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आम बजट को विधानसभा चुनावों से जोड़ना कितना उचित?

केंद्र के आम बजट की प्रतीक्षा न केवल देश के आम लोग बल्कि विदेशी कंपनियां भी उत्सुकता के साथ करती है.

Suresh Bafna

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों ने मांग की है कि 1 फरवरी को लोकसभा में पेश किए जानेवाले आम बजट को चुनाव के नतीजे आने तक स्थगित कर दिया जाए.

उनका कहना है कि बजट में लोगों को केंद्र सरकार राहतें देने की घोषणा करेगी, जिसकी वजह से चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन होगा.


आम बजट को रोकना देशहित के खिलाफ 

पांच राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया 4 फरवरी से 7 मार्च तक चलेगी, तब तक आम बजट को स्थगित रखना देश के हित में होगा? भारत एक विशाल देश है, जहां किसी न किसी राज्य में चुनाव होना एक स्वाभाविक बात है.

देश में आम बजट रखने के लिए 28 फरवरी की तारीख निश्चित रही है, जिसका आम तौर पर पालन किया जाता रहा है.

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पिछले दिनों केंद्र सरकार ने फैसला लिया कि बजट 28 फरवरी के स्थान पर 1 फरवरी को पेश किया जाए.

सरकार का कहना है कि 31 मार्च के पहले यदि आम बजट को संसद में पारित करा लिया जाए तो 1 अप्रैल से शुरु होनेवाले पहले वित्तीय दिन से योजनाअों को लागू करना संभव हो पाएगा.

भारत में केवल 1 फीसदी लोग ही आयकर देते हैं

पहले मई माह में बजट पारित होने से साल की पहली तिमाही में योजनाअों को लागू करने की दिशा में कदम उठाना संभव नहीं होता था.

मोदी सरकार द्वारा दिए गए इस तर्क से असहमत होने का कोई कारण नजर नहीं आता. विपक्षी दलों ने भी सरकार के इस निर्णय का विरोध नहीं किया है.

यदि आम बजट को राज्य में होनेवाले चुनावों के साथ जोड़कर देखने की परंपरा शुरू की जाएगी तो देश की अर्थव्यवस्था पर  इसका खराब प्रभाव पड़ेगा.

केंद्र के आम बजट की प्रतीक्षा न केवल देश के आम लोग बल्कि विदेशी कंपनियां भी उत्सुकता के साथ करती है. बजट सिर्फ आय-व्यय का ब्यौरा नहीं होता है, बल्कि इसके माध्यम से सरकार अपनी आर्थिक नीतियों का खुलासा करती है.

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यदि केंद्र सरकार को बजट पेश करने से रोका जाता है तो देश की अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा.

विधानसभा चुनाव बजट को रोकने का उचित कारण नहीं 

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने का खामियाजा देश के अन्य राज्यों को क्यों भुगतना चाहिए? आम बजट में कुछ वस्तुअों पर करों में बढ़ोतरी की जाती है और कुछ पर करों में कटौती की जाती है.

राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इस प्रक्रिया को एक सामान्य प्रक्रिया के तौर पर ही देंखे. लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को अलग-अलग स्तर पर ही देखा जाना चाहिए.

मान लीजिए यदि इस तर्क के आधार पर आम बजट रोक दिया गया और फिर मार्च के बाद किसी राज्य में विधानसभा चुनाव कराने की नौबत आ जाएगी तो क्या फिर रोका जाएगा?

भारत जैसे विशाल देश में चुनाव की तरह आम बजट की प्रक्रिया को भी रोकना किसी रूप में उचित नहीं है.

दुखद बात यह है कि कांग्रेस पार्टी जिसने 60 साल से अधिक देश पर शासन किया, वह भी राजनीति से प्रेरित होकर आम बजट को विधानसभा चुनावों के साथ जोड़कर देख रही है.

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बजट पेश करते समय मोदी सरकार को इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी कोई घोषणा नहीं की जानी चाहिए, जिसमें चुनावी राज्यों के मतदाताअों को प्रभावित करने की कोशिश हो.