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फिल्मों में मुझे मां बनने का शौक नहीं, दमदार रोल मिले तब फिल्में करूंगी: आशा पारेख

हेलन और वहीदा रहमान के साथ अब तक दोस्ती निभा रहीं आशा पारेख का कहना है कि अाजकल की हीरोइन के पास दोस्ती करने का वक्त नहीं

Runa Ashish

पचार और साठ के दशक में फिल्मी पर्दे पर अपने डांस से सबका दिल जीतने वाली आशा पारेख का अपना सुनहरा दौर रहा है.

उनकी आखों का मेकअप और चूड़ीदार उस दौर का फैशन स्टेटमेंट रहा है. उन पर लिखी किताब द हिट गर्ल में उनके जीवन के ऐसे ही कुछ पलो को संजो कर लिखा गया है.


उनसे उनके जीवन से जुड़ी बातें जानने के लिए फ़र्स्टपोस्ट हिंदी की संवाददाता रूना आशीष ने बातचीत की.

आपकी-वहीदा रहमान और हेलन- की दोस्ती को देख कर नजर ना लगे कह देने को दिल करता है.

हां हम बहुत समय से बहुत अच्छे दोस्त हैं. मैं हेलन के घर खाना खाने जाती हूं. उनका बर्मी खाना खाओसे बहुत अच्छा लगता है.

मैं, हेलन और वहीदा एक दूसरे के घर खाने पर जाते हैं. हम बाहर घूमने भी जाते हैं. खासकर चाट और पानी पूरी खाने वे हमारे घर आती हैं.

हमें पढ़ने का काफी शौक है. हम सब कुछ पढ़ते हैं. कहानियां और समाचार सब. कभी कभी हम साधना को बहुत मिस करते हैं. लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं हैं. नंदा भी अब इस दुनिया में नहीं रहीं.

इतने सालों के करियर के दौरान कभी दिल में कोई कसक रह गई हो?

मुझे दिलीप साहब बहुत अच्छे लगते थे. मेरा मन बहुत था उनके साथ काम करने का. हमने कई बार कोशिश भी की थी कि हम दोनों एक फिल्मसाथ में करें.

एक फिल्म हम लोग कर भी रहे थे लेकिन वो बीच में ही बंद हो गई. कभी-कभी जो नहीं होने वाला होता है वो नहीं होता है. मैं आज भी दिलीप साहब और सायराजी से मिलती हूं.

तो अब आप कभी फिल्म नहीं करेंगी?

अब फिल्में करने का मन नहीं करता है. सोशल वर्क में बिजी होने के कारण वक्त नहीं निकाल पाती हूं.

छोटा-मोटा रोल नहीं करूंगी लेकिन अगर कोई अच्छा रोल मिले तो जरूर करूंगी. मां के रोल करने का मेरा मन नहीं करता क्योंकि उसमें कुछ होता नहीं है.

आज के दौर की अभिनेत्रियां कैसी लगती हैं?

अनील कपूर के साथा आशा पारेख

आजकल की अभिनेत्रियों पर बहुत दबाव है. उनके सामने बहुत सारी मीडिया है. उन्हें प्रमोशंस के लिए जाना पड़ता है.

मुझे तो तरस आता है इन लड़कियों पर ये कितने तनाव से गुजरती हैं. हर समय तैयार हो कर बैठे रहो.

मेरे हिसाब से आजकल की अभिनेत्रियों में इंसिक्योरिटी की भावना थोड़ी बढ़ गई है क्योंकि कई सारी लड़कियां अब फिल्मों में आने लगी है.

हमारे समय में हम तीन-चार फिल्में करते थे. एक हिट नहीं हुई तो दूसरी हो जाती थी. लेकिन ये लड़कियां एक ही फिल्म पर काम करती हैं ताकि कॉन्सन्ट्रेशन रहे.

अपने करियर की पहली फिल्म आपने शम्मी जी के साथ की थी. उस बारे में कुछ बताइए.

शम्मी कपूर मेरे चाचा थे. उनके साथ मेरी पहली फिल्म तीसरी मंजिल थी. लेकिन जब हम कैमरे के सामने होते थे तो हम सिर्फ कलाकार होते थे.

मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. रोमांटिक सीन में भी हमें याद रहता था कि हम कलाकार हैं.

रियल लाइफ में तो मैं उन्हें चाचा बुलाती थी. उनके साथ काम करने में बहुत मजा आता था. चाचाजी का सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत अच्छा था.

आपको किसी फैन की खास याद आती है?

एक हैं सरिता जी जो मेरठ से हैं. वो आज भी फोन लगा कर बातें करती रहती हैं. कभी कुछ खाने के लिए भी भेज देती हैं.

एक बार एक चाइनीज फैन दरवाजे पर आ कर लेट गया था. वह घर जाने को तैयार ही नहीं था. अब फैन था तो बुरा तो लग रहा था लेकिन क्या करें पुलिस को बुला कर उसे हटाना पड़ा.

अपने समय में आप अपने डांस के लिए जानी जाती थीं.

मुझे डांस का बहुत शौक है. मैंने कत्थक, भरतनाट्यम, कथकली सीखा है. आज के समय में कहां ऐसे डांस देखना मिलते हैं.

वो तो भला हो संजय लीला भंसाली का जिनकी फिल्मों में ऐसे क्लासिक गाने देखने मिल जाते हैं.

इन दिनों की कौन सी फिल्म आपने देखी है.

इन दिनों में मैंने रंगून देखी थी. फिल्म ठीक है, लेकिन मुझे ये खास नहीं लगी. मैं विशाल भारद्वाज से कुछ और भी उम्मीद लगाए हुए थी.

हालांकि मुझे कंगना बड़ी अच्छी लगती है. वो बहुत बेबाकी से अपनी बातें कह देती है.

