजमा.

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर.

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं.

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला.

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है.

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई.

मौत से ठन गई.