आप भी अपने जमाने की बड़ी मजबूत महिला मानी जाती रही हैं.

मेरी मां ने मुझे बहुत मजबूत बनाया है. उनकी हां मतलब हां और ना मतलब ना होता था.

मेरी फिल्मों की कहानियां तो मैं देखती और सुनती थी. लेकिन डेट्स कपड़े और शॉपिंग जैसी चीजें वो ही करती थीं.

एक बार अगर उन्होंने कह दिया कि डेट्स ये मिलेंगी तो फिल्म से जुड़े लोगों को मालूम हो जाता था कि ये डेट्स अब कैंसल नहीं होगी.

हर मां को लगता है कि बेटी की शादी हो लेकिन क्या करें किस्मत में नहीं थी तो नहीं हुई.

उस समय बॉलीवुड पार्टीज का रंग कैसा जमता था?

पहले बॉलीवुड में पार्टी बहुत कम होती थी. वक्त ही नहीं होता था. सारा समय हम शूट करते रहते थे.

फिर जब धर्मेंद्र जी आए तो उन्होंने फिल्म में काम करने की शिफ्ट्स बना दीं. वो बहुत सारी फिल्में कर रहे थे. लिहाजा उन्होंने 10 से 2, 2 से 10 और फिर रात में 10 से 2 की शिफ्ट लगा दी थीं.

धर्मेंद्र और शशि कपूर दोनों ने मिल कर शिफ्ट्स बनाई हैं. उसके पहले तो हमने कभी शिफ्ट मे काम नहीं किया है.

आप सेंसरबोर्ड में अध्यक्ष रह चुकी हैं. आपको भी कई विरोधों से सामना करना पड़ा होगा जैसा कि आज पहलाज निहलानी को करना पड़ता है.

सेंसरशिप में हमें गाइडलाइंस फॉलो करना पड़ता है. मैं जब सेंसर में थी तो मुझे अपशब्द पसंद नहीं थे तो मैं उस पर आपत्ति जताती थीं.

कई निर्देशक और निर्माता कहते हैं कि सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए. लेकिन मुझे लगता है कि होनी चाहिए और वो घर से शुरू हो.

जो   सर्टिफिकेट वाली फिल्में हों वो बच्चों को ना दिखाएं. यह मां-बाप को ही तय करना होगा.

ऐसी फ़िल्में आप बच्चों के साथ देखने मत जाइए. पहलाज जी भी जो कर रहे हैं वो गाइडलाइंस के हिसाब से होंगे.

फिल्म में अगर कोई कट लगा दो तो इन लोगों को बहुत बुरा लगता है. हम बी और सी ग्रेड की फिल्मों की तो बात ही नहीं कर सकते. वहां तो सेंसरशिप बहुत जरूरी है.

मेरे समय में एलिजाबेथ नाम की जो फिल्म थी उसके साथ कुछ विवाद हुए थे. एक बार हमें किसी ने कहा था कि मंडी में जाइए ऐसी गालियां तो सब एक-दूसरे को देते हैं.

अब बताइए कि क्या वो गालियां आप घर पर ले आना चाहते हैं. अपशब्द होना ही नहीं चाहिए.

कभी मां बनने की या बच्चा गोद लेने की मंशा नहीं हुई?

मैंने एक बच्चे को गोद लेना चाहा था. लेकिन फिर डॉक्टर ने कहा कि उसकी स्थिति कुछ ठीक नहीं है. उस बच्चे को घर पर रखना या नया माहौल देना ठीक नहीं होगा.

फिर उसके बाद मेरी मां की भी तबियत बिगड़ गई थी. तो बात वहीं अधूरी रह गई. आज लगता है कि अच्छा हुआ कि ऐसा नहीं हुआ. वर्ना आजकल के बच्चों को पालना काफी मुश्किल हो जाता.

क्या आपके समय में भी इंटरव्यू ऐसे ही होते थे?

हमारे समय में भी हम इंटरव्यू देते थे. बस ये लगता था कि दोस्त की तरह बातें करें तो अच्छा होगा.

आजकल के पत्रकारों से बात करने में डर लगता है. पता नहीं क्या लिखेंगे और क्या छाप देंगे.

हमें बहुत सोच समझ कर बोलना पड़ता है. ऐसा नहीं कि दोस्त की तरह आएं और बात करें. वो तो आते हैं चीर-फाड़ करने.

आते ही एक के बाद एक ऐसे सवाल करेंगे जो आपके बहुत ही पर्सनल जीवन से जुड़े हों. हमारी भी तो कई ऐसी बातें हैं जो बहुत पर्सनल हैं और हम उसे अपने तक ही रखना चाहते हैं.

आपने तो टीवी मे भी धारावाहिकों का निर्माण किया है.

टीवी के लिए भी मैंने धारावाहिक प्रोड्यूस किए हैं. लेकिन अब ये डेली शोज मैं नहीं कर सकती हूं.

मुझे हमेशा से लगता रहा है कि टीवी में भी महिलाओं को बहुत पिछड़ा हुआ दिखाते हैं.

उनमें हमेशा मजबूत दिखान वाले किरदार होने चाहिए. अब फिल्मों में भी विद्या बालन को ही ले लीजिए वो कितने अच्छे किरदार करती हैं.

आपको अपनी किसी फिल्म का रिमेक बनाने का मौका मिले तो वो कौन सी फिल्म होगी.

तीसरी मंजिल. इसमें काम करने के लिए हिरोइन तो कोई भी हो सकती है लेकिन हीरो तो रणबीर कपूर ही होना चाहिए.

वह शम्मीजी की स्टाइल को वो बखूबी निभा लेगा औ शम्मीजी की जगह रणबीर को देखना अच्छा भी लगेगा.